मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपील दाखिल करने में राज्य सरकार के 'सुस्त रवैये' पर फटकार लगाई, 400 दिनों की देरी माफ करने से इनकार

Praveen Mishra

8 Nov 2025 6:58 PM IST

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपील दाखिल करने में राज्य सरकार के सुस्त रवैये पर फटकार लगाई, 400 दिनों की देरी माफ करने से इनकार

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की वह अपील खारिज कर दी जिसमें 400 से अधिक दिनों की देरी को माफ (condone) करने की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार अपने अधिकारियों के सुस्त और गैर-जिम्मेदार रवैये के प्रति बिल्कुल भी गंभीर नहीं है और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही।

    जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया और जस्टिस पुष्पेंद्र यादव की खंडपीठ ने कहा —

    “वर्तमान देरी माफी आवेदन में भी राज्य सरकार की ओर से ऐसा कोई संकेत नहीं है जिससे लगे कि वे अपने अधिकारियों के सुस्त और लापरवाह रवैये के प्रति गंभीर हैं। यह स्पष्ट है कि राज्य के वरिष्ठ अधिकारी ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई न करके उनकी लापरवाही को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे में राज्य को किसी 'विशेष या विशेषाधिकार प्राप्त वादी (privileged litigant)' के रूप में नहीं देखा जा सकता। अतः 400 दिनों से अधिक की देरी माफ करने का कोई आधार नहीं बनता।”

    पूरा मामला:

    राज्य सरकार ने सीमाबद्धता अधिनियम (Limitation Act) की धारा 5 के तहत यह आवेदन दायर किया था, जिसमें विशेष परिस्थितियों में निर्धारित समय सीमा बढ़ाने का प्रावधान है।

    यह अपील 3 अप्रैल 2024 के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जो हाईकोर्ट की वेबसाइट पर 16 मई 2024 को अपलोड हुआ था। अदालत ने राज्य को 24 अक्टूबर 2024 तक अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) के कार्यालय से विधिक राय (legal opinion) प्राप्त करने के लिए पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया था। राज्य की ओर से यह राय 15 जनवरी 2025 को सौंपी गई।

    राज्य सरकार का कहना था कि विधिक राय देने में देरी इसलिए हुई क्योंकि संबंधित अधिकारी (OIC) ने सरकारी वकील द्वारा पूछे गए कुछ सवालों का जवाब नहीं दिया था। बाद में मामला स्वीकृति प्राधिकारी (sanctioning authority) के पास भेजा गया और 22 मई 2025 को अनुमति मिली। इसके बाद 25 अगस्त 2025 को अपील दाखिल की गई। राज्य का तर्क था कि देरी के लिए पर्याप्त कारण हैं, इसलिए इसे माफ किया जाना चाहिए।

    अदालत की टिप्पणी

    कोर्ट ने कहा कि यह मामला पहले भी कई बार देखा गया है, और राज्य सरकार बार-बार ऐसी ही लापरवाही दिखाती रही है।

    अदालत ने अपने पुराने फैसले “State of Madhya Pradesh बनाम रामकुमार चौधरी” का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार को ऐसे लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए जो समय पर अपील दाखिल नहीं करते।

    इसके अलावा अदालत ने “शिवम्मा (मृत) बनाम कर्नाटक हाउसिंग बोर्ड” केस का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर आवेदन में दिए गए तथ्यों को देखा जाए, तो वे साफ तौर पर राज्य के अधिकारियों की सुस्ती और गैर-जिम्मेदारी को दिखाते हैं।

    कोर्ट ने यह भी कहा —

    “यह अदालत बार-बार विभागाध्यक्षों को निर्देश देती रही है कि वे बताएं कि उन्होंने लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की है। कई मामलों में वरिष्ठ अधिकारियों ने अदालत में झूठे जवाब दाखिल किए कि कार्रवाई की जा रही है, जबकि बाद में पाया गया कि कोई कार्रवाई नहीं हुई।”

    अदालत ने पाया कि राज्य सरकार अपने अधिकारियों के सुस्त और उदासीन रवैये के प्रति बिल्कुल भी गंभीर नहीं है और सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। वरिष्ठ अधिकारी भी कार्रवाई न करके ऐसी प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दे रहे हैं।

    इस स्थिति को देखते हुए अदालत ने कहा कि राज्य को किसी विशेष छूट नहीं दी जा सकती और 400 दिनों की देरी को माफ करने से इनकार करते हुए अपील खारिज कर दी।

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