पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अग्रिम ज़मानत से किया इनकार, कहा- शादी के तुरंत बाद महिला की अप्राकृतिक मौत को हल्के में नहीं लिया जा सकता
Shahadat
25 Oct 2025 9:36 AM IST

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में मृतका की आरोपी सास को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार किया। न्यायालय ने कहा कि शादी के तुरंत बाद महिला की अप्राकृतिक मौत को हल्के में नहीं लिया जा सकता। अदालत ने कहा कि मृतक महिला की शादी जनवरी 2025 में हुई थी और कुछ ही महीनों के भीतर उसकी अचानक मृत्यु ने गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं, जिसकी गहन जांच ज़रूरी है।
आरोप है कि महिला को उसकी सास, पति और ननद द्वारा परेशान किया जाता था। उन्होंने कथित तौर पर उसे ताने मारे और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, जिससे उसे आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने इस तथ्य को गंभीरता से लिया कि "वर्तमान मामला एक युवती की अप्राकृतिक मृत्यु की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसका विवाह 24.01.2025 को हुआ था और जिसके बारे में आरोप है कि उसने विकट परिस्थितियों में आत्महत्या की। इस तथ्यात्मक ढांचे को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता, क्योंकि कानून स्वयं इस प्रकार की अप्राकृतिक मौतों के लिए कानूनी उपधारणा (Preception) प्रदान करता है।"
पीठ ने आगे बताया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA, 2023) की धारा 117 के तहत, जब किसी महिला की शादी के कुछ ही समय बाद अप्राकृतिक मृत्यु हो जाती है, खासकर जहां उसके पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न के आरोप लगे हों तो ऐसे आचरण के आरोपी व्यक्तियों के विरुद्ध एक उपधारणा उत्पन्न होती है, जिससे स्पष्टीकरण का प्रारंभिक भार उन पर आ जाता है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि वैधानिक उपधारणा, विवाहित महिलाओं को क्रूरता और उत्पीड़न से बचाने के विधायिका के इरादे को रेखांकित करती है, जो उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसलिए वर्तमान मामले में विवाह की निकटता और मृत्यु की परिस्थितियों को देखते हुए न्यायालय आरोपों को हल्के में नहीं ले सकता या अग्रिम ज़मानत की असाधारण राहत नहीं दे सकता।
यह तर्क दिया गया कि मृतका अपने ससुराल वालों के साथ सुखपूर्वक रह रही थी, अपने परिवार के साथ नियमित संपर्क बनाए रखती थी और परिवारों के बीच कोई विवाद नहीं था। दहेज की माँग या उत्पीड़न का कोई सबूत नहीं है, यहां तक कि सुसाइड नोट भी याचिकाकर्ता को दोषी नहीं ठहराता।
इसके अलावा, यह भी तर्क दिया गया कि सह-आरोपियों को ज़मानत दी गई और याचिकाकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और उसके भागने का कोई खतरा नहीं है।
दूसरी ओर, राज्य के वकील ने दलील दी कि केवल सहयोग करने की इच्छा, आपराधिक इतिहास का अभाव, या यह तथ्य कि सह-आरोपियों को ज़मानत दे दी गई, विवाह के कुछ ही समय बाद एक युवा विवाहित महिला की अप्राकृतिक मृत्यु से जुड़े मामले में याचिकाकर्ता को अग्रिम ज़मानत की असाधारण राहत देने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकते।
दलील सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि धारा 46 का मूल यह है कि अभियुक्त का इरादा मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाना या उकसाना होना चाहिए।
BNS की धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए अपराध करने की स्पष्ट मंशा होनी चाहिए। इसके लिए एक सक्रिय या प्रत्यक्ष कृत्य भी आवश्यक है, जिससे मृतक को आत्महत्या के लिए प्रेरित किया जा सके और कोई अन्य विकल्प न होने पर भी ऐसा कृत्य होना चाहिए, जो अभियुक्त के मृतक को ऐसी स्थिति में धकेलने के इरादे को दर्शाता हो कि वह आत्महत्या कर ले।
न्यायालय ने सह-अभियुक्त, अर्थात् मृतक के ससुर, जिन्हें ट्रायल कोर्ट ने अग्रिम जमानत पर रिहा कर दिया है, उनके साथ समानता के आधार पर जमानत मांगने के तर्क को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की स्थिति समान नहीं है, क्योंकि सह-अभियुक्त का नाम शुरू में प्राथमिकी में नहीं था, बल्कि बाद में दर्ज किया गया।
आरोपों की गंभीरता, परिवार के कई सदस्यों की संलिप्तता तथा निष्पक्ष एवं गहन जांच सुनिश्चित करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा कि "इस स्तर पर याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ नहीं की जा सकती।"
Title: XXXX v. XXX

