रिटायर्ड वर्ग-III कर्मचारी से अतिरिक्त पेंशन भुगतान की वसूली अस्वीकार्य: पटना हाईकोर्ट
Shahadat
7 Jan 2025 3:48 PM IST
जस्टिस पूर्णेंदु सिंह की एकल पीठ ने रिट याचिका को अनुमति दी, जिसमें रिटायर्ड केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल उपनिरीक्षक को किए गए अतिरिक्त पेंशन भुगतान की वसूली को चुनौती दी गई थी।
पंजाब राज्य बनाम रफीक मसीह के मामले में न्यायालय ने फैसला सुनाया कि वर्ग-III कर्मचारियों से अतिरिक्त भुगतान की वसूली अस्वीकार्य है, जब त्रुटि प्रशासनिक हो और कर्मचारी द्वारा गलत बयानी के कारण न हो। इस प्रकार, न्यायालय ने बिना किसी कटौती के पूर्ण पेंशन लाभ बहाल करने का आदेश दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
प्रमोद कुमार सिन्हा रिटायर्ड होने से पहले केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) में उपनिरीक्षक के रूप में कार्यरत थे। उन्हें 2004 में नियुक्त किया गया और 2008 में उन्हें उपनिरीक्षक के पद पर पदोन्नत किया गया। रिटायर होने पर उन्होंने अपने पेंशन लाभ मांगे। हालांकि, CISF अधिकारियों ने 30 नवंबर, 2023 को एक पत्र के माध्यम से उन्हें सूचित किया कि 2008 से उनका वेतन निर्धारण गलत था। उन्होंने दावा किया कि पिछले कुछ वर्षों में उन्हें 2,13,908 रुपये की अतिरिक्त राशि का भुगतान किया गया। उन्होंने इस राशि को उनकी ग्रेच्युटी से वसूलने का फैसला किया। इससे व्यथित होकर सिन्हा ने रिट याचिका दायर की। उन्होंने इस वसूली को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि उन्हें कोई कारण बताओ नोटिस या सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
तर्क
सिन्हा ने तर्क दिया कि वसूली अवैध, मनमानी थी और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती थी। उन्होंने प्रस्तुत किया कि उन्होंने कोई गलत बयानी या धोखाधड़ी नहीं की। अधिक भुगतान केवल विभाग की गलती के कारण हुआ था। पंजाब राज्य बनाम रफीक मसीह (2015) 4 एससीसी 334 का हवाला देते हुए उन्होंने तर्क दिया कि रिटायर्ड वर्ग-III कर्मचारियों से वसूली अस्वीकार्य है, खासकर जब ऐसे कर्मचारी आजीविका के लिए अपनी पेंशन पर निर्भर होते हैं और उन्होंने कोई गलत बयानी या धोखाधड़ी नहीं की है।
हालांकि, यूनियन ने तर्क दिया कि सिन्हा ने अपने वेतन संशोधन के समय किसी भी अतिरिक्त भुगतान की वसूली के लिए सहमति जताते हुए वचनबद्धता पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट बनाम जगदेव सिंह (2016) 14 एससीसी 267 का हवाला देते हुए तर्क दिया कि जब ऐसा वचन दिया जाता है तो वसूली वैध होती है। यूनियन ने कहा कि सिन्हा इस समझौते से बंधे हुए थे और वसूली CISF विनियमों के नियम 6(2) के अनुसार भी थी।
अदालत का तर्क
सबसे पहले, अदालत ने रफीक मसीह सिद्धांतों की प्रयोज्यता का विश्लेषण किया। इसने नोट किया कि रफीक मसीह ने स्पष्ट रूप से माना कि रिटायर्ड वर्ग-III और वर्ग-IV कर्मचारियों से वसूली अस्वीकार्य है, जब अधिक भुगतान प्रशासनिक त्रुटियों के कारण होता है न कि कर्मचारी कदाचार के कारण। चूंकि सिन्हा की ओर से कोई गलत बयानी नहीं की गई। इसलिए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि वसूली गैरकानूनी थी।
इसके अलावा, अदालत ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट बनाम जगदेव सिंह (2016) 14 एससीसी 267 के तथ्यों को अलग किया। इसने देखा कि जगदेव सिंह में सुप्रीम कोर्ट ने एक वर्ग-II अधिकारी से निपटा, जिसने स्वेच्छा से वचन दिया था। इसके विपरीत, सिन्हा वर्ग-III के कर्मचारी थे, इसलिए रफीक मसीह के मामले के अनुसार सुरक्षा के हकदार थे।
इस प्रकार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि गलत बयानी के अभाव में तृतीय श्रेणी के कर्मचारी से कोई वसूली नहीं की जा सकती, खासकर जब गलत निर्धारण विभाग की गलती थी। नतीजतन, न्यायालय ने रिट याचिका को स्वीकार कर लिया और वसूली के आदेशों को रद्द कर दिया। इसने संघ को बिना किसी कटौती के सिन्हा की पेंशन और ग्रेच्युटी बहाल करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: प्रमोद कुमार सिन्हा बनाम भारत संघ