पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने नाबालिग की हिरासत के गलत प्रबंधन के लिए बाल कल्याण अधिकारियों की खिंचाई की, संरक्षण का आदेश दिया और विस्तृत रिपोर्ट मांगी
Shahadat
15 Nov 2025 9:00 AM IST

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) के "उद्देश्यों से पूरी तरह विमुख" होकर कार्य करने के लिए हरियाणा के बाल कल्याण अधिकारियों की खिंचाई की। उनकी कार्रवाई ने एक 17 वर्षीय लड़की को संभावित खतरे में डाल दिया, जबकि उसे देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाली बच्ची घोषित किया गया।
उसी महीने की शुरुआत में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई, जिसके बाद उसे सुरक्षात्मक हिरासत में भेज दिया गया। हालांकि, बाद में अधिकारियों ने उसे "उसकी सहमति के बिना" उसके चाचा को सौंप दिया, जिससे वह फिर से भाग गई।
न्यायालय ने चंडीगढ़ के सीनियर पुलिस अधीक्षक को याचिकाकर्ता, जो अब 18 वर्ष की हो गई, उनको सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया, क्योंकि उसने अपने रिश्तेदारों से अपनी जान को लगातार खतरा बताया और एक ऐसे व्यक्ति के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की थी जिससे वह विवाह करना चाहती है।
जस्टिस विनोद भारद्वाज ने कहा,
"यह न्यायालय हरियाणा राज्य के बाल कल्याण अधिकारियों द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन के तरीके पर अपनी गहरी नाराजगी व्यक्त करता है।"
अदालत ने आगे कहा,
उनके कार्य किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के उद्देश्यों से विचलन दर्शाते हैं, जो बच्चों की सुरक्षा और कल्याण का संवेदनशील और तर्कसंगत मूल्यांकन अनिवार्य करता है। अधिनियम की भावना और उद्देश्य का पालन करने के बजाय उनका सद्विचार तर्कसंगतता और उचित विवेक के अभाव में धुंधला गया।"
यह याचिका शुरू में नाबालिग याचिकाकर्ता को उसके रिश्तेदारों से सुरक्षा प्रदान करने और उसके विरुद्ध किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने के निर्देश देने हेतु दायर की गई थी। 24.09.2025 को न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता—जो उस समय नाबालिग थी—किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के अंतर्गत देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाली बच्ची थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि उसके पिता की मृत्यु के बाद याचिकाकर्ता को उसकी माँ द्वारा उपेक्षा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उसे अपने निकटतम मित्र जसवंत सिंह से मदद लेनी पड़ी।
हालांकि, उसे पहले जिला बाल कल्याण अधिकारी, नूंह द्वारा बचाया गया। हालांकि, बाद में उसकी सहमति के बिना उसकी कस्टडी उसके चाचा को सौंप दी गई, जिससे वह और अधिक खतरे में पड़ गई और 22.09.2025 को एक बार फिर भाग गई।
इन आरोपों पर ध्यान देते हुए कोर्ट ने 24.09.2025 को उसे चंडीगढ़ स्थित आशियाना एवं स्नेहालय फॉर गर्ल्स में रखने का आदेश दिया। साथ ही राज्य को निर्देश दिया कि बाल गृहों में या अभिभावकों के पास रखे गए बच्चों के कल्याण और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मौजूद तंत्रों का विवरण देते हुए एक हलफनामा दाखिल करें।
कोर्ट ने पिछले पांच वर्षों में ऐसे गृहों से भागे बच्चों का डेटा भी मांगा था।
जब मामले की सुनवाई हुई तो न्यायालय ने पाया कि राज्य पहले के आदेश के अनुसार मांगी गई रिपोर्ट दाखिल करने में विफल रहा है।
अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए पीठ ने पाया कि हरियाणा के बाल कल्याण अधिकारियों ने किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के उद्देश्यों के विपरीत कार्य किया और उचित मूल्यांकन करने में विफल रहे हैं, जिससे याचिकाकर्ता संभावित खतरे में पड़ गया।
न्यायालय ने टिप्पणी की कि उनके आचरण में "तर्कसंगतता और उचित विवेक का अभाव" परिलक्षित होता है। निर्देश दिया कि आदेश की एक प्रति बाल कल्याण समिति के दोषी अधिकारियों के विरुद्ध उचित कार्रवाई के लिए हरियाणा के महिला एवं बाल कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को भेजी जाए।
याचिकाकर्ता अब वयस्क है। उनको उसके माता-पिता के साथ न्यायालय में पेश किया गया। पूछताछ के दौरान, उसने जसवंत सिंह के साथ रहने की अपनी इच्छा दोहराई और कहा कि उसे अभी भी अपने रिश्तेदारों से खतरा है।
उसका बयान दर्ज करते हुए न्यायालय ने चंडीगढ़ के सीनियर पुलिस अधीक्षक को निर्देश देते हुए याचिका का निपटारा कर दिया कि जब तक वह केंद्र शासित प्रदेश में रहती है, तब तक उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संबंधित थाना प्रभारी को निर्देश जारी करें।
हरियाणा महिला एवं बाल विकास विभाग के निदेशक द्वारा स्पष्ट निर्देशों के बावजूद हलफनामा दाखिल न करने को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने डीएचएफडब्ल्यूएस एसकेएस उपयोगकर्ता शुल्क सीएस कार्यालय, पंचकूला को ₹25,000 की लागत के भुगतान की शर्त पर, अनुपालन का अंतिम अवसर प्रदान किया।
आवश्यक अनुपालन के लिए अब इसे 12 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध किया गया।
Title: X v. State of Haryana

