ज्यूडिशियरी एग्जाम में न्यूनतम अंक निर्धारित करना आवश्यक, अन्यथा मानक कमजोर हो जाएंगे: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Avanish Pathak

19 March 2025 5:58 AM

  • ज्यूडिशियरी एग्जाम में न्यूनतम अंक निर्धारित करना आवश्यक, अन्यथा मानक कमजोर हो जाएंगे: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जिला न्यायपालिका परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए निर्धारित न्यूनतम अंक "न्यायपालिका में नियुक्ति के इच्छुक उम्मीदवार के गुणों एवं क्षमताओं का निर्धारण करने के लिए अनुमेय है।"

    हरियाणा जिला न्यायपालिका परीक्षा में उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा एवं मौखिक परीक्षा में कुल 1000 अंकों में से कम से कम 50% अर्थात 500 अंक प्राप्त करने की आवश्यकता थी।

    चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुमित गोयल ने कहा,

    "इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह आवश्यक हो सकता है, क्योंकि यह अनिवार्य है कि केवल निर्धारित न्यूनतम गुणों/क्षमताओं वाले व्यक्तियों का ही चयन किया जाना चाहिए, अन्यथा न्यायपालिका का मानक कमजोर हो जाएगा और घटिया उम्मीदवार चयनित हो सकते हैं।"

    पीठ ने आगे बताया कि, यह चयन प्राधिकारी के विशेषाधिकार के अंतर्गत आता है कि वह ऐसे मानदंड निर्धारित करे जो उच्चतम क्षमता वाले उम्मीदवारों की भर्ती सुनिश्चित करते हैं, विशेष रूप से महत्वपूर्ण न्यायिक जिम्मेदारी वाले पद के लिए, क्योंकि किसी दिए गए पद के लिए आवश्यक योग्यता निर्धारित करने की शक्ति चयन प्राधिकारी की अंतर्निहित विशेषता है।

    पीठ की ओर से बोलते हुए जस्टिस गोयल ने कहा कि, "किसी विशेष पद के लिए उम्मीदवार की उपयुक्तता का आकलन करने के लिए साक्षात्कार भी सबसे अच्छा तरीका और सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है, क्योंकि यह उम्मीदवारों के समग्र बौद्धिक गुणों और उनके पास मौजूद न्यायिक स्वभाव को सामने लाता है।"

    कोर्ट ने कहा,

    "जबकि लिखित परीक्षा उम्मीदवार के शैक्षणिक ज्ञान की गवाही देगी, मौखिक परीक्षा सतर्कता, संसाधनशीलता, भरोसेमंदता, चर्चा करने की क्षमता, निर्णय लेने की क्षमता, नेतृत्व के गुण आदि जैसे समग्र बौद्धिक और व्यक्तिगत गुणों को सामने ला सकती है या प्रकट कर सकती है, जो एक न्यायिक अधिकारी के लिए भी आवश्यक हैं।"

    अदालत राजेश गुप्ता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 2015 में विज्ञापित अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीशों के पद के लिए हरियाणा सुपीरियर न्यायिक सेवाओं की चयन प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी। गुप्ता न्यूनतम योग्यता अंकों से 33 अंक कम रह गए।

    गुप्ता की ओर से पेश हुए वकील एडवोकेट आरएन लोहान ने तर्क दिया कि चूंकि संविधान के अनुच्छेद 309 और 2007 में बनाए गए नियमों में अंतिम चयन के लिए न्यूनतम अंकों की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है, इसलिए हाईकोर्ट चयन के लिए ऐसा नहीं कर सकता था।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि चयन प्रक्रिया के संदर्भ में कोई न्यूनतम अंक निर्धारित नहीं किए जा सकते, क्योंकि यह उम्मीदवारों के बीच प्रतिस्पर्धात्मक प्रकृति का है।

    इस तर्क को खारिज करते हुए न्यायालय ने अभिमीत सिन्हा एवं अन्य बनाम पटना हाईकोर्ट एवं अन्य का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि मौखिक परीक्षा में न्यूनतम अंकों का निर्धारण कानून के सिद्धांतों के अनुरूप है।

    न्यायालय ने कहा, "यह आदेश लिखित परीक्षा में न्यूनतम अर्हक अंक निर्धारित करने की शर्त के साथ-साथ लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा के योग पर भी लागू होगा।"

    न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि, "न्यूनतम 50% अंक प्राप्त करने की आवश्यकता केवल एक प्रक्रियात्मक औपचारिकता नहीं है; न ही एक ऐसी सीमा है जिसे न्यायिक विवेक पर अनदेखा किया जा सकता है; बल्कि, यह पात्रता के लिए एक अनिवार्य शर्त है।"

    इसके अलावा, कोर्ट ने तर्क दिया कि, "एक वादी जिसके पास नियुक्तियों के लिए आधारभूत पात्रता का अभाव है, वह दूसरों के चयन और नियुक्ति को चुनौती देने से पूरी तरह से अयोग्य है, विशेष रूप से क्वो वारंटो के दिखावटी आह्वान के तहत।"

    चयन प्रक्रिया में अर्हता प्राप्त करने के लिए अनुग्रह अंक प्रदान करने की दलील पर, न्यायालय ने कहा, "निर्धारित सीमा में छूट के लिए याचिकाकर्ता की दलील पूरी तरह से कानूनी आधार से रहित है, क्योंकि यह एक सुस्थापित सिद्धांत है कि पात्रता की शर्तें, एक बार कानूनी रूप से निर्धारित होने के बाद, किसी व्यक्तिगत उम्मीदवार की आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिए कम, कमजोर या अनुकूलित नहीं की जा सकती हैं।"

    इस प्रकार, सार्वजनिक नियुक्तियों के क्षेत्र में, बिना किसी तर्कसंगत औचित्य के अतिरिक्त या अनुग्रह अंक प्रदान करना, निष्पक्षता और समानता के पवित्र सिद्धांतों से एक गंभीर विचलन होगा, न्यायालय ने कहा।

    पीठ ने कहा कि, "किसी विशेष उम्मीदवार को दी गई ऐसी मनमानी रियायत, अनुच्छेद 14 और 16 के तहत निहित संवैधानिक गारंटियों की घोर अवहेलना होगी, जो यह अनिवार्य करती है कि सभी उम्मीदवारों को सार्वजनिक रोजगार के मामलों में समान व्यवहार दिया जाए।"

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