कानून को समावेश की ओर झुकना चाहिए: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दृष्टिबाधित वन कर्मचारी को लाभ के साथ पिछली तारीख से प्रमोशन देने का निर्देश दिया
Shahadat
15 Dec 2025 5:57 PM IST

इस बात पर ज़ोर देते हुए कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 में बताए गए दिव्यांगता-आधारित भेदभाव से मुक्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार के समान गंभीरता और सुरक्षा के साथ माना जाना चाहिए - यह सुनिश्चित करते हुए कि किसी भी कर्मचारी को केवल दिव्यांगता के आधार पर विचार से बाहर न रखा जाए - पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को एक दृष्टिबाधित वन विभाग के कर्मचारी को वैधानिक दिव्यांगता कोटा के तहत पिछली तारीख से प्रमोशन और उसके साथ मिलने वाले लाभ देने का निर्देश दिया।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने कहा,
"एक दयालु राज्य की पहचान यह नहीं है कि वह मज़बूत लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है, बल्कि यह है कि वह उन लोगों को कैसे ऊपर उठाता है, जिन्हें परिस्थितियों ने कमज़ोर बना दिया। जब असमानता को खत्म करने के लिए बनाए गए वैधानिक अधिकारों को नौकरशाही की उदासीनता के कारण खत्म होने दिया जाता है तो कोर्ट को भावना से नहीं, बल्कि संविधान की नैतिकता के सम्मान में हस्तक्षेप करना चाहिए। समानता कोई यांत्रिक फॉर्मूला नहीं है, बल्कि एक मानवीय प्रतिबद्धता है। इसलिए कानून को समावेश की ओर झुकना चाहिए, ऐसा न हो कि विशेष रूप से सक्षम नागरिक अवसर के दरवाज़ों के बाहर खड़ा रह जाए, जिसकी चाबी संविधान ने उसे पहले ही दे दी है।"
याचिकाकर्ता हरियाणा वन विभाग का दृष्टिबाधित कर्मचारी 12.06.1998 को माली के पद पर नियुक्त हुआ। लागू सेवा नियमों के तहत अगला प्रमोशनल पद फॉरेस्ट गार्ड था, जिसके लिए वह 2003 में योग्य हो गया। हालांकि उसे कुछ शारीरिक मानकों में सरकार द्वारा छूट देने के बाद ही 13.08.2007 को प्रमोशन मिला।
अगला प्रमोशनल पद फॉरेस्टर था, जिसके लिए फॉरेस्ट गार्ड के रूप में दस साल का अनुभव और अनिवार्य प्रशिक्षण पूरा करना ज़रूरी था। याचिकाकर्ता 2013 में योग्य हो गया, लेकिन उसे 23.11.2021 को ही प्रमोशन मिला, वह भी राज्य द्वारा प्रशिक्षण की आवश्यकता में छूट देने के बाद।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि दिव्यांग व्यक्तियों (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 के तहत, जो 3% क्षैतिज आरक्षण अनिवार्य करता है, जिसमें 1% अंधापन या कम दृष्टि के लिए है, वह उन तारीखों से प्रमोशन के लिए विचार किए जाने का हकदार था जब वह योग्य हो गया। जुलाई, 2023 में हरियाणा सरकार ने दिव्यांग व्यक्तियों के लिए प्रमोशन में आरक्षण को 01.01.1996 से 18.04.2017 तक पिछली तारीख से लागू करने के निर्देश जारी किए। हाईकोर्ट के पिछले निर्देशों के बाद याचिकाकर्ता ने पिछली तारीख से प्रमोशन की मांग करते हुए एक रिप्रेजेंटेशन दिया, जिसे एडिशनल चीफ सेक्रेटरी ने 16.04.2024 को खारिज कर दिया, जिसके कारण यह रिट याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि 1995 का दिव्यांगता अधिनियम प्रमोशन में आरक्षण अनिवार्य करता है, जिसमें अंधेपन या कम दृष्टि वाले व्यक्तियों के लिए 1% आरक्षण शामिल है।
