पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सड़क दुर्घटना पीड़ित को मुआवजे के तौर पर 1.3 करोड़ रुपये दिए, कहा- 'पीड़ित 20 साल से अधिक समय से मुआवजे से वंचित, देरी के लिए हमारी व्यवस्था जिम्मेदार'
Avanish Pathak
17 Feb 2025 8:59 AM

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सड़क दुर्घटना के एक पीड़ित को 1.3 करोड़ रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने उसे मुआवजा प्रदान करने में हुए विलंब के लिए न्यायिक प्रणाली को "जिम्मेदार" माना, कहा कि न्यायिक प्रणाली को आत्म-मूल्यांकन की आवश्यकता है।
पीड़ित व्यक्ति को सड़क दुर्घटना में पेल्विक फ्रैक्चर यूरिथ्रल इंजरी हुई थी, जिसके कारण वह स्थायी रूप से विकलांग हो गया। हालांकि उसे "उचित मुआवजा" तय करने में 24 साल का समय लिया, जिसके मद्देनजर हाईकोर्ट उसके मुआवजे में बढ़ोतरी का फैसला किया। न्यायाधिकरण ने पीड़ित को सात लाख रुपये मुआवजा दिया था, जिसे हाईकोर्ट ने बढ़ाकर 1.3 करोड़ रुपये कर दिया।
जस्टिस संजय वशिष्ठ ने अपने आदेश में कहा,
"यह मामला एक ऐसा लोकस क्लासिकस है, जिसमें घायल-पीड़ित को दो दशकों (कुल 24 वर्षों से अधिक) से उचित मुआवजे से वंचित रखा गया है, जिसका अवॉर्ड देना मोटर वाहन अधिनियम, 1988 का प्राथमिक उद्देश्य है। दुर्भाग्य से, इस तरह की देरी के लिए हमारी प्रणाली को छोड़कर किसी और पर जिम्मेदारी नहीं डाली जा सकती है, जिसके लिए आत्मनिरीक्षण और आत्म-मूल्यांकन की आवश्यकता होती है, ताकि खुद को जल्दी निर्णय लेने के लिए तैयार किया जा सके, खासकर उन मामलों में जिनमें दर्दनाक या संवेदनशील विषय शामिल होते हैं।"
डॉक्टरों की गवाही पर विचार करते हुए, कोर्ट ने पाया कि पीड़िता 2000 में दुर्घटना के दिन से लेकर 2022 तक लगातार उपचाराधीन थी।
कोर्ट ने कहा,
"डॉक्टर ने यह भी स्पष्ट किया कि पेल्विक फ्रैक्चर यूरिथ्रल इंजरी से जुड़े इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के कारण रोगी का सामान्य जीवन और अन्य सामान्य गतिविधियां जैसे यौन गतिविधियां आदि निश्चित रूप से प्रभावित होंगी।"
कोर्ट मौजूदा याचिका के तहत ट्रिब्यूनल के उस आदेश को दी गई चुनौती पर सुनवाई कर रहा थी, जिसके तहत 2004 में पीड़ित को याचिका दायर करने की तारीख से लेकर उसके भुगतान तक 9% प्रति वर्ष की दर से ब्याज सहित कुल 7,62,000 रुपये का मुआवजा दिया गया था।
अपील के लंबित रहने के दरमियान दावेदार की ओर से एक आवेदन दायर किया गया था, जिसमें पीजीआई, चंडीगढ़ के चिकित्सा अधीक्षक को दावेदार की स्थायी विकलांगता का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश दिया गया था।
हाईकोर्ट ने आगे उल्लेख किया कि दावेदार ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की थी, जिसे 2005 में स्वीकार कर लिया गया था और तब से "किसी न किसी बहाने" कोई निर्णय नहीं हुआ है। प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न ऐतिहासिक निर्णयों को नोट किया "दावेदार को मिलने वाले मुआवजे की उचित राशि तय करने के लिए, विशेष रूप से मोटर वाहन अधिनियम, 1988 को लागू करते समय विधायिका के विधायी इरादे के आलोक में।"
हरियाणा राज्य और अन्य बनाम जसबीर कौर और अन्य (2003) का हवाला देते हुए यह रेखांकित किया गया कि वैधानिक प्रावधान स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि मुआवज़ा न्यायसंगत होना चाहिए और यह मुफ़्त नहीं हो सकता; लाभ का स्रोत नहीं, लेकिन यह मामूली राशि भी नहीं होनी चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि नुकसान के उपायों को सटीक गणितीय गणनाओं द्वारा नहीं निकाला जा सकता है। यह विशेष तथ्यों और परिस्थितियों, और यदि कोई हो तो विशेष और विशिष्ट विशेषताओं पर निर्भर करेगा।
जस्टिस वशिष्ठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दुर्घटना के समय घायल की आयु 17 वर्ष थी, 18 का गुणक लागू होता है और 18 के गुणक को लागू करने पर भविष्य की कमाई का कुल नुकसान 09,07,200 रुपये होगा।
इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि यद्यपि चिकित्सक द्वारा बताई गई विकलांगता “शायद 86% स्थायी विकलांगता” है, लेकिन रिकॉर्ड पर सिद्ध तथ्य स्पष्ट रूप से बताते हैं कि दावेदार के आंतरिक अंगों में चोट लगी है और मूत्राशय लगभग क्षतिग्रस्त हो गया है तथा आंत में चोट लगने के कारण बाएं पैर को काटना पड़ा है। इसलिए, दावेदार/अपीलकर्ता को देय मुआवजे की राशि की गणना करने के उद्देश्य से, विकलांगता को 100% शारीरिक विकलांगता माना जाएगा।
न्यायाधीश ने पीड़ित की भविष्य की कमाई की हानि, चिकित्सा व्यय (अस्पताल में भर्ती होने के खर्च सहित), भविष्य के चिकित्सा व्यय, परिचारक शुल्क, विशेष आहार, परिवहन, दर्द और पीड़ा, आनंद की हानि, सुख-सुविधाओं और वैवाहिक सुख की हानि जैसे कुछ मापदंडों पर ध्यान दिया।
परिणामस्वरूप, न्यायालय ने कहा, "लाभप्रद कानून के उद्देश्यों और उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए" यानि पीड़ित या आश्रित परिवार के सदस्यों को पर्याप्त राहत प्रदान करने के लिए, कुल मुआवजा राशि जिसका अपीलकर्ता/दावेदार हकदार है, वह 1,31,47,200/- रुपये (एक करोड़ इकतीस लाख सैंतालीस हजार दो सौ रुपये मात्र) है।"
केस टाइटलः गगनदीप @ मोंटी बनाम सुखबीर सिंह और अन्य