वकीलों के सामूहिक बहिष्कार पर मद्रास हाईकोर्ट का कड़ा रुख: कहा- बार एसोसिएशन ट्रेड यूनियन नहीं, किसी के प्रतिनिधित्व पर रोक असंवैधानिक

Amir Ahmad

5 Nov 2025 6:31 PM IST

  • वकीलों के सामूहिक बहिष्कार पर मद्रास हाईकोर्ट का कड़ा रुख: कहा- बार एसोसिएशन ट्रेड यूनियन नहीं, किसी के प्रतिनिधित्व पर रोक असंवैधानिक

    मद्रास हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशनों द्वारा सामूहिक बहिष्कार और किसी पक्ष को कानूनी प्रतिनिधित्व से वंचित करने की प्रथा पर सख्त टिप्पणी की। जस्टिस बी. पुगालेंधी ने स्पष्ट किया कि कोई भी बार एसोसिएशन या वकीलों का समूह यह तय नहीं कर सकता कि अदालत में किसे बचाया या पेश किया जाए। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को न्यायालय में प्रतिनिधित्व का अधिकार कोई विशेष अनुग्रह नहीं बल्कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त एक मौलिक गारंटी है और इस अधिकार में हस्तक्षेप कानून के शासन की जड़ पर प्रहार है।

    जस्टिस पुगालेंधी ने अपने आदेश में कहा,

    “स्पष्ट रूप से कहा जाता है कि कोई भी बार एसोसिएशन या वकीलों का समूह नैतिक या कानूनी रूप से यह अधिकार नहीं रखता कि वह तय करे कि किसे अदालत में बचाया जाए या नहीं। कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार कोई पेशेवर कृपा नहीं बल्कि एक संवैधानिक गारंटी है। ऐसी रोक चाहे औपचारिक प्रस्ताव के रूप में हो या अनौपचारिक दबाव के रूप में न्याय की बुनियादी अवधारणा और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार पर आघात है।”

    अदालत ने कहा कि जब निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को पेशेवर एकता के नाम पर कुचला जा रहा हो, तब न्यायालय मूकदर्शक नहीं रह सकता। जस्टिस ने दोहराया कि बार एसोसिएशन कोई ट्रेड यूनियन नहीं है बल्कि यह एक संवैधानिक संस्था है जिसका कर्तव्य न्याय व्यवस्था को सशक्त बनाना है। उन्होंने कहा कि वकीलों का यह समूह यदि किसी व्यक्ति को प्रतिनिधित्व से वंचित करता है तो यह कानून के शासन के प्रति तिरस्कार के समान है।

    मामला नागरकोइल बार एसोसिएशन से जुड़ा है, जहां कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया कि कुछ वकीलों को कुछ व्यक्तियों का पक्ष लेने से रोका गया। पहली दो याचिकाओं में आरोप था कि स्थानीय बार एसोसिएशन के दबाव के कारण किसी आरोपी या शिकायतकर्ता को वकील नहीं मिल रहे। हालांकि एसोसिएशन ने अदालत में यह कहते हुए अपना पक्ष रखा कि उसने ऐसा कोई प्रस्ताव या परिपत्र पारित नहीं किया।

    अन्य दो याचिकाओं में एक महिला ने आरोप लगाया कि उसके मकान मालिक सुरेश और उसके रिश्तेदार राजेश ने लगभग 50 वकीलों के साथ मिलकर जबरन उसके घर में घुसपैठ की और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। उसने कहा कि उसने पुलिस में शिकायत की थी लेकिन पुलिस ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की और इसके बजाय उसके खिलाफ ही मामला दर्ज कर दिया। अदालत ने पुलिस की रिपोर्ट को असंतोषजनक बताते हुए कहा कि यह पुलिस की पक्षपातपूर्ण और लापरवाह कार्यशैली को दर्शाती है, और यह भी प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता और स्थानीय वकीलों के बीच मिलीभगत रही है।

    पहली दो याचिकाओं के संबंध में अदालत ने कन्याकुमारी के प्रधान जिला एवं सेशन जज को मुकदमों की कार्यवाही की व्यक्तिगत निगरानी करने का निर्देश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने को कहा कि अभियुक्तों को अपनी पसंद के वकील से प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व मिले और कोई वकील धमकी या दबाव में न आए। यदि किसी वकील या बार एसोसिएशन द्वारा हस्तक्षेप किया गया तो उसे अदालत और तमिलनाडु एवं पुडुचेरी बार काउंसिल को अनुशासनात्मक कार्रवाई हेतु सूचित करने का निर्देश दिया गया।

    तीसरे और चौथे मामलों में अदालत ने जांच को सीबी-सीआईडी, कन्याकुमारी को स्थानांतरित कर दिया और उप पुलिस अधीक्षक को स्वतंत्र, निष्पक्ष और समयबद्ध जांच करने का आदेश दिया।

    अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि नागरकोइल बार एसोसिएशन के खिलाफ इस प्रकार के आरोप नए नहीं हैं। 2010 से ही ऐसी शिकायतें सामने आती रही हैं कि एसोसिएशन ने कुछ आरोपियों के लिए वकीलों को प्रतिनिधित्व से रोकने का प्रस्ताव पारित किया था। अदालत ने कहा कि यह प्रवृत्ति वकालत पेशे में अनुशासनहीनता की चिंताजनक मिसाल है और यह बार की साख को नुकसान पहुँचाती है।

    जस्टिस पुगालेंधी ने अंत में कहा कि बार एसोसिएशन पेशे की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बने हैं न कि उन्हें दबाव समूहों में बदलने के लिए। किसी व्यक्ति को वकील चुनने और अदालत में अपनी बात रखने का अधिकार संविधान द्वारा सुरक्षित है और इस अधिकार का हनन अस्वीकार्य है।

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