"फिल्म काल्पनिक है": शाह बानो की बेटी की फिल्म 'हक' की रिलीज़ पर रोक लगाने वाली याचिका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने खारिज की

Praveen Mishra

6 Nov 2025 2:48 PM IST

  • फिल्म काल्पनिक है: शाह बानो की बेटी की फिल्म हक की रिलीज़ पर रोक लगाने वाली याचिका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने खारिज की

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शाह बानो की बेटी द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने फिल्म “हक” (Haq) की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि यह फिल्म स्पष्ट रूप से काल्पनिक और नाटकीय रूपांतरण (fictional and dramatized adaptation) है, जो किताब “Bano: Bharat Ki Beti” पर आधारित है और 1985 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले “Mohd. Ahmad Khan v. Shah Bano Begum” से प्रेरित है।

    जस्टिस प्रणय वर्मा ने कहा कि फिल्म के डिस्क्लेमर में यह साफ लिखा है कि यह एक काल्पनिक रचना है और किसी व्यक्ति की सच्ची कहानी नहीं है, इसलिए इसे गलत चित्रण या मनगढ़ंत कहानी नहीं कहा जा सकता। अदालत ने माना कि जब कोई फिल्म वास्तविक घटनाओं से प्रेरित होती है, तो उसमें कुछ रचनात्मक छूट (creative liberty) दी जा सकती है, और केवल कुछ व्यक्तिगत या नाटकीय विवरण जोड़ने से उसे आपत्तिजनक नहीं कहा जा सकता।

    अदालत ने आगे कहा कि फिल्म सार्वजनिक अभिलेखों (public records) पर आधारित है, जिसमें कोर्ट रिकॉर्ड भी शामिल हैं, जो वर्षों से सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं और जिन पर शाह बानो ने अपने जीवनकाल में कभी आपत्ति नहीं की। सुप्रीम कोर्ट के फैसले “R. Rajagopal v. State of Tamil Nadu” का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि जब कोई मामला सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा बन जाता है, तो उस पर गोपनीयता (privacy) का अधिकार समाप्त हो जाता है और वह प्रेस या मीडिया द्वारा टिप्पणी के लिए खुला विषय बन जाता है। अदालत ने “K.S. Puttaswamy v. Union of India” और मद्रास हाईकोर्ट के फैसले “Deepa Jayakumar v. A.L. Vijay (2021)” का हवाला देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति की निजता और प्रतिष्ठा का अधिकार उसकी मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है और यह उसके उत्तराधिकारियों को नहीं मिल सकता। चूंकि शाह बानो अब जीवित नहीं हैं, इसलिए यह कहना कि फिल्म ने उनकी निजता या प्रतिष्ठा का उल्लंघन किया है, स्वीकार्य नहीं है।

    कोर्ट ने यह भी बताया कि फिल्म को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) ने यूए 13+ प्रमाणपत्र 28 अगस्त 2025 को जारी किया था। याचिकाकर्ता के पास सिनेमैटोग्राफ एक्ट की धारा 5-E के तहत केंद्र सरकार के समक्ष प्रमाणपत्र को चुनौती देने का वैकल्पिक उपाय था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया — वह भी फिल्म की 7 नवंबर 2025 की रिलीज़ से सिर्फ एक सप्ताह पहले। अदालत ने कहा कि फरवरी 2024 से ही फिल्म की पटकथा, शूटिंग और टीज़र से जुड़ी खबरें सार्वजनिक थीं, फिर भी याचिकाकर्ता ने देरी से कार्यवाही की, जिससे उसका आचरण सतर्क वादी (vigilant litigant) जैसा नहीं माना जा सकता।

    अंत में अदालत ने कहा कि फिल्म किसी प्रकार की गलत प्रस्तुति या निजता के उल्लंघन का मामला नहीं है, बल्कि यह सार्वजनिक अभिलेखों पर आधारित एक काल्पनिक नाट्य रूपांतरण है। इसलिए याचिका निराधार पाई गई और खारिज कर दी गई।

    Next Story