JJ Act: बच्चे समाज का भविष्य, उनके साथ दंडात्मक रवैया आत्मघाती- पटना हाईकोर्ट

Amir Ahmad

16 May 2025 11:53 AM IST

  • JJ Act: बच्चे समाज का भविष्य, उनके साथ दंडात्मक रवैया आत्मघाती- पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने शस्त्र अधिनियम के तहत एक नाबालिग को हुई सजा और दोषसिद्धि रद्द की। अदालत ने कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2000 (JJ Act) इस विश्वास पर आधारित है कि बच्चे समाज का भविष्य हैं और यदि वे कुछ परिस्थितियों में कानून के खिलाफ जाते हैं तो उन्हें सजा नहीं बल्कि सुधार और पुनर्वास मिलना चाहिए।

    जस्टिस जितेन्द्र कुमार ने कहा,

    "JJ Act 2000 इस सोच पर आधारित है कि बच्चे समाज का भविष्य हैं। अगर वे किसी कारणवश कानून के साथ संघर्ष में आ जाते हैं तो उनका सुधार होना चाहिए न कि उन्हें दंडित किया जाए। कोई भी समाज अपने बच्चों को सजा देने का जोखिम नहीं उठा सकता। बच्चों के साथ दंडात्मक रवैया समाज के लिए आत्मघाती हो सकता है।"

    मामले में याचिकाकर्ता की उम्र गिरफ्तारी के समय लगभग 17 वर्ष थी। पुलिस ने उसे और दो अन्य को गिरफ्तार कर उनके पास से पिस्तौल बरामद करने का दावा किया। किशोर न्याय बोर्ड ने उसे तीन साल के लिए विशेष गृह भेजने का आदेश दिया, जिसे सेशन कोर्ट ने भी बरकरार रखा।

    याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि उसके पास से हथियार बरामद होने का कोई ठोस सबूत नहीं है। एक जब्ती गवाह ने कहा कि बरामदगी उसके सामने नहीं हुई और उससे कोरे कागज पर हस्ताक्षर कराए गए। साथ ही यह भी कहा गया कि जब्त किए गए हथियारों को मौके पर सील नहीं किया गया।

    हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा,

    “गवाहों के बयान के अनुसार हथियारों को एक बोरे में सील किया गया लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि किसने और कहां सील किया। सभी आरोपियों से बरामद हथियारों को एक साथ सील करना यह दर्शाता है कि यह भी स्पष्ट नहीं है कि याचिकाकर्ता के पास से क्या बरामद हुआ।”

    कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में जब्ती और बरामदगी संदेह से परे सिद्ध नहीं हो पाई, इसलिए याचिकाकर्ता को दोषी ठहराना न्याय के साथ अन्याय होगा।

    इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि जेजे बोर्ड द्वारा दी गई सजा अधिनियम की भावना और उद्देश्य के अनुकूल नहीं थी। सामाजिक जांच रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ता का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था और गांववाले उसे अच्छा और होनहार स्टूडेंट मानते थे।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि बोर्ड ने सजा सुनाते समय सामाजिक जांच रिपोर्ट को नजरअंदाज किया और तीन साल के लिए विशेष गृह भेजकर उसकी पढ़ाई का अवसर भी छीन लिया।

    अंत में हाईकोर्ट ने कहा कि नाबालिग को दोषी ठहराने और सजा देने का आदेश टिकाऊ नहीं है और दोनों को रद्द किया जाता है।

    केस टाइटल: दिवाकर सिंह @ मिथु सिंह बनाम बिहार राज्य

    Next Story