हाईकोर्ट ने ज़मीन हड़पने में लिप्त वकीलों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए, कहा- वकीलों ने गुंडों की तरह काम किया
Shahadat
23 April 2025 4:33 AM

मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस से उन वकीलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा, जो वादियों के साथ मिलकर भूमि हड़पने की गतिविधियों में लिप्त हैं।
जस्टिस सुंदर मोहन ने तमिलनाडु और पुडुचेरी की बार काउंसिल को पुलिस को पूरा सहयोग देने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने बार काउंसिल से भूमि हड़पने के मामलों में वकीलों की कथित संलिप्तता की जांच करने को भी कहा,
“यह न्यायालय चेन्नई के पुलिस महानिदेशक को भी निर्देश देता है कि वे स्टेशन हाउस अधिकारियों को न केवल संबंधित पक्षकारों बल्कि भविष्य में ऐसी गतिविधियों में लिप्त वकीलों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई करने के लिए उचित निर्देश जारी करें। तमिलनाडु की बार काउंसिल और वकीलों के संघ ऐसी गतिविधियों से सख्ती से निपटने में पुलिस अधिकारियों को सहयोग प्रदान करेंगे।”
न्यायालय उन व्यक्तियों द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिन पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 329(3), 329(4), 115(2), 324(4), 324(5), 324(6), 351(3), 61(2) तथा सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम, 1984 की धारा 3(1) के तहत आरोप लगाए गए।
याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध मामला यह था कि वे कुछ वकीलों के साथ वास्तविक शिकायतकर्ता की संपत्ति में घुस गए तथा जिला मुंसिफ न्यायालय द्वारा पारित निषेधाज्ञा आदेश का दावा करते हुए संपत्ति खाली कराने का प्रयास किया। आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ताओं ने वास्तविक शिकायतकर्ता के कर्मचारियों के साथ मारपीट की, उत्पात मचाया तथा सीसीटीवी कैमरे तथा मेमोरी कार्ड सहित संपत्ति को नुकसान पहुंचाया।
अग्रिम जमानत की मांग करते हुए याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि संपत्ति मूल रूप से उनकी थी। सुनवाई के दौरान यह भी प्रस्तुत किया गया कि वकील केवल आदेश की विषय-वस्तु को समझाने के लिए उपस्थित थे तथा बलपूर्वक प्रवेश के आरोप झूठे हैं।
सरकारी वकील ने दलील दी कि हालांकि याचिकाकर्ताओं के पास निषेधाज्ञा आदेश था, लेकिन अवैध तरीके से कब्ज़ा करने के लिए वकीलों को नियुक्त करने के उनके कृत्य की निंदा की जानी चाहिए। अदालत को यह भी बताया गया कि कई वकीलों के पास व्हाट्सएप ग्रुप हैं, जो वकीलों को ऐसी गतिविधियों में शामिल होने और संपत्ति विवादों और अन्य मौद्रिक विवादों में हस्तक्षेप करने के लिए कहते हैं। सरकारी वकील ने दलील दी कि कानूनी पेशे का इस्तेमाल इस तरह की आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के लिए एक आवरण के रूप में किया गया और जब तक इससे सख्ती से निपटा नहीं जाता, यह जारी रहेगा।
पूरी घटना की आलोचना करते हुए अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में वकीलों ने वादियों के गुर्गे के रूप में काम किया और यह भूल गए कि वे एक महान पेशे से जुड़े हैं। अदालत ने कहा कि वादियों द्वारा इस तरह से काम करना अदालतों के लिए नया नहीं है, लेकिन वकीलों से बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के नियमों का पालन करते हुए सम्मानजनक तरीके से व्यवहार करने की उम्मीद की जाती है।
यह देखते हुए कि जूनियर वकील अक्सर वित्तीय बाधाओं के कारण इस तरह की गतिविधियों में लिप्त रहते हैं, अदालत ने जूनियर वकीलों से, जिनका कोई बुरा इतिहास नहीं है और जिन्हें व्हाट्सएप ग्रुप के प्रशासकों द्वारा नियुक्त किया गया, एक साल तक हर महीने एक बार तमिलनाडु बार काउंसिल की अनुशासन समिति के समक्ष उपस्थित होने और अपने पेशेवर काम का विवरण देते हुए मासिक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा।
अदालत ने बार काउंसिल को यह भी निर्देश दिया कि यदि वकील किसी सीनियर के ऑफिस में शामिल होना चाहते हैं तो उन्हें सहायता प्रदान की जाए। सीनियर वकीलों से कहा कि वे युवा वकीलों को अपने कार्यालय में समायोजित करके उन्हें प्रशिक्षित करने पर विचार करें।
अदालत ने कहा,
"उपरोक्त निर्देश इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए दिए गए हैं कि जूनियर वकील जिनके पास कोई मार्गदर्शन नहीं है और जो वित्तीय ज़रूरत में हैं, वे इस तथ्य को महसूस किए बिना ऐसी गतिविधियों में लिप्त हैं कि ऐसी गतिविधियां न केवल उनके करियर को प्रभावित करेंगी बल्कि, जैसा कि पहले कहा गया है, इस महान पेशे को बदनाम करेंगी।"
वर्तमान मामले में यह देखते हुए कि हिरासत में पूछताछ आवश्यक नहीं है, अदालत ने पक्षों को अग्रिम जमानत दी और उन्हें तमिलनाडु राज्य लीगल सर्विस अथॉरिटी, हाईकोर्ट को 3 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
अदालत ने पक्षकारों को मामले के खाते में 10 लाख रुपए जमा करने का भी निर्देश दिया।
केस टाइटल: जे विजयकुमार बनाम राज्य