पूर्व सैनिकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णयों का अनुपालन नहीं कर रहा केंद्र, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने की आलोचना

Avanish Pathak

5 Jun 2025 12:42 PM IST

  • पूर्व सैनिकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णयों का अनुपालन नहीं कर रहा केंद्र, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने की आलोचना

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भूतपूर्व सैनिकों के अधिकारों के प्रति असंवेदनशील रवैये के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की है। न्यायालय ने कहा कि सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अनुपालन न करने के कारण सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) पर मुकदमेबाजी का बोझ बढ़ रहा है।

    ज‌स्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस एचएस ग्रेवाल ने कहा,

    "हम प्रतिदिन भूतपूर्व सैनिकों को अपने अधिकारों के लिए एएफटी के पास जाते हुए देख रहे हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णयों द्वारा पहले ही स्पष्ट हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णयों का अनुपालन न करने के असंवेदनशीलता और रवैये के कारण एएफटी के साथ-साथ इस न्यायालय के समक्ष भी अनावश्यक मुकदमेबाजी का बोझ बढ़ रहा है। हम यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा अपने भूतपूर्व सैन्य कर्मियों के प्रति अपनाए गए दृष्टिकोण की निंदा करते हैं।"

    न्यायालय सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने भूतपूर्व सैन्य कर्मियों को विकलांगता पेंशन प्रदान की थी। केंद्र की ओर से उपस्थित वकील ने प्रस्तुत किया कि समीक्षा मेडिकल बोर्ड की तिथि अर्थात 06.03.2009 से विकलांगता पेंशन के विकलांगता तत्व को 50% तक पूर्णांकित करना अनुचित था।

    न्यायालय ने पाया कि एएफटी ने बकाया भुगतान का निर्देश देने के लिए केजेएस बुट्टर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [2011 एसटीपीएल (वेब) 316 एससी] में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय, साथ ही यूनियन ऑफ इंडिया बनाम राम अवतार, [सिविल अपील नंबर 418/2012 10.12.2014 को तय] के मामले में पारित अंतिम निर्णय का पालन किया।

    पीठ ने उल्लेख किया कि भूतपूर्व सैनिकों की विकलांगता का 06.03.2009 से 30% तक पुनर्मूल्यांकन किया गया था, जबकि राम अवतार (सुप्रा) में पारित अंतिम निर्णय के मद्देनजर इसे पूर्णांकित किया जाना आवश्यक था। हालांकि, याचिकाकर्ताओं द्वारा पूर्णांकन नहीं किया गया, जिसके कारण संबंधित भूतपूर्व सैनिकों ने एएफटी से संपर्क किया।

    एएफटी ने तदनुसार विकलांगता पेंशन के विकलांगता तत्व को 50% की दर से पूर्णांकन करने का आदेश पारित किया था, यह भी कहा।

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने एसएलपी नंबर 21084/2025 में पारित 09.05.2025 के अंतरिम आदेश के बारे में जानकारी दी, जिसका शीर्षक 'यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम आजाद सिंह' है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने आवेदन दाखिल करने से तीन वर्ष पूर्व बकाया राशि के लिए निर्देशों के संचालन पर रोक लगा दी है, जो यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सचिव और अन्य बनाम एसजीटी गिरीश कुमार और अन्य [सिविल अपील संख्या 6820-6824/2018] के माध्यम से पारित पहले के आदेश पर निर्भर करता है, जिसमें एएसजी के कहने पर कहा गया था कि मूल आवेदन दाखिल करने की तिथि से तीन वर्ष पूर्व की अवधि के लिए बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा।

    न्यायालय ने कहा कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल की सहमति को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आवेदन दाखिल करने से पहले केवल तीन वर्षों के लिए बकाया भुगतान के लिए निर्धारित कानून नहीं कहा जा सकता। न्यायालय ने कहा कि कानूनों की उदार व्याख्या की जानी चाहिए और दावे को केवल तीन वर्षों की अवधि तक सीमित करना न्याय का मखौल होगा। उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने कहा कि एएफटी ने बकाया राशि का लाभ देने का सही निर्णय लिया है। इस प्रकार न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया।

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