गैर-वाणिज्यिक मात्रा, कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं: एमपी हाईकोर्ट ने 2 साल से अधिक समय से जेल में बंद NDPS आरोपी को रिहा किया

Amir Ahmad

12 Aug 2024 8:44 AM GMT

  • गैर-वाणिज्यिक मात्रा, कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं: एमपी हाईकोर्ट ने 2 साल से अधिक समय से जेल में बंद NDPS आरोपी को रिहा किया

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट इंदौर ने आरोपी को रिहा किया, जिस पर 2016 में 6 किलोग्राम गांजा रखने का मामला दर्ज किया गया और उसे तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

    अदालत ने पाया कि आरोपी ने 2 साल से अधिक कारावास की सजा काटी है। निचली अदालत द्वारा लगाए गए जुर्माने की राशि को बढ़ाते हुए उसे हिरासत से रिहा किया।

    जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की पीठ ने अपीलकर्ता द्वारा दायर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की, जिसे मूल रूप से इंदौर में विशेष न्यायाधीश (NDPS Act) द्वारा तीन साल के कठोर कारावास और 10,000 के जुर्माने की सजा सुनाई गई। उसकी सजा को पहले से काटी गई अवधि तक कम कर दिया साथ ही जुर्माना राशि को बढ़ाकर 25,000 कर दिया।

    जस्टिस सिंह ने फैसला सुनाते हुए अपीलकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत तर्कों से सहमति जताई।

    उन्होंने कहा,

    "अपीलकर्ता ने तीन साल की सजा में से लगभग दो साल और तीन महीने जेल में काटे हैं। इसके अलावा, अपीलकर्ता ने 2016 से आपराधिक मुकदमे की यातना झेली है।"

    उन्होंने आगे कहा,

    "इस संबंध में कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है। किसी भी आपराधिक पृष्ठभूमि की अनुपस्थिति को देखते हुए जुर्माने की राशि को बढ़ाकर 25,000 रुपए करते हुए सजा को पहले से काटी गई अवधि तक कम करना समीचीन है।"

    वर्ष 2016 की घटना से उत्पन्न इस मामले में दोषी और सह-आरोपी से 6 किलोग्राम गांजा बरामद किया गया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया और बाद में NDPS Act की धारा 8(सी) के साथ धारा 20(बी)(ii)(बी) के तहत दोषी ठहराया गया। आठ वर्षों से अधिक समय तक चली कानूनी कार्यवाही का समापन स्पेशल जज द्वारा दोषी ठहराए जाने के साथ हुआ, जहां आरोपी को तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

    अपीलकर्ता के वकील ने दोषसिद्धि की योग्यता को चुनौती नहीं दी लेकिन अदालत से अपीलकर्ता द्वारा पहले से काटे गए समय पर विचार करने का आग्रह किया, जो दो वर्ष और तीन महीने से अधिक था।

    वकील ने अपीलकर्ता की सजा से पहले की लंबी कैद और पूर्व आपराधिक पृष्ठभूमि की अनुपस्थिति का हवाला देते हुए सजा में कमी की मांग की। उन्होंने कई निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें आर. कुमारवेल बनाम पुलिस निरीक्षक एनआईबी सीआईडी ​​(सीआरए संख्या 1056/2019) शामिल है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह के गैर-वाणिज्यिक मात्रा मामले में सजा कम की थी और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के अन्य उदाहरण जहां इसी तरह की परिस्थितियों में सजा कम कर दी गई थी।

    अपने फैसले में हाईकोर्ट ने स्वीकार किया कि हालांकि निचली अदालत ने सबूतों की सराहना करने में कोई गलती नहीं की थी, जो अभियोजन पक्ष के मामले को संदेह से परे साबित करते हैं लेकिन आरोपी को पहले से ही काटे गए समय और लंबे समय तक चली सुनवाई के आधार पर रिहा किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल- अनारजी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

    Next Story