द्वितीय सेवा पेंशन के लिए अर्हक सेवा में 12 महीने तक की कमी को माफ किया जा सकता है: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट
Shahadat
17 Sept 2025 10:23 AM IST

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने माना कि द्वितीय सेवा पेंशन के लिए अर्हक सेवा में 12 महीने से कम की कमी क्षमा योग्य है, इसलिए प्रतिवादी द्वितीय सेवा पेंशन का हकदार है।
पृष्ठभूमि तथ्य
प्रतिवादी 21.09.1961 को भारतीय सेना में भर्ती हुआ था। 22 वर्ष, 3 महीने और 9 दिन की सेवा के बाद उसे 12.12.1984 को सेवामुक्त कर दिया गया। इसके बाद वह 14.06.1986 को रक्षा सुरक्षा कोर (DSC) में पुनः भर्ती हो गया। वे 14 वर्ष, 5 माह और 16 दिन की सेवा के बाद अधिवर्षिता की आयु प्राप्त करने पर 31.01.2001 को रिटायर हुए। इस प्रकार उनकी अर्हक सेवा की आवश्यक 15 वर्ष की अवधि से 4 माह और 13 दिन कम रह गए। इसलिए प्रतिवादी ने द्वितीय सेवा पेंशन प्रदान करने के उद्देश्य से अर्हक सेवा में 12 माह तक की कमी की माफी का लाभ मांगा। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण ने सेवा में कमी को माफ करते हुए प्रतिवादी को द्वितीय सेवा पेंशन का दावा स्वीकार कर लिया।
न्यायाधिकरण के आदेश से व्यथित होकर, भारत संघ ने प्रतिवादी को सेवा पेंशन प्रदान करने को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी रक्षा सुरक्षा कोर (DSC) में कार्यरत रहते हुए द्वितीय पेंशन का लाभ मांग रहे थे, जबकि उन्होंने 15 वर्ष की सेवा पूरी नहीं की, जो द्वितीय सेवा पेंशन प्रदान करने के लिए एक पूर्व शर्त है।
दूसरी ओर, प्रतिवादी का तर्क था कि प्रतिवादी ने रक्षा सुरक्षा कोर में 14 वर्ष, 5 महीने और 16 दिन की सेवा की है, जो 15 वर्ष की सेवा अवधि से केवल 4 महीने और 13 दिन कम है। इसलिए वह 12 महीने तक की सेवा अवधि में छूट का हकदार है, जिसे श्रीमती शमा कौर बनाम भारत संघ मामले में पहले ही मान्यता दी जा चुकी है।
अदालत के निष्कर्ष
न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी ने रक्षा सुरक्षा कोर में 14 वर्ष, 5 महीने और 16 दिन की सेवा की है। इस प्रकार वह अनिवार्य 15 वर्ष की अर्हकारी सेवा अवधि से केवल 4 महीने और 13 दिन कम है। अदालत ने श्रीमती शमा कौर बनाम भारत संघ मामले का हवाला दिया, जिसमें 12 महीने तक की सेवा अवधि में छूट का लाभ दिया गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को बरकरार रखा। इसलिए यह माना गया कि प्रतिवादी का दावा निर्णय द्वारा पूरी तरह से कवर किया गया।
यह भी कहा गया कि पूर्व एन.के. चिन्ना वेदियप्पन के मामले में सुप्रीम कोर्ट में लंबित कार्यवाही निर्णय को स्थगित करने का आधार नहीं हो सकती। अदालत ने माना कि एन.के. चिन्ना का मामला एक वर्ष से अधिक की क्षमा से संबंधित है, जबकि प्रतिवादी के मामले में यह कमी एक वर्ष के भीतर की है। न्यायालय ने केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख बनाम जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि हाईकोर्ट केवल इस आधार पर मामलों को लंबित नहीं रख सकते कि कोई समान मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है, जब तक कि ऐसा करने का विशेष निर्देश न दिया गया हो।
अदाललत ने माना कि चूंकि याचिकाकर्ता प्रतिवादी के दावे पर शमा कौर के निर्णय की प्रयोज्यता का खंडन नहीं कर सके, इसलिए हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता। यह निष्कर्ष निकाला गया कि न्यायाधिकरण के आदेश में कोई विकृति नहीं थी।
उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ भारत संघ द्वारा दायर रिट याचिका खारिज कर दी गई। साथ ही सेवा में कमी को माफ करते हुए प्रतिवादी को द्वितीय सेवा पेंशन का लाभ देने के न्यायाधिकरण के आदेश को बरकरार रखा गया।
Case Name : Union Of India And Others Kamla Devi And Another

