मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अंतरिम संरक्षण आदेश के बावजूद दुकानें ध्वस्त करने के लिए ग्वालियर के तत्कालीन कलेक्टर को फटकार लगाई
LiveLaw News Network
6 Sept 2024 4:20 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने 2022 में कुछ दुकानों की लीज समाप्ति और उसके बाद ध्वस्तीकरण के खिलाफ दायर याचिका में तत्कालीन कलेक्टर, ग्वालियर के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त की, क्योंकि उन्होंने कहा था कि चूंकि वे मामले में पक्षकार नहीं थे, इसलिए उन्हें अदालत के अंतरिम आदेश के बारे में जानकारी नहीं थी, जो दुकानदारों को बेदखल होने से बचाता है।
हाईकोर्ट ने अधिकारी को अवमानना का नोटिस जारी करने से रोकते हुए उन्हें भविष्य में ऐसा कृत्य न दोहराने की चेतावनी दी।
जस्टिस सुनीता यादव और जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, "हालांकि यह न्यायालय मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं कर पाया है, लेकिन राजस्व अधिकारियों, विशेष रूप से तत्कालीन कलेक्टर, ग्वालियर के व्यवहार का अवलोकन करने के लिए बाध्य है, जिन्होंने इस न्यायालय के दिनांक 09.07.2022 के अंतरिम आदेश की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए 02.08.2022 को ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की थी।"
हाईकोर्ट ने पाया कि उसने 26 अगस्त, 2022 के अपने आदेश में ग्वालियर के तत्कालीन कलेक्टर को "विध्वंस की घटनाओं के क्रम को प्रदर्शित करने के लिए एक जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था, जिसे इस न्यायालय की अनुमति के बिना अंजाम दिया गया था"।
न्यायालय ने कहा कि तत्कालीन कलेक्टर के उत्तर में "बहुत ही कमजोर बहाना दिया गया था कि चूंकि उनके सहित कोई भी राजस्व अधिकारी अपील में पक्षकार नहीं था, इसलिए उन्हें न्यायालय के 9 जुलाई के अंतरिम आदेश की जानकारी नहीं थी" जिसमें निर्देश दिया गया था कि अपीलकर्ताओं को "जबरन बेदखल" नहीं किया जा सकता है।
पीठ ने आगे कहा कि तत्कालीन कलेक्टर द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण "समझने योग्य" नहीं है क्योंकि अंतरिम आदेश पारित करने के समय राज्य का प्रतिनिधित्व सरकारी वकील के माध्यम से किया गया था।
दूसरे, न्यायालय ने कहा कि जब अपीलकर्ताओं को 2 अगस्त, 2022 को तत्कालीन कलेक्टर ने बातचीत के लिए बुलाया था, तब वे "अपने अधिकारों के लिए जी-जान से लड़ रहे थे" और इसलिए यह संभव नहीं था कि वे उन्हें (कलेक्टर को) अंतरिम आदेश के बारे में सूचित न करते या अंतरिम आदेश की प्रति अपने साथ न ले जाते।
निष्कर्ष
तर्कों और तथ्यों पर गौर करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ताओं की चुनौती का कुछ महत्व होता, यदि प्रतिवादी ने अपीलकर्ताओं के पुनर्वास की स्थिति के बारे में नहीं सोचा होता।
कोर्ट ने कहा, "...लेकिन चूंकि यहां अपीलकर्ताओं के पुनर्वास की प्रक्रिया अपीलकर्ताओं को दुकानों के आवंटन की सीमा तक पहुंच गई है, हालांकि एक अलग जगह पर और नगर निगम आयुक्त के पास है, इसलिए यह न्यायालय मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना, नगर निगम आयुक्त को यहां अपीलकर्ताओं को शीघ्रता से भूमि/दुकान आवंटित करने के निर्देश के साथ वर्तमान अपील का निपटारा करना उचित समझता है"।
हाईकोर्ट ने नगर निगम आयुक्त को हाईकोर्ट के आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने के भीतर अपीलकर्ताओं को भूमि/दुकानें आवंटित करने के निर्देश के साथ अपील का निपटारा कर दिया।
अदालत ने आगे कहा कि जब तक अपीलकर्ताओं को दुकानें/भूमि आवंटित नहीं की जाती, तब तक 26 अगस्त, 2022 का अंतरिम आदेश- जिसने अपीलकर्ताओं को बेदखली/विध्वंस से संरक्षण दिया, "प्रभावी रहेगा"।
केस टाइटलः कृष्णकांत जायसवाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य