'हक़' फ़िल्म की रिलीज़ के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंची शाहबानो की बेटी, कहा- निर्माता ने मां की पहचान के उपयोग की अनुमति नहीं ली

Praveen Mishra

3 Nov 2025 5:48 PM IST

  • हक़ फ़िल्म की रिलीज़ के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंची शाहबानो की बेटी, कहा- निर्माता ने मां की पहचान के उपयोग की अनुमति नहीं ली

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सोमवार (3 नवंबर) को शाहबानो बेगम की बेटी ने फिल्म 'हक़' (Haq) की रिलीज़ को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। इस फिल्म में यामी गौतम धर और इमरान हाशमी मुख्य भूमिकाओं में हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि फिल्म में उनकी मां शाहबानो बेगम की पहचान और निजी जीवन का उपयोग बिना अनुमति के किया गया है।

    यह फिल्म 7 नवंबर को रिलीज़ होने वाली है और बताया जा रहा है कि यह सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले "मोहम्मद अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम (1985)" से प्रेरित है, जिसमें अदालत ने CrPC की धारा 125 लागू करते हुए तलाक के बाद भी मुस्लिम महिला को भरण-पोषण (maintenance) का अधिकार दिया था।

    एडवोकेट तौसीफ वारसी, जो याचिकाकर्ता सिद्दीका बेगम खान (शाहबानो की बेटी) की ओर से पेश हुए, ने जस्टिस प्रणय वर्मा की अदालत में कहा —

    “पूरी फिल्म स्व. शाहबानो बेगम के व्यक्तिगत जीवन को दर्शाती है। फिल्म बनाने से पहले शाहबानो की जैविक बेटियों से लिखित सहमति नहीं ली गई। जवाबदेह 3 से 6 (निर्माताओं) को कानूनी नोटिस भी भेजा गया था, परंतु उन्होंने निजी जीवन की झलकियाँ फिल्म में शामिल कर लीं। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) को यह प्रमाणपत्र नहीं देना चाहिए था।”

    उन्होंने कहा कि निर्माताओं का दावा है कि फिल्म शाहबानो के जीवन पर नहीं, बल्कि फैसले और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है, लेकिन टीज़र बहुत आपत्तिजनक है और ट्रेलर में दिखाए गए दृश्य शाहबानो के वास्तविक जीवन से मेल नहीं खाते।

    वारसी ने तर्क दिया —

    “यदि फिल्म में शाहबानो का नाम और पहचान का उपयोग किया गया है, तो पहले लिखित अनुमति क्यों नहीं ली गई? यह उनकी व्यक्तिगत जिंदगी को दर्शा रही है। ट्रेलर और टीज़र वास्तविक घटनाओं पर आधारित नहीं हैं।”

    उन्होंने आगे कहा कि फिल्म की पहचान वास्तविक है, परंतु उसका चित्रण काल्पनिक है —

    “यह याचिकाकर्ता की मां से जुड़ा मामला है, न कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से। हम फैसले पर सवाल नहीं उठा रहे, वह अंतिम हो चुका है।”

    अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि निर्माताओं का कहना है कि फिल्म व्यक्तिगत जीवन पर नहीं, बल्कि न्यायिक फैसले पर आधारित है।

    “अगर उन्होंने संघर्ष किया, तो यह तो उनके लिए श्रेय की बात है, न कि अपमान की। इसे एक अधिकारों के लिए लड़ने वाली महिला के रूप में भी देखा जा सकता है,” अदालत ने कहा।

    इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने दोबारा कहा कि निर्माताओं को याचिकाकर्ता की मां के जीवन और संघर्षों को दिखाने से पहले अनुमति लेनी चाहिए थी।

    अदालत ने पूछा कि क्या ऐसा कोई निर्णय है जिसमें यह कहा गया हो कि किसी के जीवन पर फिल्म बनाने से पहले अनुमति जरूरी है? जिस पर वकील ने एक निर्णय का हवाला दिया।

    CBFC की ओर से पेश वकील ने कहा कि फिल्म को “काल्पनिक (fiction)” बताते हुए ही प्रमाणपत्र दिया गया है और यह बायोपिक नहीं है।

    “फिल्म के टीज़र में कहीं नहीं कहा गया कि यह बायोपिक है। यह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से प्रेरित बताई गई है। जो बातें सार्वजनिक अभिलेख (public record) का हिस्सा हैं, उनके लिए सहमति की आवश्यकता नहीं होती,” वकील ने कहा।

    वहीं, निर्माता कंपनी 'जंगली मूवीज़' की ओर से वकील ने कहा कि फिल्म के पहले एक डिस्क्लेमर (Disclaimer) दिया गया है और यह फिल्म 'भारत की बेटी' पुस्तक और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर आधारित है।

    अदालत ने कहा कि चूंकि डिस्क्लेमर अभी रिकॉर्ड पर नहीं है, इसलिए उसे पेश किया जाए —

    “मैं इसे कल रखूंगा, डिस्क्लेमर को रिकॉर्ड पर लाएं,” अदालत ने मौखिक रूप से कहा।

    मामले की अगली सुनवाई मंगलवार के लिए तय की गई है।

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