पत्नी के व्यभिचार को साबित करने के लिए पति बच्चे को मोहरा नहीं बना सकता: मद्रास हाईकोर्ट ने NDA टेस्ट की याचिका खारिज की

Shahadat

9 Oct 2025 10:09 AM IST

  • पत्नी के व्यभिचार को साबित करने के लिए पति बच्चे को मोहरा नहीं बना सकता: मद्रास हाईकोर्ट ने NDA टेस्ट की याचिका खारिज की

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति की अपने बच्चे के NDA टेस्ट की मांग वाली याचिका ख़ारिज की, जिसमें आरोप लगाया गया था कि विवाह के दौरान दंपति के बीच पैदा हुआ बच्चा उसका नहीं है।

    ऐसा करते हुए जस्टिस शमीम अहमद ने स्पष्ट किया कि दशकों पहले हुई कथित बेवफाई को साबित करने के लिए NDA टेस्ट का इस्तेमाल शॉर्टकट के तौर पर नहीं किया जा सकता। अदालत ने आगे कहा कि NDA टेस्ट की आवश्यकता बच्चे के नजरिए से तय की जानी चाहिए, न कि माता-पिता के नजरिए से।

    अदालत ने कहा,

    "NDA टेस्ट का इस्तेमाल एक दशक से भी पहले या नाबालिग बच्चे/दूसरे प्रतिवादी के जन्म के बाद हुई बेवफाई को साबित करने के शॉर्टकट तरीके के तौर पर नहीं किया जा सकता। बच्चे पर NDA टेस्ट की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं, यह सवाल बच्चे के नजरिए से देखा जाना चाहिए, न कि माता-पिता के नजरिए से।"

    अदालत ने आगे कहा कि बच्चे को यह साबित करने के लिए मोहरे के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए कि बच्चे की माँ व्यभिचार में रह रही थी। अदालत ने यह भी कहा कि पति पत्नी के व्यभिचार को साबित करने के लिए हमेशा अन्य सबूत पेश कर सकता है। ऐसे दावों के लिए बच्चे की पहचान की बलि नहीं दी जानी चाहिए।

    अदालत ने आगे कहा,

    “बच्चे को यह साबित करने के लिए मोहरे के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता कि बच्चे की माँ व्यभिचार में रह रही थी। पति के पास पत्नी के व्यभिचारी आचरण को अन्य सबूतों से साबित करने का विकल्प हमेशा खुला है, लेकिन बच्चे की पहचान के अधिकार की बलि नहीं दी जानी चाहिए। इसके अलावा, वर्तमान मामले के संदर्भ में, इस अदालत का मानना ​​है कि पुनर्विचार याचिकाकर्ता द्वारा किया गया NDA टेस्ट, प्रतिवादियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा।”

    न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा NDA टेस्ट के लिए उनका आवेदन खारिज करने के आदेश के खिलाफ पति-पिता द्वारा दायर एक पुनर्विचार याचिका पर अदालत सुनवाई कर रही थी। यह दलील दी गई कि दंपति ने 2007 में शादी की और 2009 में उनके एक बच्चे का जन्म हुआ। हालांकि, दोनों पक्षकारों के बीच वैवाहिक विवाद के कारण वे अलग रहने लगे और पत्नी ने 2012 में तलाक के लिए अर्जी दी। इसके बाद, दोनों ने संयुक्त रूप से एक मेमो दायर किया और 2012 में तलाक प्राप्त कर लिया।

    अदालत को यह भी बताया गया कि तलाक के बाद पत्नी ने CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए याचिका दायर की। पति ने यह साबित करने के लिए NDA टेस्ट की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया कि बच्चा उससे पैदा नहीं हुआ। हालांकि, यह आवेदन खारिज कर दिया गया, जिसके खिलाफ पति ने पुनर्विचार याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

    पति ने तर्क दिया कि सच्चाई का पता लगाने के लिए NDA टेस्ट आवश्यक है और ऐसा न करने से उसे अपूरणीय क्षति और कठिनाई होगी।

    मामले के तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा कि NDA टेस्ट का अनुरोध स्वीकार करने का कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं है। अदालत ने आगे कहा कि पति ने अपने इस दावे के समर्थन में कोई सबूत पेश नहीं किया कि वह बच्चे का जैविक पिता नहीं है। अदालत ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुसार भी केवल अस्पष्ट आरोपों के आधार पर NDA टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता, जब तक कि प्रथम दृष्टया कोई ठोस मामला स्थापित न हो जाए।

    अदालत ने यह भी कहा कि पति ने तलाक के 12 साल बाद और भरण-पोषण याचिका दायर करने के 3 साल बाद NDA टेस्ट के लिए आवेदन दायर किया और देरी का कोई कारण या स्वीकार्य स्पष्टीकरण नहीं दिया। अदालत ने कहा कि इस चुप्पी ने दावों की वास्तविकता पर संदेह ही पैदा किया।

    अदालत ने इस प्रकार कहा कि NDA टेस्ट के लिए आवेदन केवल पत्नी को अपमानित करने उसकी बदनामी करने और पत्नी द्वारा दायर भरण-पोषण के मामले को लंबा खींचने के लिए किया गया। अदालत ने माना कि 12 साल की लंबी और अस्पष्ट देरी, साक्ष्यों का अभाव और BSA की धारा 118 के तहत वैधता की कानूनी धारणा पति के खिलाफ भारी पड़ेगी। इस प्रकार, अदालत ने माना कि पति ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 39 के तहत NDA टेस्ट की अनुमति देने के लिए कोई पर्याप्त कारण या कानूनी औचित्य नहीं बताया।

    इस प्रकार, कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें कोई दम नहीं है।

    Case Title: K v. M

    Next Story