मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ज़िम्मेदार नागरिकों से अनाथालयों और वृद्धाश्रमों का सामाजिक लेखा-परीक्षण करने का आग्रह किया

Shahadat

22 Sept 2025 10:28 AM IST

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ज़िम्मेदार नागरिकों से अनाथालयों और वृद्धाश्रमों का सामाजिक लेखा-परीक्षण करने का आग्रह किया

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार (19 सितंबर) को सामाजिक लेखा-परीक्षण की अवधारणा के विकास और प्रभावी कार्यान्वयन की वकालत करते हुए इसे समय की आवश्यकता बताया।

    अदालत एक रिट याचिका खारिज करने को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता ने अपने वकील के उपस्थित न होने के कारण पदोन्नति की मांग की थी।

    अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसकी रिट याचिका 2011 से लंबित है। इसको 21 जुलाई, 2025 को सिंगल जज द्वारा अभियोजन पक्ष के अभाव में खारिज कर दी गई, क्योंकि उसके वकील मामले में उपस्थित नहीं हुए। अपीलकर्ता ने दावा किया कि गैर-उपस्थिति 'केवल अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण थी, न कि अपीलकर्ता/याचिकाकर्ता की ओर से किसी जानबूझकर चूक या रुचि की कमी के कारण'।

    अपीलकर्ता ने स्पष्ट किया कि अन्य वकील उसकी रिट याचिका पर विचार कर रहा था। 27 जून, 2025 को जब उसकी अनुपस्थिति के कारण मामला स्थगित कर दिया गया तो अपीलकर्ता ने एक अन्य वकील को नियुक्त किया, जिसने 18 जुलाई, 2025 को अपना वकालतनामा दाखिल किया। 21 जुलाई, 2025 की सुनवाई के दौरान, नव नियुक्त वकील किसी अन्य अदालत में कार्यरत थे। इसलिए रिट याचिका में सिंगल जज के समक्ष अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित नहीं हो सके, जिसके परिणामस्वरूप अभियोजन के अभाव में रिट याचिका खारिज कर दी गई।

    जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस पुष्पेंद्र यादव की खंडपीठ ने दोहराया कि अनुपस्थिति 'सद्भावनापूर्ण भूल' थी और वादी को वकील की गलती के कारण नुकसान नहीं उठाना चाहिए। रिट अपील स्वीकार की गई।

    हालांकि, खंडपीठ ने अपीलकर्ता के वकील को सुझाव दिया,

    "वे माधव अंध आश्रम, ग्वालियर जाकर 10,000 रुपये (केवल दस हज़ार रुपये) के कुछ खाद्य पदार्थ/नाश्ता लेकर एक घंटे की सामुदायिक सेवा करें और उन बच्चों/निवासियों/परिवारों के साथ एक घंटा बिताएं, जिनकी पृष्ठभूमि साधारण है और जिनकी देखभाल राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित एनजीओ/सोसायटी द्वारा की जा रही है।"

    वकील के सुझाव को सहर्ष स्वीकार करने के उत्साह की सराहना करते हुए अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सामुदायिक सेवा "दिव्यांग बच्चों" को यह संदेश देगी कि समाज और उसके सदस्य उनकी परवाह करते हैं और उन्हें छोटे ईश्वर की संतान नहीं माना जाता।

    इस मामले को "'सामाजिक अंकेक्षण' की अवधारणा को बल देने का ट्रायल केस" मानते हुए खंडपीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया:

    "प्रशासन/शिक्षा/स्वास्थ्य/कानूनी विभाग और अन्य संबंधित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन समाज के ज़िम्मेदार और साधन संपन्न व्यक्तियों, जिनमें चार्टर्ड अकाउंटेंट/डॉक्टर/वकील आदि जैसे पेशेवर शामिल हैं, उनको उन स्थानों (जैसे अनाथालय/वृद्धाश्रम/दयाश्रम/वन स्टॉप सेंटर आदि) का दौरा करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए, जहां दिव्यांग/अनाथ/वृद्ध/अपराध के शिकार और अन्य निराश्रित व्यक्ति संस्थागत रूप से रह रहे हैं ताकि वे इन निवासियों की दुर्दशा के बारे में जान सकें और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने और उनमें कल्याण की भावना पैदा करने में योगदान दे सकें।"

    खंडपीठ ने ऐसे संस्थानों के प्रबंधन से संबंधित सामाजिक अंकेक्षण के अन्य महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डाला। खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के सामाजिक अंकेक्षण प्रबंधन को याद दिलाएंगे कि उनके काम पर हमेशा नज़र रखी जाएगी और उन्हें वहां रहने वाले निवासियों, विशेषकर बच्चों और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने से सावधान करेंगे।

    खंडपीठ ने कहा,

    "इसलिए सामाजिक लेखापरीक्षा की अवधारणा का विकास और उसका प्रभावी कार्यान्वयन समय की मांग। नीति निर्माताओं, विशेषकर महिला एवं बाल कल्याण विकास विभाग (DWCD), सामाजिक न्याय विभाग और पुलिस विभाग को इस संबंध में कोई ठोस समाधान निकालना चाहिए।"

    खंडपीठ ने वकील को निर्देश दिया कि वे 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट दाखिल करें, जिसमें दया गृह के अपने अनुभव और स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी और सुझाव शामिल हों।

    इस प्रकार, रिट अपील स्वीकार कर ली गई और अपीलकर्ता की रिट याचिका बहाल कर दी गई।

    Case Title: Sushil Verma v Madhya Pradesh Industrial Infrastructure Development Corporation (WA-2566-2025)

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