पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दिव्यांग व्यक्तियों को 'निम्न-मानक जीवन' शब्द देने वाले विनियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर मांगा जवाब
Shahadat
8 July 2025 10:14 AM

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) स्वास्थ्य बीमा विनियम, 2016 में दिव्यांग व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता का वर्णन करने के लिए "निम्न-मानक जीवन" शब्द के प्रयोग को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा।
विनियम 8(बी) और 8(सी) में यह अनिवार्य किया गया कि दिव्यांग व्यक्तियों को स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान किया जाएगा। विनियमन के खंड (बी) में कहा गया कि नीति में न केवल मानक जीवन बल्कि "निम्न-मानक जीवन" के लिए भी स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करने से संबंधित दृष्टिकोण और पहलुओं को शामिल किया जाएगा।
जस्टिस लिसा गिल और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने भारत संघ, IRDAI, जीवन बीमा निगम (LIC), पंजाब सरकार और अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी किया।
यह याचिका योगेश कपूर नामक दिव्यांग व्यक्ति द्वारा दायर की गई, जो 100% सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित है। उसने IRDAI स्वास्थ्य विनियमन, 2016 के विनियमन 8(c) में दिव्यांग व्यक्ति के लिए प्रयुक्त शब्दावली "निम्नस्तरीय जीवन" को संशोधित करने के लिए निर्देश देने की मांग की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दिव्यांग व्यक्तियों का उल्लेख करते समय विनियमनों या अन्य दस्तावेजों में ऐसी अस्वीकार्य शब्दावली का उपयोग न किया जाए।
याचिका में यह भी प्रस्तुत किया गया कि कपूर को LIC द्वारा स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी देने से इसलिए मना कर दिया गया, क्योंकि वह दिव्यांगता से पीड़ित है।
दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 का उल्लेख करते हुए यह प्रस्तुत किया गया कि "स्वास्थ्य देखभाल और अन्य संबंधित पहलुओं के संबंध में दिव्यांग व्यक्तियों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।"
इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार सम्मेलन, 2006, अनुच्छेद 25 के तहत स्वास्थ्य बीमा के प्रावधान में दिव्यांग व्यक्तियों के साथ भेदभाव को भी प्रतिबंधित करता है तथा देशों से यह अपेक्षा करता है कि वे इसे निष्पक्ष और उचित तरीके से प्रदान करें।
बीमा कवरेज से इनकार करना और दिव्यांगता के कारण आवेदन पर कार्रवाई करने से इनकार करना भेदभाव के बराबर है, जो अधिनियम के तहत निषिद्ध है। इसके अलावा, प्रतिवादियों का आचरण मौलिक अधिकारों यानी संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है, जो कानून के समक्ष समानता और सम्मान के साथ जीवन के अधिकार की गारंटी देता है, यह भी कहा गया।
मामले को अगली सुनवाई के लिए 28 अक्टूबर तक के लिए स्थगित किया जाता है।
Title: Yogesh Kapoor v. UOI & Ors.