क्या ED की अनंतिम कुर्की के खिलाफ रिट पर हाईकोर्ट विचार कर सकता है, जब PMLA के तहत वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं? पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने जवाब दिया

Shahadat

11 Oct 2024 10:12 AM IST

  • क्या ED की अनंतिम कुर्की के खिलाफ रिट पर हाईकोर्ट विचार कर सकता है, जब PMLA के तहत वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं? पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने जवाब दिया

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा जारी अनंतिम कुर्की आदेश (PAO) के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (PMLA) के तहत वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है तो PAO पारित होने की तिथि से 30 दिनों की वैधानिक अवधि से पहले भी रिट याचिका पर विचार करना उचित नहीं होगा।

    PMLA की धारा 5(5) में प्रावधान है कि निदेशक या ED का कोई अन्य अधिकारी जो अनंतिम रूप से कोई संपत्ति कुर्क करता है, उसे ऐसी कुर्की से 30 दिनों की अवधि के भीतर न्यायनिर्णयन प्राधिकरण के समक्ष ऐसी कुर्की के तथ्यों को बताते हुए शिकायत दर्ज करनी होगी।

    चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल की खंडपीठ ने स्पष्ट किया,

    "किसी भी स्तर पर याचिका पर विचार करने का संवैधानिक न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र पूर्ण है। हालांकि, कुछ स्व-लगाई गई सीमाएं हैं, जिनका न्यायालय को पालन करना चाहिए।"

    न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर अधिवक्ताओं ने यह तर्क नहीं दिया कि पारित आदेश अधिकार क्षेत्र के बाहर है, या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए पारित किया गया या कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

    खंडपीठ ने कहा,

    "इस स्तर पर केवल POA पारित किया गया, जो 180 दिनों की अवधि के भीतर न्यायाधिकरण द्वारा पुष्टि के अधीन है। 2002 अधिनियम की धारा 5(5) के अनुसार, ED को न्यायाधिकरण के समक्ष शिकायत दर्ज करना आवश्यक है।"

    एमजीएफ डेवलपमेंट्स लिमिटेड द्वारा PAO के आदेश को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की गई, जहां न्यायालय ने विचार किया कि क्या 28 अगस्त, 2024 को PAO के खिलाफ जारी रिट याचिका पर विचार करना उचित होगा, जब 30 दिनों की वैधानिक अवधि बीत जाने से पहले, जब न्यायाधिकरण को PMLA की धारा 5 (5) के तहत इसकी जांच करनी होती है।

    इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए न्यायालय ने विजय मदनलाल चौधरी एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2022) का संदर्भ दिया, जिसमें PMLA के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिक वैधता की जांच करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने धारा 5 की वैधता की जांच की और पाया कि पीड़ित व्यक्ति को न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी प्रतिक्रिया/आपत्तियां दर्ज करने का अवसर देने के लिए कानून के तहत पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए गए।

    खंडपीठ ने कहा,

    "2002 अधिनियम ने यह भी सुनिश्चित किया कि पीएओ को निदेशक या उप निदेशक के पद से नीचे के किसी अन्य अधिकारी द्वारा पारित किया जाएगा, जिसे निदेशक द्वारा इस धारा के प्रयोजन के लिए अधिकृत किया गया हो, जबकि उसके पास मौजूद सामग्री के आधार पर विश्वास करने के कारण दिए गए हों।"

    न्यायालय ने दोहराया कि एक बार PMLA में पर्याप्त उपायों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए जाने के बाद हाईकोर्ट के लिए PAO पारित होने की तिथि से वैधानिक 30 दिनों की अवधि से पहले भी रिट याचिका पर विचार करना उचित नहीं होगा।

    न्यायालय ने कहा,

    "केवल दुर्लभ और अपवादात्मक मामलों में ही संवैधानिक न्यायालय 30 दिनों की अवधि समाप्त होने से पहले याचिका पर विचार करेगा।"

    उपरोक्त के आलोक में याचिका का निपटारा "याचिकाकर्ता को उसके वैकल्पिक उपाय का लाभ उठाने के लिए बाध्य करते हुए" किया गया।

    केस टाइटल: एमजीएफ डेवलपमेंट्स लिमिटेड बनाम प्रवर्तन निदेशालय और अन्य

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