भ्रष्टाचार मामले में पूर्व हाईकोर्ट जज निर्मल यादव को बरी किए जाने को CBI की चुनौती पर नोटिस जारी

Shahadat

10 Sept 2025 11:22 AM IST

  • भ्रष्टाचार मामले में पूर्व हाईकोर्ट जज निर्मल यादव को बरी किए जाने को CBI की चुनौती पर नोटिस जारी

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले में पूर्व हाईकोर्ट जज जस्टिस निर्मल यादव और तीन अन्य को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा दायर अपील पर नोटिस जारी किया, जिसमें उन्हें बरी किए जाने को चुनौती दी गई।

    चंडीगढ़ की स्पेशल CBI कोर्ट ने इस साल अप्रैल में जस्टिस निर्मल यादव को 2008 के भ्रष्टाचार मामले में बरी कर दिया। 89 पृष्ठों के अपने फैसले में स्पेशल कोर्ट ने CBI के इस दावे को खारिज कर दिया कि जज ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में सेवा करते हुए 15 लाख रुपये नकद प्राप्त किए।

    जस्टिस मंजरी नेहरू कौल और जस्टिस एचएस ग्रेवाल की खंडपीठ ने CBI की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए मामले की सुनवाई 15 दिसंबर के लिए निर्धारित की।

    2008 में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की तत्कालीन जज जस्टिस निर्मलजीत कौर के चपरासी ने शिकायत दर्ज कराई कि वकील संजीव बंसल के क्लर्क प्रकाश राम ने उनकी अदालत में 15 लाख रुपये की नकदी से भरा एक बैग पहुंचाया था। क्लर्क को गिरफ्तार कर लिया गया और उसने पुलिस के सामने कबूल किया कि यह बैग पूर्व असिस्टेंट अटॉर्नी जनरल एडवोकेट संजीव बंसल की ओर से जस्टिस निर्मल यादव के आवास पर पहुंचाया जाना था।

    इसके बाद मामला CBI को सौंप दिया गया और जस्टिस यादव और चार अन्य (जिनमें से एक की कार्यवाही के दौरान मृत्यु हो गई) पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 11, 12 और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120-बी (पठित धारा 192, 196, 199 और 200) के तहत जज से अनुकूल आदेश प्राप्त करने के लिए कथित तौर पर रिश्वत देने और लेने के प्रयास का मामला दर्ज किया गया।

    CBI ने निष्कर्ष निकाला कि जस्टिस यादव ने एक कार्यरत जज के रूप में अभियुक्त रविन्द्र सिंह से बिना किसी प्रतिफल के 15 लाख रुपये और अन्य मूल्यवान वस्तुएं प्राप्त कीं और अभियुक्त वकील संजीव बंसल से हवाई टिकट प्राप्त किया, जो न केवल उनके समक्ष उपस्थित होने वाले वकील थे, बल्कि संपत्ति में भी प्रत्यक्ष रूप से रुचि रखते थे, जो उनके समक्ष लंबित एक अपील का विषय था।

    अदालत के समक्ष मुख्य प्रश्न यह है कि क्या जस्टिस निर्मल यादव सह-अभियुक्त रविन्द्र भसीन, वकील संजीव बंसल और राजीव गुप्ता नामक व्यक्ति से रिश्वत लेने की दोषी थीं।

    अदालत ने हरियाणा में एडिशनल जिला जज के रूप में कार्यरत रहे अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाह आर.के. जैन की गवाही को खारिज कर दिया। उल्लेखनीय है कि जस्टिस यादव द्वारा जैन से जुड़े एक संपत्ति विवाद का निर्णय प्रतिकूल रूप से दिया गया। जैन ने दावा किया कि निर्णय प्रभावित हुआ, क्योंकि उन्होंने ₹15 लाख की रिश्वत ली थी।

    उनके बयान पर गौर करते हुए जज अलका मलिक ने कहा,

    "वह एक ऐसे गवाह हैं, जो बिल्कुल भी भरोसे के लायक नहीं हैं। गवाह ने अपनी क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि उन्होंने CBI के समक्ष संभवतः सितंबर, 2008 में एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने वे सभी प्रासंगिक तथ्य छोड़ दिए, जो उन्होंने वर्ष 2010 में दिए गए अपने पूरक बयान में जांच अधिकारी के समक्ष बताए थे।"

    केंद्रीय जांच एजेंसी ने जस्टिस यादव के खिलाफ 78 गवाह पेश किए, जिनमें एक वादी भी शामिल है, जो जस्टिस यादव के उनके खिलाफ दिए गए फैसले से असंतुष्ट था।

    CBI के मामले में अहम भूमिका निभाने वाले इस गवाह की सत्यता पर सवाल उठाते हुए स्पेशल CBI जज अलका मलिक ने कहा,

    "CBI जैसी प्रमुख जांच एजेंसी के लिए यह बेहद सराहनीय होता कि वह सक्षम न्यायालय में इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने के अपने पहले ही रुख पर कायम रहती, बजाय इसके कि श्री आर.के. जैन (पीडब्लू 26) के रूप में एक बेहद अविश्वसनीय साक्ष्य गढ़ा जाए, जिसकी गवाही सभी सुधारों, मान्यताओं, अनुमानों, परिकल्पनाओं और सभी झूठों पर आधारित साबित हुई है।"

    जज ने CBI के मामले को खारिज कर दिया और जस्टिस यादव और चार अन्य आरोपियों को बरी कर दिया।

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