मद्रास हाईकोर्ट ने Cryptocurrency को संपत्ति के रूप में मान्यता दी, कहा- इसे "ट्रस्ट में रखा जा सकता है"

Shahadat

26 Oct 2025 10:51 PM IST

  • मद्रास हाईकोर्ट ने Cryptocurrency को संपत्ति के रूप में मान्यता दी, कहा- इसे ट्रस्ट में रखा जा सकता है

    मद्रास हाईकोर्ट ने शनिवार को क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) को एक प्रकार की संपत्ति के रूप में मान्यता दी, जिसका स्वामित्व, आनंद और ट्रस्ट में रखा जा सकता है। साथ ही न्यायालय ने निवेशक को सुरक्षा प्रदान की, जिसकी डिजिटल संपत्तियां एक बड़े साइबर हमले के बाद वज़ीरएक्स एक्सचेंज पर ज़ब्त कर ली गई थीं।

    जस्टिस एन आनंद वेंकटेश द्वारा अंतरिम राहत की मांग करने वाली मध्यस्थता याचिका पर पारित आदेश में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों अहमद जी.एच. आरिफ बनाम संपत्ति कर आयुक्त और जिलुभाई नानभाई खाचर बनाम गुजरात राज्य का हवाला दिया, जो "संपत्ति" की अवधारणा को व्यापक रूप से परिभाषित करते हैं। साथ ही कहा कि ये सिद्धांत क्रिप्टोकरेंसी पर भी समान रूप से लागू होते हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "उपरोक्त दोनों फैसलों को देखते हुए इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि "क्रिप्टो करेंसी" संपत्ति है। यह न तो मूर्त संपत्ति है और न ही मुद्रा। हालांकि, यह एक संपत्ति है, जिसका आनंद लिया जा सकता है और जिसे (लाभकारी रूप में) रखा जा सकता है। इसे ट्रस्ट में रखा जा सकता है।"

    कोर्ट ने यह भी कहा कि भारतीय कानून के तहत आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2(47ए) के तहत Cryptocurrency को "वर्चुअल डिजिटल प्रोपर्टी" के रूप में वर्गीकृत किया गया और इसे सट्टा लेनदेन नहीं माना जाता।

    यह रुतिकुमारी नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने जनवरी, 2024 में ज़ानमाई लैब्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संचालित वज़ीरएक्स प्लेटफॉर्म पर 3,532.30 XRP कॉइन खरीदने के लिए लगभग 1.98 लाख रुपये का निवेश किया। जुलाई, 2024 में हुए साइबर हमले के बाद उनका खाता फ्रीज कर दिया गया, जिसमें एक्सचेंज के वॉलेट से लगभग 23 करोड़ अमेरिकी डॉलर मूल्य के एथेरियम-आधारित टोकन गायब हो गए। उन्होंने अपने निवेश की सुरक्षा की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि उनकी XRP होल्डिंग्स चोरी की गई संपत्तियों से अलग हैं और फ्रीज से प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

    ज़ानमाई लैब्स ने तर्क दिया कि वह यूजर्स की Cryptocurrency को ट्रस्ट में नहीं रखती, क्योंकि उनका प्रबंधन बिनेंस और बाद में ज़ेटाई प्राइवेट लिमिटेड सहित विदेशी संस्थाओं द्वारा किया जाता था। कंपनी ने यह भी कहा कि सिंगापुर कोर्ट द्वारा अनुमोदित पुनर्गठन योजना यूजर निवारण को नियंत्रित करती है और दावा किया कि यह मामला भारत में स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि यूजर समझौते के लिए सिंगापुर में मध्यस्थता की आवश्यकता है।

    अदालत इससे असहमत थी। पूर्व के उदाहरणों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि भारतीय अदालतें भारत में स्थित संपत्तियों की सुरक्षा के लिए अंतरिम आदेश पारित कर सकती हैं, भले ही मध्यस्थता विदेश में हो।

    उसने फैसला सुनाया,

    "प्रथम दृष्टया, यह माना जाना चाहिए कि संपत्ति, अर्थात् क्रिप्टो करेंसी, वज़ीरएक्स प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से भारत में उसके पास थी और आवेदक को प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करने से रोक दिया गया, क्योंकि इसे फ्रीज कर दिया गया। इसलिए माननीय सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय के आलोक में अधिनियम की धारा 9 के तहत दायर उपरोक्त आवेदन इस न्यायालय के समक्ष स्वीकार्य है।"

    अदालत ने कंपनी के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि हैक से होने वाला नुकसान सभी यूजर्स में फैल सकता है। इसी तरह के एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणियों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि "नुकसान को सामाजिक बनाने" के विचार का यूजर समझौते में कोई आधार नहीं है और यह निवेशकों के प्रति विश्वास का उल्लंघन करता है।

    इसने कहा,

    "यदि परिसंपत्ति वज़ीरएक्स प्लेटफ़ॉर्म पर डिजिटल रूप से संग्रहीत है और साइबर हमले के कारण यदि संपूर्ण संचालन अवरुद्ध हो जाता है तो क्या यह माना जा सकता है कि आवेदक के पास मौजूद परिसंपत्ति सुरक्षा चूक या सुरक्षा उल्लंघन के कारण नष्ट हो जाएगी। इस तरह की क्षति प्लेटफ़ॉर्म के सभी यूजर्स में वैध रूप से फैल सकती है। विशेष रूप से तब जब ऐसा उल्लंघन तब तक नहीं हुआ हो, जब तक कि आवेदक द्वारा परिसंपत्ति किसी अन्य वॉलेट, अर्थात् एक्सआरपी कॉइन्स में रखी गई हो, यह समझौते के अनुसार निर्णय लेने का मामला है।"

    यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता-निवेशक अंतरिम सुरक्षा का हकदार है, अदालत ने ज़ानमाई लैब्स को मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी होने तक आवेदक की Cryptocurrency के मूल्य को संरक्षित करने के लिए बैंक गारंटी प्रस्तुत करने या एस्क्रो में 9.56 लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया।

    Case Title: Rhutikumari v. Zanmai Labs Pvt Ltd and Ors

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