नियोक्ता द्वारा स्क्रीनिंग न करने के कारण 10+ वर्ष की सेवा वाले रेलवे कर्मचारियों को पारिवारिक पेंशन देने से इनकार नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Shahadat

8 Sept 2025 11:22 AM IST

  • नियोक्ता द्वारा स्क्रीनिंग न करने के कारण 10+ वर्ष की सेवा वाले रेलवे कर्मचारियों को पारिवारिक पेंशन देने से इनकार नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने कहा कि अस्थायी दर्जा पाने वाले और मृत्यु से पहले 10 वर्ष से अधिक की अर्हक सेवा प्रदान करने वाले रेलवे कर्मचारी फैमिली पेंशन योजना, 1964 के तहत पारिवारिक पेंशन लाभों का हकदार है, भले ही उसकी औपचारिक स्क्रीनिंग न की गई हो, अर्थात पूर्ण लाभों की पात्रता के लिए उसका मूल्यांकन और नियमित सेवा में पुष्टि न की गई हो। इसके अलावा, यह भी माना गया कि पेंशन का दावा करने में देरी कोई बाधा नहीं है, क्योंकि यह एक सतत कार्यवाही का कारण है।

    पृष्ठभूमि तथ्य

    प्रतिवादी के पति को वर्ष 1978 में रेलवे में अस्थायी मजदूर के रूप में नियुक्त किया गया था। 1983 में उन्हें अस्थायी दर्जा दिया गया और वह सेवा करते रहे। अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए दुर्भाग्य से फरवरी, 1999 में एक रेल दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के समय उन्होंने कुल 21 वर्ष से अधिक सेवा की थी, जिसमें अस्थायी दर्जा प्राप्त करने के बाद के 16 वर्ष भी शामिल थे। प्रतिवादी (मृतक कर्मचारी की पत्नी) ने फैमिली पेंशन योजना, 1964 के अंतर्गत फैमिली पेंशन का दावा किया था। हालांकि, रेलवे अधिकारियों ने इस आधार पर लाभ देने से इनकार किया कि मृतक की मृत्यु से पहले नियमितीकरण के लिए स्क्रीनिंग नहीं की गई। इस इनकार से व्यथित होकर प्रतिवादी ने मूल आवेदन दायर करके केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया। न्यायाधिकरण ने दावा स्वीकार कर लिया और अधिकारियों को प्रतिवादी को फैमिली पेंशन प्रदान करने का निर्देश दिया।

    न्यायाधिकरण के 03.08.2018 के आदेश से व्यथित होकर भारत संघ ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि प्रतिवादी के पति की उनकी सेवा के दौरान नियमितीकरण के लिए कभी स्क्रीनिंग नहीं की गई। तर्क दिया गया कि फैमिली पेंशन योजना, 1964 के अंतर्गत पात्र होने के लिए स्क्रीनिंग आवश्यक है। स्क्रीनिंग होने से पहले ही मृतक कर्मचारी की मृत्यु हो गई। इसलिए फैमिली पेंशन का लाभ नहीं दिया जा सकता था।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी ने दलील दी कि उसके पति वर्ष 1978 से अस्थायी श्रमिक के रूप में कार्यरत थे, जिस दिन उनकी मृत्यु एक रेल दुर्घटना में हुई, उस दिन उनकी सेवा अवधि 21 वर्ष से अधिक थी। यह तर्क दिया गया कि उनकी मृत्यु अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए हुई। फिर भी प्रतिवादी को फैमिली पेंशन का लाभ नहीं दिया गया, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से गलत कार्य है। यह भी तर्क दिया गया कि लाभ प्रदान करने वाला न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश पूरी तरह से वैध और कानूनी है।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    न्यायालय ने यह पाया कि रेलवे बोर्ड द्वारा जारी दिनांक 26.10.1965 के पत्र के अनुसार, अस्थायी श्रमिक, नियमित प्रतिष्ठान में अस्थायी पद पर आमेलन पर फैमिली पेंशन योजना, 1964 के अंतर्गत फैमिली पेंशन पाने का हकदार है, यदि उसने अस्थायी पद के लिए पात्र होने हेतु छह महीने अस्थायी श्रमिक के रूप में और उसके बाद के अस्थायी पद पर एक वर्ष कार्य किया हो।

