सेशन जज के विरुद्ध अपने ही जज की "निंदापूर्ण और अपमानजनक" टिप्पणी का हाईकोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान
Shahadat
24 Sept 2025 10:46 AM IST

एक दुर्लभ कदम उठाते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार से संबंधित ज़मानत मामले की सुनवाई के दौरान ट्रायल कोर्ट जज के विरुद्ध "निंदापूर्ण" टिप्पणी करने वाले अपने ही जज के "निंदापूर्ण" आदेश पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्यवाही शुरू की।
12 सितंबर के अपने आदेश में सिंगल बेंच ने ₹5 करोड़ के सरकारी धन के गबन के आरोपी सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध कथित रूप से आरोप हटाने के लिए सेशन जज के विरुद्ध जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश दिया। सिंगल बेंच ने टिप्पणी की कि सेशन जज ने मामले के तथ्यों पर ठीक से विचार किए बिना आरोपी को 'अनुचित लाभ' पहुंचाया।
खंडपीठ ने कहा कि सिंगल बेंच ने अपने आदेश के पैराग्राफ 12 में कानूनी आलोचना से आगे बढ़कर सेशन जज के बारे में 'निंदनीय और अपमानजनक' टिप्पणियां कीं, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने यह कानून बनाया कि "हाईकोर्ट को ऐसी टिप्पणियां करने से बचना चाहिए, जिनसे ट्रायल कोर्ट जज की छवि धूमिल हो सकती है, यहां तक कि उन्हें अपने आदेश का बचाव करने का अवसर दिए जाने से पहले भी।"
आलोचना आदेश में सिंगल बेंच ने न केवल सेशन जज के तर्क पर सवाल उठाया, बल्कि जज के डेजिग्नेशन का उल्लेख करने के बजाय उनका नाम भी लिया। सिंगल बेंच ने अपने आदेश में यह भी दर्ज किया कि सेशन जज ने अभियुक्त को ज़मानत दिलाने में मदद करने के लिए 'गुप्त उद्देश्य' से काम किया।
जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की खंडपीठ ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा,
"दुर्भाग्य से यह बिल्कुल अनुचित था और न्यायिक आदेशों में ऐसी टिप्पणियों से बचने के माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट को दिए गए लगातार निर्देशों का उल्लंघन है।"
सोनू अग्निहोत्री बनाम चंद्रशेखर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने दोहराया कि हाईकोर्ट त्रुटिपूर्ण आदेशों को रद्द कर सकते हैं और कानूनी त्रुटियों की आलोचना करने के लिए कठोर भाषा का प्रयोग कर सकते हैं। हालांकि, उन्हें "न्यायिक अधिकारी के व्यक्तिगत आचरण और योग्यता पर प्रतिकूल टिप्पणी" करने से बचना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी ज़ोर दिया,
"यदि किसी न्यायिक अधिकारी के विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से आलोचना की जाती है तो इससे न्यायिक अधिकारी को शर्मिंदगी के अलावा पूर्वाग्रह भी होता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि जब हम संवैधानिक न्यायालयों में बैठते हैं तो हमसे भी गलतियां होने की संभावना रहती है। इसलिए जजों की व्यक्तिगत आलोचना या निर्णयों में जजों के आचरण पर निष्कर्ष दर्ज करने से बचना चाहिए।"
खंडपीठ ने आगे कहा कि सिंगल बेंच की टिप्पणी ज़मानत क्षेत्राधिकार के दायरे से बाहर है, क्योंकि ट्रायल कोर्ट के बरी करने के आदेश के विरुद्ध कोई पुनर्विचार उसके समक्ष लंबित नहीं थी।
इसने इस बात पर ज़ोर दिया,
"यह न्यायालय अनुच्छेद 227 और 235 के अंतर्गत जिला न्यायपालिका पर अधीक्षण की शक्ति का प्रयोग करता है। इस क्षमता में उसे न केवल जिला न्यायपालिका की ओर से हुई त्रुटियों को सुधारना है, बल्कि जिला न्यायपालिका के संरक्षक के रूप में भी अपना कार्य करना है। हाईकोर्ट, जिला न्यायपालिका को उसकी (हाईकोर्ट की) ज्यादतियों से बचाने वाला प्रहरी बन जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि जिला न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निर्भीकता कमज़ोर न हो (अर्थात उसकी शक्ति और अधिकार कमज़ोर या कम न हो)।
इस प्रकार, खंडपीठ ने महापंजीयक को 10 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 6 अक्टूबर, 2025 को निर्धारित की गई।
Case Title: Court in its own motion v State of Madhya Pradesh

