मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने विचाराधीन कैदियों, दोषियों को जमानत आवेदन, अपील और संशोधन दाखिल करने में दी जाने वाली कानूनी सहायता पर रिपोर्ट मांगी
Shahadat
1 May 2025 9:10 AM IST

हत्या के एक दोषी की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, रीवा से जवाब मांगा कि दोषी को तत्काल कानूनी सहायता क्यों नहीं प्रदान की गई। बता दें कि उक्त दोषी ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दाखिल करने में 850 दिनों की देरी के लिए माफी मांगी थी।
ऐसा करते हुए न्यायालय ने पाया कि यह "राज्य में कानूनी सहायता के कामकाज का प्रतिबिंब" है और आगे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को राज्य में जेलों के अधीक्षकों से विचाराधीन कैदियों/दोषियों को प्रदान की जाने वाली कानूनी सहायता के बारे में रिपोर्ट मांगने का निर्देश दिया।
देरी को माफ करते हुए जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा,
"यह अपील अंतिम सुनवाई के लिए स्वीकार की जाती है। यह राज्य में विधिक सहायता के कामकाज पर एक प्रतिबिंब है। संबंधित सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, रीवा से रिपोर्ट मांगी जाए कि दोषी को तुरंत विधिक सहायता क्यों नहीं प्रदान की गई। केंद्रीय जेल, रीवा के अधीक्षक को भी सूचित किया जाए कि अपीलकर्ता को तुरंत विधिक सहायता क्यों नहीं प्रदान की गई, जिससे अपील समय पर दायर की जा सके। सचिव, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भी मध्य प्रदेश राज्य के सभी जेल अधीक्षकों से जमानत आवेदन/अपील/संशोधन दायर करने के मामले में विचाराधीन/दोषियों को प्रदान की जाने वाली विधिक सहायता के संबंध में रिपोर्ट मांगने का निर्देश दिया जाता है।"
मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार, अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 354 (महिला की शील भंग करना/34 (सामान्य इरादा) और शस्त्र अधिनियम की धारा 25/27 (हथियार का उपयोग करने के लिए सजा) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।
इस प्रकार, हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की गई, जिसमें कहा गया कि ट्रायल कोर्ट अपने सही परिप्रेक्ष्य में रिकॉर्ड पर उपलब्ध ऑक्यूलर और डॉक्यूमेंट्री की सराहना करने में विफल रहा और अपीलकर्ता निर्दोष था और उसे झूठा फंसाया गया। इस प्रकार, अपील के माध्यम से यह प्रार्थना की गई कि सेशन जज द्वारा पारित निर्णय और सजा को अलग रखा जाए।
28 अप्रैल को सुनवाई के दौरान, अपील दायर करने में 850 दिनों की देरी को माफ करने की मांग करते हुए आवेदन दायर किया गया।
यह देखते हुए कि अपीलकर्ता एक गरीब व्यक्ति है, जिसके पास कमाई का कोई स्रोत नहीं है और देखभाल करने के लिए कोई तत्काल परिवार नहीं है, अदालत ने आवेदन को अनुमति दी।
मामला की अगली सुनवाई 15 मई को होगी।
केस टाइटल: मोहम्मद असलम बनाम मध्य प्रदेश राज्य, सीआरए नंबर 3975/2025

