लॉरेंस बिश्नोई का जेल से साक्षात्कार | P&H हाईकोर्ट ने पॉलीग्राफ टेस्ट की अनुमति के खिलाफ दायर पुलिस अधिकारियों की याचिका खारिज की

Avanish Pathak

11 July 2025 8:34 AM

  • लॉरेंस बिश्नोई का जेल से साक्षात्कार | P&H हाईकोर्ट ने पॉलीग्राफ टेस्ट की अनुमति के खिलाफ दायर पुलिस अधिकारियों की याचिका खारिज की

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने जेल से लॉरेंस बिश्नोई के ‌लिए गए इंटरव्यू मामले में उन पर पॉलीग्राफ परीक्षण की अनुमति संबंधी आदेश को चुनौती दी थी।

    उल्लेखनीय है कि गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई का पंजाब के खरड़ स्थित सीआईए स्टाफ थाने में हिरासत के दरमियान एक साक्षात्कार लिया गया था, जिस पर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था। जिसके बाद जेल अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।

    ज‌स्टिस एनएस शेखावत ने कहा,

    "सभी याचिकाकर्ताओं को उनके वकील से मिलने की अनुमति दी गई थी और कानूनी सलाह लेने के बाद, सभी याचिकाकर्ता जेएमआईसी, मोहाली के समक्ष बयान देने के लिए सहमत हुए थे। यहां तक कि, याचिकाकर्ताओं को अदालत द्वारा स्वेच्छा से पॉलीग्राफ़ परीक्षण कराने की कानूनी शर्तों से भी अवगत कराया गया था। वैसे भी, सहमति प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज की गई थी और ऐसी कार्यवाही हमेशा पवित्रता से जुड़ी होती है।"

    अदालत ने आगे कहा कि, यह स्पष्ट है कि मजिस्ट्रेट ने यह सत्यापित किया होगा कि बयान किसी दबाव, जबरदस्ती या धमकी के तहत नहीं दिए गए थे।

    अदालत ने आगे कहा, "वैसे भी, बयान मजिस्ट्रेट ने स्वयं दर्ज किए थे और केवल इस तथ्य के कारण कि अदालत द्वारा अंतिम आदेश पारित करते समय, 'एसआईटी' का कोई सदस्य अदालत में मौजूद था, कोई फर्क नहीं पड़ता।"

    इन्होंने दायर की थी याचिका

    यह याचिका कांस्टेबल सिमरनजीत सिंह सहित कुछ पुलिस अधिकारियों ने दायर की थी, जो मामले में आरोपी डीएसपी गुरशेर सिंह संधू के साथ तैनात थे, जिन्हें मामले की जांच के दौरान बर्खास्त कर दिया गया था।

    पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 384, 201, 202, 506, 116 और 120-बी और कारागार अधिनियम (पंजाब संशोधन अधिनियम), 2011 की धारा 52-ए (1) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। विशेष डीजीपी प्रबोध कुमार को 'एसआईटी' का प्रमुख बनाया गया था, जिन्होंने मामले की जांच अपने हाथ में ले ली थी।

    याचिकाकर्ताओं की दलील

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि निचली अदालत और पुनरीक्षण अदालत ने कानून के उस आदेश की पूरी तरह से अनदेखी की है, जैसा कि सेल्वी एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य, (2010) 7 एससीसी 263 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है।

    उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ताओं से दबाव में सहमति ली गई और आवेदन को गलत तरीके से स्वीकार किया गया। उन्होंने कहा कि पॉलीग्राफ़ परीक्षण से पहले ही,

    याचिकाकर्ताओं ने अपने व्यक्तिगत हलफ़नामे दायर कर दिए थे और पुनरीक्षण अदालत के समक्ष अपनी सहमति वापस ले ली थी। यह भी तर्क दिया गया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उनके बयान दर्ज किए जाने के समय याचिकाकर्ताओं के वकील मौजूद नहीं थे।

    राज्य की दलील

    दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि इससे पहले भी याचिकाकर्ता पांच अप्रैल, 2025 को जेएमआईसी, मोहाली की अदालत में पेश हुए थे और उस दिन सभी याचिकाकर्ताओं के बयान दर्ज किए गए थे। अधिकांश याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि वे उस समय पॉलीग्राफ़ टेस्ट कराने के इच्छुक नहीं थे क्योंकि वे अपने कानूनी सलाहकार से परामर्श करना चाहते थे और उन्हें अपने वकील से परामर्श के लिए समय दिया जा सकता है।

    इसके बाद, याचिकाकर्ताओं ने अपने वकील से परामर्श किया और 16.04.2025 को याचिकाकर्ताओं का पॉलीग्राफ़ टेस्ट कराने के लिए एक आवेदन दायर किया गया। न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने सभी याचिकाकर्ताओं के बयान दर्ज किए और उन्होंने बिना किसी दबाव के, अपनी इच्छा से पॉलीग्राफ़ टेस्ट कराने के लिए सहमति दे दी थी।

    कोर्ट का निर्णय

    प्रस्तुतियां सुनने के बाद, न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने पॉलीग्राफ़ परीक्षण कराने के लिए सहमति संबंधि एक आवेदन प्रस्तुत किया था और प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने सभी याचिकाकर्ताओं के अलग-अलग बयान दर्ज किए और उक्त सहमति के आधार पर, पॉलीग्राफ़ परीक्षण के लिए आवेदन स्वीकार कर लिया गया।

    याचिकाकर्ताओं के बयानों पर गौर करते हुए, न्यायालय ने कहा कि, "प्रत्येक याचिकाकर्ता की ओर से मजिस्ट्रेट के समक्ष अलग-अलग दिए गए बयान से, यह स्पष्ट है कि सभी याचिकाकर्ताओं को उनके वकील से मिलने की अनुमति दी गई थी और कानूनी सलाह लेने के बाद, सभी याचिकाकर्ता जेएमआईसी, मोहाली के समक्ष बयान देने के लिए सहमत हुए थे।"

    जस्टिस शेखावत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि, "यहां तक कि, याचिकाकर्ताओं को न्यायालय द्वारा स्वेच्छा से पॉलीग्राफ़ परीक्षण कराने की वैधता से भी अवगत कराया गया था।"

    यह कहते हुए कि, "पुनरीक्षण न्यायालय की ओर से दर्ज किए गए निष्कर्ष और वे किसी भी भौतिक अनियमितता या अवैधता से ग्रस्त नहीं हैं," याचिका खारिज कर दी गई।

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