पत्नी की बिना सहमति ली गई व्हाट्सएप चैट साक्ष्य के रूप में मंजूर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Praveen Mishra

17 Jun 2025 9:02 PM IST

  • पत्नी की बिना सहमति ली गई व्हाट्सएप चैट साक्ष्य के रूप में मंजूर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई करते हुए यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि व्हाट्सएप जैसे निजी चैट भी परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 14 के तहत साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य हो सकते हैं, भले ही उन्हें बिना सहमति प्राप्त किया गया हो या वे भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत स्वीकार्य न हों।

    जस्टिस आशीष श्रोटी ने अपने आदेश में कहा, "चूंकि हमारे संविधान के तहत कोई भी मौलिक अधिकार पूर्ण नहीं है, इसलिए जब दो मौलिक अधिकारों में टकराव हो—जैसे कि इस मामले में निजता का अधिकार और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, जो दोनों अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आते हैं—तो निजता का अधिकार निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के सामने झुक सकता है।"

    उन्होंने आगे कहा, "विधायिका, साक्ष्य की स्वीकार्यता के सिद्धांतों से पूरी तरह अवगत रहते हुए, धारा 14 को इस उद्देश्य से लाई है कि विवाह और पारिवारिक मामलों से जुड़े विवादों में साक्ष्य के सिद्धांतों का विस्तार किया जा सके। परिवार न्यायालय को इस प्रकार साक्ष्य कानून की कड़ाई से मुक्त कर दिया गया है। धारा 14 के तहत केवल यही देखा जाता है कि प्रस्तुत किया गया साक्ष्य न्यायालय की दृष्टि में विवाद के समाधान में सहायक है या नहीं, चाहे वह साक्ष्य वैध रूप से प्राप्त किया गया हो या नहीं।"

    यह फैसला उस याचिका में आया जिसमें पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पति को उसके व्हाट्सएप चैट को सबूत के रूप में प्रस्तुत करने की अनुमति दी गई थी, ताकि उस पर व्यभिचार (अवैध संबंध) का आरोप सिद्ध किया जा सके।

    पति का कहना था कि उसने पत्नी के फोन में एक विशेष ऐप इंस्टॉल किया था, जिसके माध्यम से उसकी व्हाट्सएप चैट्स स्वतः ही पति के फोन पर फॉरवर्ड हो जाती थीं। उन चैट्स से यह स्पष्ट होता है कि पत्नी का किसी अन्य व्यक्ति के साथ विवाहेतर संबंध था।

    पत्नी की ओर से पेश एडवोकेट ने दलील दी कि पति द्वारा उसकी सहमति के बिना उसके मोबाइल में एप्लिकेशन इंस्टॉल करना अवैध है और यह उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने आगे कहा कि चूंकि यह साक्ष्य गैरकानूनी तरीके से प्राप्त किया गया है, इसलिए पति को इस पर भरोसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और ऐसा साक्ष्य स्वीकार्य नहीं है।

    वहीं, पति की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि प्रस्तुत किए गए व्हाट्सएप चैट पत्नी पर व्यभिचार (अवैध संबंध) का आरोप सिद्ध करने के लिए प्रासंगिक हैं। उन्होंने परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 14 का हवाला देते हुए कहा कि परिवार न्यायालय उस सामग्री को साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर सकती है, जो मामले के निपटारे के लिए प्रासंगिक हो, चाहे वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य न हो।

    दोनों पक्षों को सुनने के बाद, न्यायालय ने विवादित आदेश की वैधता का परीक्षण साक्ष्य की स्वीकार्यता के सिद्धांतों के आलोक में किया, साथ ही परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 14 (भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का प्रयोग) और धारा 20 (अधिनियम का सर्वोच्च प्रभाव) को ध्यान में रखा।

    न्यायालय ने यह उल्लेख किया कि परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 14 और 20 के अंतर्गत, दस्तावेजी साक्ष्य जिसमें इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य भी शामिल हैं, चाहे वे अन्यथा साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य हों या नहीं, उन्हें शामिल किया जा सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल यही मार्गदर्शक तत्व है कि परिवार न्यायालय की राय में ऐसा साक्ष्य वैवाहिक विवाद के प्रभावी निपटारे में सहायक हो।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि:

    • सिर्फ साक्ष्य को रिकॉर्ड में लेना, किसी विवादास्पद तथ्य या प्रासंगिक तथ्य के सिद्ध होने का प्रमाण नहीं होता।
    • 'प्रासंगिकता' की कसौटी यह सुनिश्चित करती है कि किसी पक्ष को साक्ष्य प्रस्तुत करने और इस प्रकार निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार छीना न जाए।
    • सिर्फ इसलिए कि न्यायालय किसी साक्ष्य को स्वीकार कर रही है, इसका अर्थ यह नहीं कि जिसने वह साक्ष्य अवैध रूप से प्राप्त किया है, वह नागरिक या आपराधिक उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाता है।
    • ऐसे साक्ष्य को सावधानी और सतर्कता के साथ स्वीकार और मूल्यांकित किया जाना चाहिए, और किसी भी तरह की छेड़छाड़ की संभावना को समाप्त करना आवश्यक है।

    इस प्रकार, फैमिली कोर्ट पारित विवादित आदेश को न्यायालय ने बरकरार रखा।

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