आत्महत्या उकसावे में आरोपी की बार-बार की हरकतों से साबित हो सकती है मंशा: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट
Praveen Mishra
13 Sept 2025 7:16 PM IST

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत (pre-arrest bail) देने से इनकार कर दिया, जिस पर 16 साल 11 महीने की लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने (abetment of suicide) का आरोप है। कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में Mens Rea (दोषपूर्ण मानसिकता) केवल एक घटना से नहीं, बल्कि आरोपी के लगातार किए गए कृत्यों से निकाला जा सकता है।
आरोप था कि घटना से एक रात पहले याचिकाकर्ता ने पीड़िता को फोन किया था और उसके द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट में लिखा था कि उसने पीड़िता को जान देने की धमकी दी थी।
गंभीर आरोपों को देखते हुए, जस्टिस आलोक जैन ने कहा कि mens rea को आरोपी के नजरिए से देखना होगा। इसे केवल एक बार की कार्रवाई से नहीं समझा जा सकता, बल्कि बार-बार किए गए उन कृत्यों से आंका जा सकता है, जिन्होंने पीड़िता को इतना मजबूर कर दिया कि उसने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया। इस मामले में सुसाइड नोट की सामग्री से यह आकलन किया जा सकता है। यह भी स्वीकार है कि आरोपी सीधे पीड़िता के संपर्क में था।
बेंच ने आगे कहा—
“कोर्ट इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती कि एक युवा जीवन खत्म हो गया है और पूरा परिवार अपूरणीय क्षति का सामना कर रहा है। किसी माता-पिता के लिए अपने बच्चे का शव कब्रिस्तान तक ले जाना सबसे बड़ी सज़ा है, खासकर तब जब बच्चे की मौत का कारण उसने खुद अपने सुसाइड नोट में दर्ज किया हो।”
कोर्ट ने कहा कि हालांकि सुसाइड नोट को dying declaration (मरने से पहले दिया गया बयान) नहीं कहा जा सकता, लेकिन उसे कुछ हद तक सत्य मानना होगा क्योंकि वह नोट आत्महत्या से ठीक पहले लिखा गया होता है। आरोपों की गंभीरता को समझने के लिए नोट की पूरी सामग्री को पढ़ना ज़रूरी है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा—
“उकसावे का मतलब है किसी व्यक्ति को भड़काना या जानबूझकर मदद करना। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 108 के तहत आरोप तभी बनता है जब आरोपी ने आत्महत्या के लिए जानबूझकर उकसाने या मदद करने का कोई ठोस कदम उठाया हो।”
जज ने कहा कि यह मामला ऐसा नहीं है कि आरोपी सिर्फ अन्य सह-आरोपियों से बात कर रहा था, बल्कि वह सीधे पीड़िता से भी संपर्क में था।
“सुसाइड नोट में साफ लिखा है कि याचिकाकर्ता की भूमिका रही है। नोट में लगातार उसके कार्यों का उल्लेख है और यह भी आरोप है कि वह पीड़िता को खत्म करना चाहता था।”
ये टिप्पणियाँ उस समय की गईं जब कोर्ट 18 साल के युवक की अग्रिम जमानत याचिका सुन रही थी, जिस पर BNS की धारा 108 के तहत मामला दर्ज है।
सुसाइड नोट पढ़ने के बाद कोर्ट ने कहा कि prima facie (प्रथम दृष्टया) आरोपी के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। इसके अलावा, मौत से पहले आरोपी के फोन कॉल रिकॉर्ड भी उपलब्ध हैं, जो उसकी संलिप्तता पर संदेह पैदा करते हैं।
कोर्ट ने कहा कि भले ही जांच का अधिकांश हिस्सा डिजिटल रिकॉर्ड की जांच से संबंधित हो, लेकिन यह गंभीर आरोपों को कमज़ोर नहीं करता।
बेंच ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता की आरोपी से कोई निजी दुश्मनी सामने नहीं आई, जिससे यह कहा जा सके कि उसे झूठा फंसाया गया है।
सुसाइड नोट की प्रामाणिकता और असलियत को चुनौती देने वाले तर्क को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया।
“आज की उन्नत तकनीक से इसकी जांच संभव है। शुरुआती चरण में सबूतों का मूल्यांकन करना अप्रासंगिक है, बल्कि यह देखना ज़रूरी है कि क्या प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड उपलब्ध है।” – कोर्ट ने कहा।
अंत में, कोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रशासन और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाते समय, न्यायिक प्रशासन का पलड़ा भारी होता है। इसी कारण आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया और उसकी याचिका खारिज कर दी गई।

