'ट्रस्ट की संपत्ति हड़पने के लिए DSP और राजस्व अधिकारियों ने मिलीभत से सिस्‍टमेटिक फ्रॉर्ड किया', P&H हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी के मामले में अग्रिम ज़मानत देने से इनकार किया

Avanish Pathak

12 July 2025 10:01 AM

  • ट्रस्ट की संपत्ति हड़पने के लिए DSP और राजस्व अधिकारियों ने मिलीभत से सिस्‍टमेटिक फ्रॉर्ड किया, P&H हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी के मामले में अग्रिम ज़मानत देने से इनकार किया

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक ट्रस्ट की संपत्ति हड़पने के लिए जाली दस्तावेज बनाने की साजिश रचने के आरोप में एक पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) और राजस्व अधिकारियों को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।

    याचिकाकर्ता पर डीएसपी सहित अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर एक सोसाइटी के कथित विघटन से संबंधित जाली दस्तावेज़ बनाने और मनगढ़ंत रिकॉर्ड जमा करने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था।

    जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा,

    "प्रथम दृष्टया, वर्तमान मामला एक गंभीर, सुनियोजित और व्यवस्थित धोखाधड़ी से जुड़ा है, जो एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट की ज़मीन हड़पने के जानबूझकर इरादे से किया गया था। सरकारी अधिकारियों और कानूनी पेशेवरों की संलिप्तता, कई दशकों पुराने बताए जा रहे नकली दस्तावेज़ों के निर्माण, और आधिकारिक प्रणालियों और कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग करके इन झूठे दस्तावेज़ों को असली दिखाने के प्रयासों से अपराध की गंभीरता और भी बढ़ जाती है।"

    न्यायालय ने कहा कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों और जांच के दौरान एकत्रित सामग्री के अनुसार, यह आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ताओं ने अन्य सह-आरोपियों के साथ मिलीभगत करके, शिकायतकर्ता-ट्रस्ट की बहुमूल्य भूमि को अवैध रूप से हड़पने के इरादे से जाली और मनगढ़ंत दस्तावेज़ तैयार किए और उन्हें असली के रूप में इस्तेमाल किया।

    जस्टिस कौल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जांच से यह भी पता चलता है कि याचिकाकर्ताओं ने डीएसपी कुलजिंदर सिंह, राजस्व अधिकारियों और बैंक कर्मियों सहित विभिन्न विभागों के कई प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ मिलकर साजिश रची।

    पीठ ने कहा,

    "यह सर्वविदित है कि गंभीर प्रकृति के आर्थिक अपराधों से जुड़े मामलों में अग्रिम ज़मानत नियमित रूप से नहीं दी जा सकती। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि ऐसे अपराध समाज के वित्तीय और नैतिक ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।"

    ये टिप्पणियां राजेश कुमार गाबा, संजीव कुमार गाबा और मनोज कुमार द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जो नवंबर, 2023 में आईपीसी की धारा 120-बी, 452, 323, 506, 427, 148, 149, 420, 465, 467, 468, 471 (आईपीसी की धारा 465 हटा दी गई और आईपीसी की धारा 408 और 193 बाद में जोड़ी गईं) के तहत अपराधों के लिए सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर में आरोपी हैं।

    न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता संजीव कुमार गाबा पर नायब तहसीलदार, उप-पंजीयक और अन्य सह-अभियुक्तों के साथ मिलकर इन जाली दस्तावेजों को बनाने और उनका इस्तेमाल करने का आरोप है।

    याचिकाकर्ता राजेश कुमार गाबा पर यह भी आरोप है कि उन्होंने जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल करके और 1947-1948 के दौरान कथित तौर पर सोसायटी के विघटन से संबंधित फर्जी रिकॉर्ड रजिस्ट्रार, फर्म्स एंड सोसाइटीज, पंजाब, चंडीगढ़ को सौंपकर साजिश को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाई।

    जज ने कहा,

    "यह कोई छिटपुट जालसाजी या साधारण दीवानी विवाद का मामला नहीं है, बल्कि एक व्यापक और बेहद परेशान करने वाली साजिश है जिसमें झूठे ट्रस्ट दस्तावेजों और प्रमाणपत्रों की जालसाजी; "दीवानी और आपराधिक कार्यवाहियों में हेराफेरी; अवैध भूमि अधिग्रहण के लिए जाली रिकॉर्ड का इस्तेमाल; जबरदस्ती और प्रलोभन के जरिए गवाहों को प्रभावित करना; संस्थाओं की अखंडता को कमजोर करना और कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग करना" शामिल है।"

    न्यायाधीश ने इस आधार को भी खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं को जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया था, इसलिए उन्हें अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए।

    न्यायालय ने कहा,

    "रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्य स्पष्ट रूप से एक वास्तविक और तात्कालिक जोखिम की ओर इशारा करते हैं कि याचिकाकर्ता साक्ष्यों में हस्तक्षेप कर सकते हैं, गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं और न्याय प्रक्रिया में बाधा डाल सकते हैं।"

    यह देखते हुए कि ज़िमनी आदेशों से परिलक्षित समन और वारंट का पालन करने में असहयोग इस आशंका को और पुष्ट करता है कि याचिकाकर्ता न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकते हैं, न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया।

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