केवल FIR दर्ज होना पदोन्नति रोकने का आधार नहीं: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट
Shahadat
16 Sept 2025 10:52 AM IST

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने कहा कि केवल FIR दर्ज होना आपराधिक कार्यवाही का लंबित होना नहीं माना जाता है और पदोन्नति केवल आरोप-पत्र दाखिल होने या आरोप तय होने के बाद ही रोकी जा सकती है।
पृष्ठभूमि तथ्य
सेवा के दौरान, याचिकाकर्ता के पक्ष में जूनियर कमीशंड अधिकारी (JCO) के पद पर पदोन्नति के लिए दिनांक 25.05.2022 को पदोन्नति आदेश जारी किया गया। हालांकि, प्रतिवादियों द्वारा इस आधार पर पदोन्नति लागू नहीं की गई कि याचिकाकर्ता के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। अधिकारियों ने सेना के आदेश के खंड 3(ए) का हवाला देते हुए FIR दर्ज होने को आपराधिक कार्यवाही का लंबित होना माना। इसलिए पदोन्नति रोक दी गई।
याचिकाकर्ता ने पदोन्नति आदेश के कार्यान्वयन न होने को चुनौती देते हुए सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल, क्षेत्रीय पीठ, चंडीगढ़ का दरवाजा खटखटाया। ट्रिब्यूनल ने 14.12.2023 के आदेश द्वारा याचिकाकर्ता का दावा खारिज कर दिया। इसने प्राधिकारियों के इस तर्क को बरकरार रखा कि लंबित प्राथमिकी याचिकाकर्ता को पदोन्नति का लाभ लेने से वंचित करती है।
ट्रिब्यूनल के आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि याचिकाकर्ता का दावा सेना के आदेश की धारा 3(ए) के अंतर्गत नहीं आता। हालांकि, प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता के विरुद्ध दर्ज FIR को उत्पीड़न का सामना कर रही आपराधिक कार्यवाही के रूप में माना और पदोन्नति रोकने के लिए याचिकाकर्ता के मामले को सेना के आदेश की धारा 3(ए) के अंतर्गत आने वाला बताया।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने दलील दी कि याचिकाकर्ता की पदोन्नति लागू नहीं की जा सकती, क्योंकि उसके विरुद्ध पहले ही FIR दर्ज की जा चुकी है, जो सेना के आदेश की धारा 3(ए) के अनुसार आपराधिक कार्यवाही के लंबित रहने के समान है। आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल ने सही निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता FIR के लंबित रहने के दौरान पदोन्नति का लाभ पाने का हकदार नहीं है।
न्यायालय के निष्कर्ष
अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता को 25.05.2022 के आदेश द्वारा जूनियर कमीशंड अधिकारी (JCO) के पद पर पहले ही पदोन्नत किया जा चुका था। हालांकि, उसके खिलाफ दर्ज FIR के आधार पर पदोन्नति रोक दी गई। यह माना गया कि केवल FIR दर्ज होने से सेना आदेश के खंड 3(ए) के तहत पदोन्नति से इनकार करने के उद्देश्य से आपराधिक कार्यवाही लंबित नहीं मानी जा सकती।
अदालत ने भारत संघ बनाम के.वी. जानकीरमन मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आपराधिक कार्यवाही तभी लंबित मानी जा सकती है, जब अदालत में आरोप-पत्र दायर किया गया हो और संज्ञान लिया गया हो। अनुशासनात्मक कार्यवाही तभी लंबित मानी जा सकती है, जब अपराधी को आरोप-पत्र दिया गया हो।
यह भी देखा गया कि प्रतिवादियों ने 15.01.2024 के अपने पत्र में स्वीकार किया कि कथित अपराध का कोई संज्ञान नहीं लिया गया। याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई आरोप तय नहीं किए गए। इसलिए प्रतिवादियों द्वारा FIR को आपराधिक कार्यवाही के लंबित होने के रूप में मानने और पदोन्नति आदेश को रोकने का कार्य कानून के विपरीत पाया गया।
न्यायालय ने माना कि सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल द्वारा पारित 14.12.2023 का आदेश विकृत था और उसे कायम नहीं रखा जा सकता। तदनुसार, उसे रद्द कर दिया गया। इसके अलावा, अदालत ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता को 25.05.2022 के आदेश के अनुसार जूनियर कमीशंड अधिकारी (JCO) के पद पर पदोन्नत मानें, जिसमें वेतन और सेवा-संबंधी अधिकारों सहित सभी परिणामी लाभ शामिल हों।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका को अनुमति दी गई और प्रतिवादियों को आठ सप्ताह के भीतर आदेश का पालन करने का निर्देश दिया गया।

