हाईकोर्ट जज के लिए समय पर VIP ड्यूटी पर नहीं पहुंचने के लिए ड्राइवर को कर दिया गया था बर्खास्त, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने किया बहाल

Shahadat

9 May 2025 7:23 PM IST

  • हाईकोर्ट जज के लिए समय पर VIP ड्यूटी पर नहीं पहुंचने के लिए ड्राइवर को कर दिया गया था बर्खास्त, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने किया बहाल

    हाईकोर्ट जज के समक्ष उपस्थित होने के लिए वीआईपी ड्यूटी पर देरी से पहुंचने के लिए ड्राइवर की "सजा" के रूप में बर्खास्तगी खारिज करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मामले को अनुशासनात्मक प्राधिकारी को अपराधी पर लगाए गए दंड की मात्रा पर पुनर्विचार करने के लिए भेज दिया।

    ऐसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि सेवा से हटाने की सजा 'चौंकाने वाली' और 'अनुपातहीन' है।

    जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने कहा,

    "हालांकि, कदाचार के आरोप को देखते हुए बर्खास्तगी की सजा असंगत प्रतीत होती है। याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप यह है कि वह समय पर वीआईपी गेस्ट हाउस नहीं पहुंच पाया। इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट जज निर्धारित समय पर ट्रेन में सवार नहीं हो सके। हमारी राय में सेवा से बर्खास्त करने के लिए आरोप पर्याप्त नहीं हैं। सेवा से हटाने की सजा तर्क की सीमाओं से परे है। चौंकाने वाली है और यदि अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा लगाई गई सजा न्यायालय की चेतना को झकझोरती है तो अनुशासनात्मक प्राधिकारी को लगाए गए दंड पर पुनर्विचार करने और उसके समर्थन में ठोस कारणों के साथ उचित दंड लगाने का निर्देश देना उचित होगा।"

    अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता जिला एवं सेशन जज, जिला कोर्ट, भोपाल के कार्यालय में चपरासी के पद पर कार्यरत है। उसने उस दंड आदेश को चुनौती दी, जिसके द्वारा उसे विभागीय जांच करने के बाद अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा सेवा से हटा दिया गया।

    याचिकाकर्ता को जिला एवं सेशन जज, जिला कोर्ट, भोपाल की स्थापना में अस्थायी आधार पर ड्राइवर के पद पर नियुक्त किया गया था। बाद में उन्हें नियमित वेतनमान में नियुक्त किया गया। याचिकाकर्ता को उनके द्वारा कथित कदाचार के लिए एक आरोप पत्र जारी किया गया। आरोप पत्र के अनुसार, याचिकाकर्ता वीआईपी ड्यूटी पर तैनात था और उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस एस.के. सिंह के भोपाल दौरे के दौरान उनकी देखभाल करने के लिए ड्राइवर की ड्यूटी सौंपी गई थी।

    याचिकाकर्ता को जस्टिस एस.के. सिंह को वीआईपी गेस्ट हाउस भोपाल से रेलवे स्टेशन पर ले जाना था ताकि वे रात 1.30 बजे इलाहाबाद के लिए ट्रेन पकड़ सकें। याचिकाकर्ता निर्धारित समय पर वीआईपी गेस्ट हाउस कार लेकर नहीं पहुंच सका। वह बाद में 2.15 बजे पहुंचा। जब तक वे रेलवे स्टेशन पहुंचे, तब तक इलाहाबाद के लिए ट्रेन पहले ही रवाना हो चुकी थी।

    जस्टिस एस.के. सिंह ने असिस्टेंट प्रोटोकॉल ऑफिसर भोपाल को लिखित शिकायत की, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता देरी से आने के अलावा नशे की हालत में भी था। जांच अधिकारी ने गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद अपनी रिपोर्ट अनुशासनात्मक प्राधिकारी यानी जिला एवं सेशन जज, भोपाल को प्रस्तुत की। अनुशासनिक प्राधिकारी ने याचिकाकर्ता को दोषी पाया तथा याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के पश्चात, म.प्र. सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1966 के नियम 10 (viii) के अन्तर्गत याचिकाकर्ता को "सेवा से हटाने" का दण्ड देते हुए आक्षेपित आदेश पारित किया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता को मेडिकल जांच के लिए नहीं भेजा गया तथा जांच के दौरान किसी गवाह से पूछताछ नहीं की गई, जिससे यह आरोप सिद्ध हो सके कि वह नशे में था। यह तर्क दिया गया कि केवल इलाहाबाद हाईकोर्ट जज की लिखित शिकायत के आधार पर आरोप को स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    वीआईपी गेस्ट हाउस में विलम्ब से पहुंचने के सम्बन्ध में याचिकाकर्ता ने अपना स्पष्टीकरण दिया कि उसके निवास स्थान तथा वाहन पार्क करने के स्थान के बीच उसकी साइकिल का टायर पंचर हो गया, जिसके कारण वह समय पर नहीं पहुंच सका। यह भी तर्क दिया गया कि "नाराज होकर" हाईकोर्ट जज ने लिखित शिकायत की कि याचिकाकर्ता नशे में था।

    इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया कि विभाग याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा और याचिकाकर्ता ने देरी को स्पष्ट करने के लिए पहले ही बचाव पक्ष के गवाह की जांच कर ली थी, लेकिन जांच अधिकारी या अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा इस पर विचार नहीं किया गया। इस प्रकार, याचिकाकर्ता के अनुसार, सेवा से बर्खास्तगी का आदेश असंगत था।

    इसके विपरीत, प्रतिवादियों के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप विधिवत साबित हुए और विभाग ने संबंधित एपीओ की विधिवत जांच की। ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य पेश करके आरोपों को साबित किया। यह भी प्रस्तुत किया गया कि जांच निष्पक्ष तरीके से की गई और अपराधी को विभाग के गवाहों से क्रॉस एक्जामिनेशन करने और बचाव पक्ष के गवाहों की जांच करने का पूरा अवसर दिया गया।

    पक्षकारों को सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि जांच अधिकारी के निष्कर्ष रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर दर्ज किए गए और साक्ष्य की अपर्याप्तता न्यायिक पुनर्विचार का विषय नहीं हो सकती।

    न्यायालय ने कहा,

    "हाईकोर्ट केवल तभी दण्ड के आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है, जब नियमों के प्रावधानों या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन सिद्ध हो। यह न्यायालय अपीलीय प्राधिकारी के रूप में भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत किसी याचिका में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकता। यह न्यायालय केवल तभी हस्तक्षेप कर सकता है, जब वैधानिक नियमों या विनियमों का उल्लंघन पाया जाता है।"

    इस प्रकार, कदाचार के निष्कर्ष के संबंध में न्यायालय अनुशासनात्मक प्राधिकारी से सहमत था। हालांकि, न्यायालय ने सेवा से बर्खास्तगी की सजा को असंगत पाया।

    न्यायालय ने कहा,

    "याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप यह था कि वह समय पर वीआईपी गेस्ट हाउस नहीं पहुंचा, इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट जज निर्धारित समय पर ट्रेन में सवार नहीं हो सके। हमारी सुविचारित राय में आरोप अपराधी को सेवा से बर्खास्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है।"

    इस प्रकार, न्यायालय ने सजा की मात्रा को अलग रखा और याचिकाकर्ता पर लगाई गई सजा की मात्रा पर पुनर्विचार करने के लिए मामले को अनुशासनात्मक प्राधिकारी को भेज दिया।

    इसके साथ ही याचिका का निपटारा कर दिया गया।

    केस टाइटल: विजय सिंह भदौरिया बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य, रिट याचिका नंबर 11412 दिनांक 2008

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