राम रहीम मामला: 'क्या 2017 पंचकूला डेरा हिंसा में हरियाणा सरकार की मिलीभगत थी?' हाईकोर्ट में हुई सुनवाई
Praveen Mishra
27 Sept 2025 12:49 AM IST

2017 में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बलात्कार मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद पंचकूला में हुई हिंसा (25 अगस्त 2017) में 32 लोगों की मौत हुई और लगभग ₹118 करोड़ की संपत्ति नष्ट हुई। अब हाईकोर्ट इस पर सुनवाई करेगा कि क्या हरियाणा सरकार ने भीड़ रोकने में नाकामी दिखाई या डेरे समर्थकों को राजनीतिक कारणों से मदद दी।
चीफी जस्टिस शील नागू, जस्टिस स. भारद्वाज और जस्टिसि क्रम अग्रवाल की खंडपीठ अमिकस क्यूरी सीनियर एडवोकेट अनुपम गुप्ता की दलीलें सुन रही थी। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि 2017 में फ्रेम किए गए संवैधानिक प्रश्नों पर निर्णय दिया जाए।
मुख्य प्रश्न जिन पर सुनवाई होगी:
क्या ऐसे मामलों में प्रिवेंटिव पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) बनाए रखी जा सकती है?
आर्टिकल 226 के तहत मुआवजे के निर्धारण में हाईकोर्ट की क्या सीमाएं हैं?
नुकसान की भरपाई दोषियों से वसूली जा सकती है या नहीं, और इसमें सुरक्षा बलों की तैनाती का खर्च भी शामिल होगा या नहीं?
क्या हरियाणा सरकार ने भीड़ जुटने से रोकने में असफलता दिखाई और क्या उसकी कोई मिलीभगत थी?
कोर्ट ने कहा कि क्षति-पूर्ति (compensation) का निर्धारण विशेष कानूनों (Haryana Prevention of Defacement of Property Act, Punjab Prevention of Damage to Public and Private Property Act, 2014) के तहत बने ट्रिब्यूनल करे। परंतु अनुपम गुप्ता ने दलील दी कि ट्रिब्यूनल सिर्फ मुआवजे की राशि तय करेगा, परंतु जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करना हाईकोर्ट का दायित्व है।
पंजाब सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल चंचल सिंगला ने कहा कि पंजाब ने हिंसा और सुरक्षा बलों की तैनाती पर ₹169 करोड़ खर्च किए, जिसमें से ₹50 करोड़ सिर्फ CRPF पर खर्च हुए। यह खर्च विशेष कानूनों के दायरे में नहीं आता, इसलिए हाईकोर्ट को स्वतंत्र ट्रिब्यूनल बनाना चाहिए।
कोर्ट ने पंजाब सरकार से हलफनामा मांगा है कि क्या उसने कहीं और से इन खर्चों की भरपाई मांगी है।
ध्यान रहे, 29 अगस्त 2017 को ही हाईकोर्ट ने SIT के गठन और FIRs की निगरानी का आदेश दिया था और पुलिस की कार्रवाई व मुआवजे से जुड़े कई प्रश्न फ्रेम किए थे।
अप्रैल 2025 की पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि अब और स्थगन (adjournment) नहीं दिया जाएगा और पहले यह तय किया जाए कि ये प्रश्न आज भी जीवित (alive) हैं या समय के साथ अप्रासंगिक (infructuous) हो चुके हैं।

