केरल हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों द्वारा कथित बलात्कार के मामले में एफआईआर दर्ज न करने का आरोप लगाने वाली महिला की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा

Amir Ahmad

27 Sep 2024 6:12 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों द्वारा कथित बलात्कार के मामले में एफआईआर दर्ज न करने का आरोप लगाने वाली महिला की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा

    केरल हाईकोर्ट ने केरल के मलप्पुरम जिले में चार उच्च पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज न करने का आरोप लगाने वाली महिला द्वारा दायर याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा, जिन्होंने उसके साथ बलात्कार और यौन उत्पीड़न किया।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने बलात्कार जैसे संज्ञेय अपराधों के आरोप होने पर एफआईआर दर्ज न करने के कृत्य की निंदा की। उन्होंने मौखिक रूप से कहा कि सरकार और पुलिस अधिकारी महिला की शिकायत के आधार पर आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ निष्पक्ष जांच करने के लिए बाध्य हैं।

    याचिकाकर्ता ने मलप्पुरम जिले के उच्च पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 375, धारा 376 (2), 377, 354, 354ए, 354बी, 354डी, 506, 446, 450 के साथ धारा 34 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया।

    याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि मलप्पुरम में स्थानीय स्टेशन हाउस ऑफिसर, जिला पुलिस प्रमुख और न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट, पोन्नानी के समक्ष शिकायत दर्ज कराने के बावजूद आरोपी के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। उसने आरोप लगाया कि पुलिस गवाहों से बयान ले रही थी और एफआईआर दर्ज किए बिना अनौपचारिक जांच कर रही थी।

    याचिकाकर्ता का तर्क है कि एफआईआर दर्ज किए बिना प्रारंभिक जांच करना ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।

    याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि BNSS की धारा 175 (4) के अनुसार रिपोर्ट का इंतजार किए बिना आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ अपराध दर्ज किया जा सकता है। भले ही आरोपी व्यक्ति लोक सेवक हों। उनका दावा कि आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए, क्योंकि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के थे। किसी सार्वजनिक कर्तव्य के निर्वहन के दौरान नहीं किए गए।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरोपियों को लोक सेवक होने के कारण छूट नहीं मिलनी चाहिए, क्योंकि उनके द्वारा किए गए कृत्य उनके सार्वजनिक कर्तव्यों से संबंधित नहीं थे। उनकी व्यक्तिगत क्षमता में किए गए थे।

    याचिकाकर्ता एफआईआर दर्ज करने के लिए परमादेश रिट की मांग करता है। याचिकाकर्ता ने आगे प्रार्थना की है कि एफआईआर का रजिस्ट्रेशन और गवाहों के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभिन्न निर्णयों के माध्यम से निर्धारित कानून के अनुसार होनी चाहिए।

    यह याचिका एडवोकेट मुहम्मद फिरदौज ए.वी. द्वारा दायर की गई।

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