संबंधित वर्षों के दौरान याचिकाकर्ता फीडर कैडर में एकमात्र दृष्टिबाधित कर्मचारी था।
हरियाणा सरकार के 11.07.2023 के निर्देशों में दिव्यांगता आरक्षण को प्रमोशन में पिछली तारीख से स्पष्ट रूप से लागू किया गया।
राज्य ने तर्क दिया कि फॉरेस्ट गार्ड और फॉरेस्टर फील्ड-लेवल के पद हैं, जिनके लिए शारीरिक फिटनेस और पर्याप्त देखने की क्षमता की आवश्यकता होती है।
राज्य ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता ने शुरुआती पात्रता के समय निर्धारित योग्यताएं पूरी नहीं की थीं और उसे केवल विशेष छूट के बाद ही प्रमोशन दिया गया, जो भविष्य में लागू होती हैं।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने दिव्यांगता अधिकार ढांचे का व्यापक विश्लेषण किया, जिसमें 1995 के अधिनियम से लेकर दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 तक इसके विकास का पता लगाया गया। कोर्ट ने कहा कि दिव्यांगता अधिकार दान के कार्य नहीं हैं, बल्कि गरिमा, समानता और पूर्ण भागीदारी के संवैधानिक वादे की अभिव्यक्ति हैं।
रविंदर कुमार धारीवाल बनाम भारत संघ (2022) पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने दोहराया कि अनुच्छेद 14 के तहत समानता के औपचारिक और वास्तविक दोनों आयाम हैं। वास्तविक समानता प्राप्त करने के लिए उचित समायोजन आवश्यक है।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता 2003 में फॉरेस्ट गार्ड के पद पर और 2013 में फॉरेस्टर के पद पर प्रमोशन के लिए एलिजिबल हो गया। इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि वह संबंधित समय के दौरान फीडर कैडर में अकेला दृष्टिबाधित कर्मचारी था।
इसमें आगे कहा गया,
"कानूनी ढांचा साफ है, क्योंकि 1995 एक्ट की धारा 32 और 33 राज्य पर उपयुक्त पदों की पहचान करने और कम-से-कम 3% खाली पदों (जिसमें 1% अंधापन या कम दृष्टि के लिए शामिल है) को आरक्षित करने की अनिवार्य जिम्मेदारी डालती हैं।"
जज ने आगे कहा, 1995 एक्ट की धारा 32 और 33 राज्य पर दिव्यांग व्यक्तियों के लिए पदों की पहचान करने और खाली पदों को आरक्षित करने की अनिवार्य जिम्मेदारी डालती हैं। आरक्षण से छूट केवल एक औपचारिक नोटिफिकेशन के माध्यम से ही दी जा सकती है, न कि लंबित प्रस्तावों के माध्यम से।
इसमें कहा गया कि हरियाणा के 11.07.2023 के निर्देशों में साफ तौर पर प्रमोशन में दिव्यांगता आरक्षण को 01.01.1996 से 18.04.2017 की अवधि के लिए लागू किया गया, जिसमें याचिकाकर्ता की एलिजिबिलिटी के साल शामिल हैं। "2003 और 2013 में दिव्यांगता कोटा लागू न करना अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन था।"
उपरोक्त के आलोक में कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता शारीरिक रूप से दिव्यांगों के लिए 3% आरक्षण कोटे के तहत प्रमोशन का हकदार है। उसे 2003 से फॉरेस्ट गार्ड के पद पर और 2013 से फॉरेस्टर के पद पर काल्पनिक प्रमोशन दिया जाएगा।
जज ने आगे कहा,
"प्रमोशन के साथ परिणामी लाभ भी मिलेंगे, जिसमें वेतन निर्धारण और वरिष्ठता शामिल है। याचिकाकर्ता को मिलने वाले सभी वित्तीय लाभों पर उस तारीख से लेकर भुगतान की तारीख तक 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज लगेगा।"
Title: BHIM SINGH v. STATE OF HARYANA AND ORS

