[Senior Citizens Act] धारा 23 के तहत सीनियर सिटीजन के लिए शांतिपूर्ण आय की आवश्यकता होने पर दामाद को ससुर का घर खाली करना होगा: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

4 Feb 2025 5:55 PM IST

  • [Senior Citizens Act] धारा 23 के तहत सीनियर सिटीजन के लिए शांतिपूर्ण आय की आवश्यकता होने पर दामाद को ससुर का घर खाली करना होगा: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने फैसले में अपने रिटायर ससुर के परिसर में रहने वाले दामाद को बेदखल करने का आदेश दिया, जिसे अपनी पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के लिए अतिरिक्त आय के स्रोत के रूप में उक्त संपत्ति की आवश्यकता थी।

    अपील खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने रिट कोर्ट के उस निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें यह राय दी गई कि निहितार्थ रूप से यदि घर बेटी को दिया गया था तो बेटी की मृत्यु के बाद दामाद को माता-पिता और सीनियर सिटीजन भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 2(ए) में परिभाषित बच्चों की परिभाषा में शामिल किया जाएगा। इसलिए अधिनियम की धारा 2(एच) में परिभाषित सीनियर सिटीजन का भरण-पोषण करना दामाद का कर्तव्य है।

    चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने कहा,

    "केवल आय के पहलू पर विचार नहीं किया जा सकता, बल्कि एक शांतिपूर्ण आय संपत्ति के मालिक को संतुष्टि प्रदान करती है, जो सीनियर सिटीजन है, जिसे अधिनियम, 2007 की धारा 23 के प्रावधानों की व्याख्या करते समय निहितार्थ द्वारा समझा और आत्मसात किया जाना चाहिए। जब ​​मामले के पूरे तथ्यों की उक्त परिप्रेक्ष्य से जांच की जाती है तो एक सीनियर सिटीजन है, उसे संपत्ति की आवश्यकता है। यह आवश्यकता सद्भावनापूर्ण और शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। इसलिए याचिकाकर्ता संपत्ति पर अपने किसी भी अधिकार को साबित करने में विफल रहा है, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट और कलेक्टर के आदेशों के बावजूद संपत्ति में बने रहने का हकदार नहीं है।"

    मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार, अपीलकर्ता-याचिकाकर्ता प्रतिवादी नंबर 3 का दामाद है। अपीलकर्ता का विवाह प्रतिवादी नंबर 3 की मृत बेटी से हुआ। अपीलकर्ता प्रतिवादी नंबर 3 के मकान में अनुमन्य अधिभोगी के रूप में रह रहा है तथा उसका तर्क है कि उसे उक्त परिसर से बेदखल नहीं किया जा सकता। वर्तमान अपील में एकल न्यायाधीश, उप-विभागीय अधिकारी (प्रतिवादी नंबर 2) तथा कलेक्टर (प्रतिवादी नंबर 1) द्वारा पारित किए गए विवादित आदेशों को चुनौती दी गई।

    उक्त मकान प्रतिवादी नंबर 3 द्वारा वर्ष 2007 में खरीदा गया। अपीलकर्ता का तर्क है कि चूंकि वह मजदूर था तथा उस समय उसे ऋण की सुविधा उपलब्ध नहीं थी, इसलिए उसने मकान अपने ससुर के नाम पर खरीदा था। हालांकि, ऐसा कोई समझौता अभिलेख पर नहीं लाया गया, जिससे यह पता चले कि मकान प्रतिवादी नंबर 3 के नाम पर खरीदा गया, क्योंकि अपीलकर्ता को ऋण सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

    अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता दामाद होने के कारण माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 2-ए में दी गई 'संतान' की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा। इसके अलावा, 2007 के अधिनियम की धारा 2(जी) में परिभाषित 'रिश्तेदार' में भी अपीलकर्ता शामिल नहीं होगा। इसलिए अपीलकर्ता 2007 के अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आता है और 2007 के अधिनियम के प्रावधानों के तहत किसी भी आदेश का विषय नहीं हो सकता है।