    यह भी देखा गया कि प्रतिवादी के पति की आकस्मिक सेवा वर्ष 1978 में शुरू हुई थी। उन्हें वर्ष 1983 में अस्थायी दर्जा प्रदान किया गया था। अस्थायी दर्जा प्राप्त करने के बाद उन्होंने 16 वर्षों तक सेवा की। इसलिए प्रतिवादी 1964 की फैमिली पेंशन योजना के अंतर्गत पेंशन लाभ प्राप्त करने का हकदार था। न्यायालय ने यह भी देखा कि वर्ष 1983 में प्रतिवादी के पति को अस्थायी दर्जा प्रदान करने के बाद याचिकाकर्ताओं के पास उनकी स्क्रीनिंग के लिए 16 वर्षों की अवधि उपलब्ध थी। याचिकाकर्ताओं ने इस अवधि के दौरान कभी भी उनके पति की स्क्रीनिंग नहीं की। इसके अलावा, यह भी देखा गया कि प्रतिवादी के पति की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो गई और वह भी एक रेल दुर्घटना में। यह माना गया कि प्रतिवादी को पेंशन का लाभ देने से इनकार करना पूरी तरह से मनमाना और अवैध है तथा 1964 की पारिवारिक पेंशन योजना के विपरीत है।

    याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत राम काली बनाम केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, चंडीगढ़ पीठ व अन्य के मामले में न्यायालय ने यह माना कि अस्थायी दर्जा दिए जाने के बाद भी कर्मचारी ने आवश्यक 10 वर्ष की अर्हक सेवा पूरी नहीं की, इसलिए फैमिली पेंशन देने से इनकार कर दिया गया।

    न्यायालय ने यह माना कि प्रतिवादी के पति को 1983 में अस्थायी दर्जा दिया गया और उन्होंने 16 वर्ष सेवा की, जो आवश्यक 10 वर्ष की अर्हक सेवा से कहीं अधिक है। इसलिए राम काली के मामले का निर्णय वर्तमान मामले पर लागू नहीं होता। न्यायालय ने यह माना कि अस्थायी दर्जा प्राप्त करने के बाद प्रतिवादी के पति ने 16 वर्ष सेवा की। केवल इस आधार पर कि याचिकाकर्ताओं ने इस अवधि के दौरान उनकी स्क्रीनिंग नहीं की, प्रतिवादी के पेंशन का लाभ पाने के अधिकार को नहीं छीना जाएगा, जो अस्थायी कर्मचारी को 10 वर्ष की सेवा करने के बाद दिया जाता है।

    इसके अलावा, याचिकाकर्ता की यह दलील कि प्रतिवादी ने पेंशन का दावा करने में देरी की थी, न्यायालय ने मिस्टर एम.एल. पाटिल (मृत) बनाम गोवा राज्य व अन्य के मामले में एलआर के माध्यम से दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए खारिज कर दिया, जिसमें यह माना गया कि पेंशन प्रदान करने के लिए देरी का आधार लागू नहीं होता, क्योंकि यह एक सतत वाद-कारण है।

    अतः, न्यायाधिकरण द्वारा पारित दिनांक 03.08.2018 के आदेश को, जो नियमों या विनियमों के प्रतिकूल नहीं था, न्यायालय ने बरकरार रखा। न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे कर्मचारी की 1978 से उसकी मृत्यु तक की कुल सेवा पर विचार करें, स्वीकार्य लाभों की गणना करें और पत्नी को 16.09.2023 को उसकी मृत्यु तक फैमिली पेंशन जारी करें। इसके बाद यह लाभ अविवाहित पुत्री को भी दिया जाएगा। पूरी प्रक्रिया आठ सप्ताह के भीतर पूरी करने का निर्देश दिया गया।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका खारिज कर दी गई।

    Case Name : Union of India and others vs Central Administrative Tribunal, Chandigarh and others

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