यदि 8 वर्षीय बच्चा तर्कसंगत उत्तर देने में सक्षम है तो उसकी गवाही खारिज करने का कोई कारण नहीं: हत्या के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

7 Jun 2024 6:24 AM GMT

  • यदि 8 वर्षीय बच्चा तर्कसंगत उत्तर देने में सक्षम है तो उसकी गवाही खारिज करने का कोई कारण नहीं: हत्या के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    यह देखते हुए कि कम उम्र के बच्चे की गवाही खारिज करने का कोई कारण नहीं है, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा बरकरार रखी, जो 8 वर्षीय बच्चे के साक्ष्य पर आधारित है, जो एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी है।

    जस्टिस विजय कुमार शुक्ला और जस्टिस हिरदेश की खंडपीठ ने कहा कि एक बार जब कम उम्र के बच्चे द्वारा दी गई गवाही की गुणवत्ता और विश्वसनीयता अदालत द्वारा बारीकी से जांच के माध्यम से सुनिश्चित की जाती है तो ऐसे साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि दर्ज की जा सकती है।

    खंडपीठ ने आदेश में उल्लेख किया,

    “यदि किसी कम उम्र के बच्चे में प्रश्नों को समझने और उनके तर्कसंगत उत्तर देने की बौद्धिक क्षमता है तो उसे गवाही देने की अनुमति दी जा सकती है। बाल गवाह के साक्ष्य को अपने आप में खारिज करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन न्यायालय विवेक के नियम के रूप में ऐसे साक्ष्य पर बारीकी से जांच करता है। केवल उसकी गुणवत्ता और विश्वसनीयता के बारे में आश्वस्त होने के बाद ही।”

    व्हीलर बनाम यूनाइटेड स्टेट्स (159 यूएस 523) और सूर्यनारायण बनाम कर्नाटक राज्य, (2001) 9 एससीसी 129 के निर्णयों पर भरोसा किया गया।

    न्यायालय ने बताया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 में किसी गवाह को सक्षम मानने के लिए किसी विशेष आयु को निर्णायक कारक के रूप में उल्लेख नहीं किया गया। न्यायालय ने दत्तू रामराव सखारे बनाम महाराष्ट्र राज्य [(1997) 5 एससीसी 341] में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसमें जस्टिस जी.टी. नानावटी और जस्टिस एस.पी. कुर्दुकर ने माना कि बाल गवाहों के साक्ष्य को उचित महत्व दिया जा सकता है, जब वे विश्वसनीय हों, उनका व्यवहार किसी अन्य सक्षम गवाह की तरह हो और उन्हें शायद सिखाया-पढ़ाया न गया हो।

    हाईकोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता/आरोपी ने तर्क दिया कि बाल गवाह, जो मृतक पत्नी और आरोपी पति के बीच विवाह से पैदा हुई बेटी है, कथित घटना के समय बाहर खेल रही थी। वकील ने आगे कहा कि वह स्वतंत्र गवाह नहीं है। बयान देने से पहले उसे उसके दादा-दादी ने सिखाया था। वकील ने आरोप लगाया कि बच्चे की गवाही विवरण की कई कमियों से भरी हुई है। न्यायालय ने इनमें से किसी भी दलील से सहमत होने से इनकार किया।

    अदालत ने कहा,

    "वह 8 साल की है और उसने मुख्य परीक्षा में घटना के बारे में पूरी जानकारी दी है। उसने कहा है कि उसने घटना देखी और उसके पिता ने उसकी मां की गर्दन और पेट पर चाकू से हमला किया और जब उसने अपने दादा और दादी को बुलाया तो उसके पिता मौके से भाग गए।"

    अदालत ने बताया कि क्रॉस एक्जामिनेशन में भी बाल गवाह बरकरार रहा, जिससे गवाही विश्वसनीय हो गई।

    अपनी गवाही में बेटी ने कहा था कि उसके पिता ने 2012 में घटना की तारीख पर उसकी माँ से पैसे मांगे थे। बाद में शाम को उसकी माँ को उसके पिता ने पहले सिर पर जोरदार वार किया। जब माँ फर्श पर लेटी हुई थी, तो उसके पिता ने मृतक माँ के पेट और गर्दन के हिस्सों में चाकू घोंप दिया। घटना को देखते हुए बेटी घटना को बताने के लिए दादा-दादी के घर भाग गई।

    अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि इस विशेष मामले में अभियुक्त की बेटी और पीड़ित पक्ष के साथ प्रत्यक्षदर्शी के संबंध का तथ्य, अपने आप में प्रस्तुत साक्ष्य को बदनाम नहीं करेगा। हाल ही में नितिन मेवाते बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले में जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल पीठ ने इसी सिद्धांत को दोहराया था और 'हितधारक गवाहों' और 'संबंधित गवाहों' के बीच अंतर किया था।

    न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा,

    अतः इस न्यायालय की सुविचारित राय में यह गवाह प्रशिक्षित गवाह नहीं है, बल्कि वह इस घटना की एकमात्र गवाह है।”

    न्यायालय ने दादा-दादी द्वारा दी गई गवाही पर भी ध्यान दिया, जो घटनास्थल पर पहुंचे और मृतक के घर में अपीलकर्ता की उपस्थिति देखी। एफएसएल रिपोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि कपड़े, साथ ही अपीलकर्ता-पति से बरामद चाकू पर मानव रक्त लगा। न्यायालय ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य से निष्कर्ष निकाला कि अभियुक्त बचाव में इस दोषपूर्ण साक्ष्य का संतोषजनक ढंग से खंडन करने में असमर्थ था।

    उपरोक्त कारणों से न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के संस्करण का पक्ष लिया। अपील खारिज करते हुए खंडपीठ ने सत्र न्यायाधीश, इंदौर द्वारा दी गई सजा बरकरार रखी।

    वर्ष 2012 में आरोपी को आजीवन कठोर कारावास तथा 10,000/- रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई गई।

    केस टाइटल: गणेश बलाई बनाम मध्य प्रदेश राज्य पी.एस. खजराना के माध्यम से

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