हाईकोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी मामले की सुनवाई कर रहे जजों के ट्रांसफर, पदोन्नति या रिटायरमेंट पर फैसला आने तक रोक लगाने की याचिका खारिज की

Shahadat

9 July 2025 11:00 AM IST

  • हाईकोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी मामले की सुनवाई कर रहे जजों के ट्रांसफर, पदोन्नति या रिटायरमेंट पर फैसला आने तक रोक लगाने की याचिका खारिज की

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार (8 जुलाई) को भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष समिति द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार किया, जिसमें 1984 की भोपाल गैस त्रासदी से संबंधित लंबे समय से लंबित मामलों की सुनवाई कर रहे जजों के ट्रांसफर, पदोन्नति या सेवानिवृत्ति को फैसला सुनाए जाने तक रोकने का अनुरोध किया गया।

    अदालत द्वारा मौखिक रूप से याचिका की पोषणीयता और जनहित याचिका में की गई प्रार्थनाओं पर सवाल उठाए जाने के बाद याचिकाकर्ता ने अपने अधिकृत प्रतिनिधि के माध्यम से जनहित याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसकी अदालत ने अनुमति दी।

    सुनवाई के दौरान, एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि याचिका पोषणीय नहीं है।

    खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा,

    "तो आज हम कहेंगे कि इस मामले की सुनवाई कर रहे किसी भी जज को रिटायर या पदोन्नत नहीं होना चाहिए? क्या इस तरह की प्रार्थना हो सकती है?"

    याचिकाकर्ता ने फैसला सुनाए जाने में हुई लंबी देरी पर प्रकाश डाला और बताया कि अंतिम बहस पूरी हो जाने के बावजूद, फैसला वर्षों तक लंबित रहा। दलील दी गई कि पिछले 15 वर्षों में यह मामला आठ अलग-अलग जजों के पास रहा है, लेकिन अंतिम फैसला नहीं सुनाया गया।

    हालांकि, अदालत ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों के ट्रांसफर, पदोन्नति और रिटायरमेंट से संबंधित मामले अदालत के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

    खंडपीठ ने टिप्पणी की,

    "लोग बूढ़े होते हैं, रिटायर होते हैं, जीवन में तरक्की करते हैं। आप कह रहे हैं कि इस मामले को देख रहे किसी भी जज का सेशन जज से ट्रांसफर नहीं किया जाना चाहिए।"

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि बार-बार फेरबदल से समय पर न्याय मिलने पर सीधा असर पड़ा है। दलील दी गई कि हालांकि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अभियोजन शुरू किया गया, लेकिन चार दशकों से अधिक समय से कोई सजा लागू नहीं हुई।

    याचिकाकर्ता ने कहा,

    "दरअसल, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इन लोगों पर मुकदमा चलाया है, लेकिन उन्हें जेल नहीं हुई। 40 साल बीत गए। 40 साल और किसी ने कुछ नहीं किया।"

    जवाब में खंडपीठ ने चिंता व्यक्त की कि इस तरह की याचिका पर विचार करने से न्यायिक अधिकारी ऐसी नियुक्तियां स्वीकार करने से हतोत्साहित हो सकते हैं।

    अदालत ने कहा,

    "कोई भी यह नियुक्ति नहीं चाहेगा। अगर मुझे यह नियुक्ति मिल भी गई तो मुझे कभी पदोन्नति नहीं मिलेगी, मैं यहीं फंस जाऊंगा। यह स्वीकार्य नहीं है।"

    Case Title: Bhopal Gas Peedith Sangharsh Samiti v High Court, Jabalpur (WP - 24908/2025)

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