आरोपी के रिश्तेदारों को फंसाना उत्पीड़न का जरिया बन सकता है: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट

Praveen Mishra

30 Oct 2025 9:27 AM IST

  • आरोपी के रिश्तेदारों को फंसाना उत्पीड़न का जरिया बन सकता है: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने यह चेतावनी दी है कि कई बार शिकायतकर्ता आपराधिक मामलों में मुख्य आरोपी के दोस्तों और रिश्तेदारों को भी झूठे तौर पर फंसा देते हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया उत्पीड़न का साधन बन जाती है।

    जस्टिस सुमीत गोयल ने धारा 319 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत दाखिल अभियोजन की अर्जी खारिज होने के खिलाफ दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा —

    “अदालत यह अच्छी तरह जानती है कि कई बार शिकायतकर्ता मुख्य आरोपियों से जुड़े अन्य लोगों — जैसे परिवारजनों, रिश्तेदारों या परिचितों — को भी मामले में फंसा देते हैं, जिससे आपराधिक प्रक्रिया उत्पीड़न का माध्यम बन जाती है।”

    यह याचिका शिकायतकर्ता विजय सिंह ने दायर की थी, जिन्होंने सत्र न्यायालय द्वारा तीन लोगों को अतिरिक्त आरोपी के रूप में तलब करने से इनकार किए जाने को चुनौती दी थी। मामला आईपीसी की धाराओं 323, 325, 326, 341, 367 और 506 के साथ धारा 34 के तहत दर्ज था।

    शिकायतकर्ता ने गवाही के दौरान आरोपियों की भूमिका बताई थी, जिसके आधार पर अभियोजन ने धारा 319 CrPC के तहत आवेदन दिया था। लेकिन सत्र न्यायालय ने कहा कि कोई नया या स्वतंत्र साक्ष्य सामने नहीं आया है जो ऐसे “असाधारण अधिकार” के प्रयोग को सही ठहरा सके।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि घायल गवाह की गवाही को पर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के Hardeep Singh बनाम State of Punjab (2014) के निर्णय का हवाला दिया।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 319 CrPC के तहत अधिकार असाधारण और विवेकाधीन हैं, जिन्हें बहुत सोच-समझकर और सीमित परिस्थितियों में ही प्रयोग किया जाना चाहिए। इसमें सबूत का स्तर केवल आरोप तय करने से अधिक होना चाहिए — मजबूत और ठोस साक्ष्य मौजूद होने चाहिए जो व्यक्ति की संलिप्तता दर्शाएं।

    सुप्रीम कोर्ट के Sarabjit Singh बनाम State of Punjab (2009) फैसले का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि सिर्फ पहले किए गए आरोपों की पुनरावृत्ति या गवाह का कथन पर्याप्त नहीं है।

    अंत में अदालत ने कहा —

    “इस मामले में कोई नया या स्वतंत्र साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, और शिकायतकर्ता की गवाही केवल एफआईआर के आरोपों की पुनरावृत्ति है।”

    इसी आधार पर, हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी।

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