राजस्व बोर्ड की प्रशासनिक शक्ति संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट की पर्यवेक्षी शक्तियों के समान नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट
Avanish Pathak
30 May 2025 2:37 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 (अधिनियम) की धारा 221 के तहत राजस्व मंडल को दी गई शक्ति केवल प्रशासनिक प्रकृति की है तथा संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट की पर्यवेक्षी शक्ति के समान नहीं है। इसलिए, ऐसी प्रशासनिक शक्ति के प्रयोग में, किसी भी डिक्री या न्यायिक आदेश को रद्द नहीं किया जा सकता।
अधिनियम की धारा 221, मंडल को सभी राजस्व न्यायालयों तथा उनके अधीनस्थ न्यायालयों पर अधीक्षण तथा नियंत्रण की सामान्य शक्तियाँ प्रदान करती है।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ राजस्व मंडल के उस आदेश के विरुद्ध दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अधिनियम की धारा 221 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए राजस्व अपीलीय प्राधिकरण (आरएए) के आदेश को रद्द कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता द्वारा खातेदारी अधिकारों की घोषणा के लिए वाद दायर किया गया था, जिसे खारिज कर दिया गया। इस निर्णय के विरुद्ध आरएए के समक्ष अपील दायर की गई, जिसे स्वीकार कर लिया गया तथा याचिकाकर्ता को भूमि का खातेदार घोषित कर दिया गया।
इसके बाद, प्रतिवादियों ने अधिनियम की धारा 221 के तहत बोर्ड के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत किया, जिसे स्वीकार कर लिया गया और आरएए के आदेश को रद्द कर दिया गया। इसके खिलाफ न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ता का मामला यह था कि अधिनियम की धारा 221 के तहत शक्तियां न्यायिक नहीं थीं, बल्कि प्रशासनिक शक्तियां थीं, और इसलिए, इस प्रावधान के तहत शक्ति का प्रयोग करते समय न्यायिक आदेश को रद्द नहीं किया जा सकता।
तर्कों को सुनने के बाद, न्यायालय ने अधिनियम की धारा 221 के तहत बोर्ड की अधीक्षण शक्तियों की तुलना संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट की शक्तियों से की, और माना कि उत्तरार्द्ध इंग्लैंड में अधीनस्थ न्यायालयों पर किंग्स बेंच के न्यायालय द्वारा प्रयोग किए जाने वाले नियंत्रण के समान था। शक्ति प्रकृति में प्रशासनिक और न्यायिक थी।
इस संदर्भ में न्यायालय ने कहा कि,
“1955 के अधिनियम की धारा 221 के तहत राजस्व बोर्ड की शक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत प्रदान की गई हाईकोर्ट की शक्ति के समान नहीं है। 1955 के अधिनियम की योजना में बोर्ड की न्यायिक और प्रशासनिक शक्तियों का स्पष्ट सीमांकन है। जबकि 1955 के अधिनियम की धारा 230 न्यायिक शक्ति प्रदान करती है, 1955 के अधिनियम की धारा 221 केवल प्रशासनिक शक्ति प्रदान करती है और प्रशासनिक शक्ति के प्रयोग में, किसी भी डिक्री या न्यायिक आदेश को रद्द नहीं किया जा सकता है।”
न्यायालय ने सुरेंद्र सिंह एवं अन्य बनाम किस्तूरी एवं अन्य के मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें न्यायालय की खंडपीठ अधिनियम की धारा 221 के तहत शक्ति के संबंध में उसी निष्कर्ष पर पहुंची थी।
इसलिए, न्यायालय ने माना कि बोर्ड विशेष रूप से सुरेन्द्र सिंह मामले में दिए गए फैसले के मद्देनजर आरएए के आदेश को रद्द नहीं कर सकता था। तदनुसार, याचिका को स्वीकार कर लिया गया और बोर्ड के आदेश को रद्द कर दिया गया।

