अंतिम आदेश के बाद समीक्षा का अधिकार नहीं: पटना हाईकोर्ट ने 10 साल बाद पंचायत शिक्षिकाओं को बहाल किया

Praveen Mishra

30 Dec 2025 7:37 PM IST

  • अंतिम आदेश के बाद समीक्षा का अधिकार नहीं: पटना हाईकोर्ट ने 10 साल बाद पंचायत शिक्षिकाओं को बहाल किया

    यह मामला लगभग दस वर्ष लंबी कानूनी लड़ाई के बाद न्याय दिलाने का उदाहरण प्रस्तुत करता है। पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य स्तर के ट्रिब्यूनलों के आदेशों को रद्द करते हुए बक्सर की दो महिला पंचायत शिक्षिकाओं की सेवा बहाल कर दी। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि पुनर्विचार (रीव्यू) की शक्ति किसी न्यायिक या अर्द्ध-न्यायिक प्राधिकरण का अंतर्निहित अधिकार नहीं होती, बल्कि यह केवल तभी प्रयोग की जा सकती है जब किसी क़ानून में स्पष्ट रूप से ऐसी शक्ति प्रदान की गई हो। न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिन्हा की एकल-पीठ राज्य शिक्षकों के नियोजन अपीलीय प्राधिकरण द्वारा अपील खारिज किए जाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    पृष्ठभूमि के अनुसार, याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति बिहार पंचायत प्राइमरी टीचर्स (नियुक्ति एवं सेवा शर्त) नियमावली, 2006 के तहत चयन, परामर्श एवं सत्यापन की विधि के बाद स्वीकृत रिक्त पदों पर पंचायत शिक्षकों के रूप में की गई थी। बाद में नियुक्तियों की वैधता को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ, जिसे जिला शिक्षकों के नियोजन अपीलीय प्राधिकरण, बक्सर ने 9 अक्टूबर 2014 के आदेश से याचिकाकर्ताओं के पक्ष में तय किया।

    हालाँकि, उसी प्राधिकरण ने 25 जनवरी 2016 को अपने पूर्व आदेश की समीक्षा कर उसे वापस ले लिया। इसके विरुद्ध दायर अपील को राज्य अपीलीय प्राधिकरण ने 24 अगस्त 2017 को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि 9 अक्टूबर 2014 का अंतिम आदेश पारित होने के बाद प्राधिकरण functus officio हो चुका था और उसके पास अपने ही आदेश की समीक्षा या पुनर्विचार करने का कोई अधिकार नहीं था।

    अदालत ने इस तर्क से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि 2006 के नियमों में कहीं भी, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, अपीलीय प्राधिकरण को अपने ही अंतिम आदेश की समीक्षा अथवा पुनर्विचार करने की शक्ति प्रदान नहीं की गई है। अदालत ने कहा कि समीक्षा की शक्ति एक विधिक अधिकार है, जो केवल विधायी प्रावधान से ही उत्पन्न होती है। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि ऐसी शक्ति पहली बार 2020 के नियमों में शामिल की गई थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि 2006 के नियमों और 2008 के दिशा-निर्देशों के तहत यह शक्ति अस्तित्व में नहीं थी। समीक्षा की शक्ति को प्रतिगामी (रिट्रोस्पेक्टिव) रूप से लागू नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने माना कि 9 अक्टूबर 2014 का आदेश अंतिम रूप से प्रभावी हो चुका था और उस अवस्था में प्राधिकरण के पास मामले को दोबारा खोलने या बदलने का अधिकार नहीं था। परिणामस्वरूप, अदालत ने विवादित आदेशों को रद्द कर दिया, याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति को बहाल किया और निर्देश दिया कि उनकी ज्वाइनिंग स्वीकार की जाए तथा नियुक्ति पत्रों की तिथि से सभी लाभ प्रदान किए जाएँ। यह पूरी कार्रवाई 15 दिनों के भीतर पूरी करने का निर्देश भी दिया गया।

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