    इसके अलावा यह भी प्रस्तुत किया गया कि अपीलकर्ता के पास संपत्ति पर प्रतिकूल कब्ज़ा है। उसने घर के निर्माण के लिए प्रतिवादी नंबर 3 के अकाउंट में 1,00,000/- रुपये की राशि का योगदान दिया था।

    इसके विपरीत प्रतिवादी नंबर 3/ससुर के वकील ने तर्क दिया कि यह आदेश 2007 के अधिनियम की धारा 23 के अंतर्गत है जो संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित है, जो कुछ परिस्थितियों में शून्य हो जाता है। यह किसी अन्य प्रावधान के तहत आदेश नहीं है। इसके अलावा, बच्चों में उनके दामाद भी शामिल होंगे, क्योंकि परिभाषा व्यापक नहीं है।

    वास्तव में जब संपत्ति प्रतिवादी नंबर 3 की बेटी को दी गई, तब एक पैकेज में अपीलकर्ता को शामिल किया गया। अपीलकर्ता सीनियर सिटीजन की देखभाल नहीं कर रहा है। इसके विपरीत, प्रतिवादी नंबर 3 द्वारा एसडीएम, एमपी नगर सर्किल भोपाल के समक्ष दायर आवेदन के अनुसार उनके लिए परेशानी का कारण बन रहा है। इसी कारण बेदखली के निर्देश दिए गए।

    आक्षेपित आदेश में एकल न्यायाधीश ने देखा कि अधिनियम 2007 की धारा 2(ए) में निहित 'बच्चों' की परिभाषा व्यापक नहीं है, क्योंकि यह केवल व्यक्तियों की व्यापक श्रेणियों अर्थात् बेटे, बेटियों, पोते और पोती के बारे में बात करती है, जो नाबालिग नहीं हैं।

    एकल पीठ ने कहा कि निहितार्थ यह है कि यदि मकान बेटी को दिया गया। याचिकाकर्ता-अपीलकर्ता बेटी की मृत्यु के बाद दामाद था तो उसे बच्चों की परिभाषा में शामिल किया जाएगा। उसका कर्तव्य है कि वह सीनियर सिटीजन का भरण-पोषण करे, जैसा कि अधिनियम 2007 की धारा 2 (एच) में परिभाषित किया गया। यह भी देखा गया कि जहां तक ​​'रिश्तेदार' का सवाल है तो उसका भी कोई महत्व नहीं होगा, क्योंकि यह निःसंतान वरिष्ठ नागरिक का मामला नहीं है।

    अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अधिनियम 2007 की धारा 23 में निहित प्रावधान लागू नहीं होंगे, क्योंकि संपत्ति का कोई हस्तांतरण नहीं हुआ। न्यायालय ने कहा कि संपत्ति के हस्तांतरण में किसी व्यक्ति के पक्ष में अनुमेय हस्तांतरण या निःशुल्क हस्तांतरण शामिल है। यदि सीनियर सिटीजन अपनी आवश्यकता को प्रदर्शित करने में सक्षम है तो उस हस्तांतरण को अधिनियम 2007 की धारा 23 में निहित प्रावधानों के अनुसार शून्य और अमान्य घोषित किया जा सकता है।

    इसलिए न्यायालय ने कहा कि एकल जज ने सही ढंग से टिप्पणी की कि प्रतिवादी नंबर 3 जो रिटायर भेल कर्मचारी है, जिसके पास कोई नियमित पेंशन नहीं है और जो अपनी बीमार पत्नी के साथ-साथ अन्य बच्चों की जिम्मेदारी भी निभाता है, उसे उस संपत्ति की आवश्यकता है जिसका निर्माण उसने किया, जिससे उसके पास अतिरिक्त आय का स्रोत हो सके।

    इस प्रकार, न्यायालय ने एकल न्यायाधीश का आदेश बरकरार रखा और अपीलकर्ता को 30 दिनों के भीतर परिसर खाली करने का निर्देश दिया, ऐसा न करने पर एसएचओ उक्त घर से सामान हटाकर प्रतिवादी नंबर 3 को सौंप देगा।

    केस टाइटल: दिलीप मरमत बनाम कलेक्टर और अन्य, रिट अपील नंबर 1705/2023

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