MP हाईकोर्ट ने खारिज की बच्चे की कस्टडी के लिए दायर पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका; CPC की धारा 13 के तहत वैकल्पिक उपाय सुझाया
Avanish Pathak
21 Jun 2025 2:55 PM IST

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ में अमेरिका में रहने वाले एक पिता की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया। पिता ने अपने नाबालिग बेटे की कस्टडी की मांग की थी।
जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस राजेंद्र कुमार वाणी की पीठ ने इस बात पर विचार-विमर्श किया कि क्या विदेशी न्यायालय की ओर से पारित आदेश, जिसमें मां को बच्चे को उसके समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है, नाबालिग की कस्टडी को गैरकानूनी ठहराएगा।
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास CPC की धारा 13 और 14 के रूप में एक वैकल्पिक उपाय है, लेकिन उसे इसकी आवश्यकताओं को पूरा करना होगा।
कोर्ट ने कहा,
“याचिकाकर्ता के पास CPC की धारा 44ए और धारा 13 और 14 सहित CPC के विभिन्न प्रावधानों के अनुसार वैकल्पिक उपाय है और यदि आवश्यक हो और यदि कानून अनुमति देता है, तो वह संरक्षक और वार्ड अधिनियम, 1890 के तहत आगे बढ़ सकता है। ऐसा करते समय, याचिकाकर्ता को CPC की धारा 13 में उल्लिखित अपवादों को पूरा करना होगा।”
क्या है मामला?
वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका के माध्यम से न्यायालय से याचिकाकर्ता के बेटे को न्यायालय के समक्ष पेश करने और बेटे को अमेरिका वापस भेजने के निर्देश मांगे थे, क्योंकि न्यूजर्सी के चांसरी डिवीजन न्यायालय के 4 अप्रैल 2023 के आदेश के आधार पर एकमात्र कस्टडी उसके पास है। 2018 में, मां, यानी प्रतिवादी वैवाहिक कलह के कारण बच्चे के साथ भारत लौट आई थी और मध्य प्रदेश के सीहोर में रहने लगी थी।
याचिकाकर्ता ने यशिता साहू बनाम राजस्थान राज्य (2020), तेजस्विनी गौड़ एवं अन्य बनाम शेखर जगदीश प्रसाद (2019) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया और तर्क दिया कि बच्चे के हित और बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के दायरे के आधार पर याचिका अनुरक्षणीय है और विचारणीय है। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पास CPC के तहत निहित वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है।
कोर्ट का निर्णय
हाईकोर्ट ने चाइल्ड कस्टडी के मामलों में बंदी प्रत्यक्षीकरण के दायरे की जांच की और नित्या आनंद राघवन बनाम दिल्ली राज्य एनसीटी, 2017 जैसे सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि बंदी प्रत्यक्षीकरण के उपाय का उपयोग किसी व्यक्ति के खिलाफ विदेशी अदालत द्वारा दिए गए निर्देशों को लागू करने के लिए नहीं किया जा सकता है, बल्कि उस क्षेत्राधिकार को निष्पादन न्यायालय के क्षेत्राधिकार में परिवर्तित करने के लिए किया जा सकता है।
रिट याचिका का निपटारा कर दिया गया, लेकिन अदालत ने याचिकाकर्ता के अपने बच्चे के साथ संपर्क बनाए रखने के प्रयासों को स्वीकार किया और सुझाव दिया कि वह मां से अनुरोध कर सकता है और उसके विवेक पर, व्यक्तिगत रूप से मीडिंग हो या ऑनलाइन, उसकी व्यवस्था की जाएगी।
कोर्ट ने कहा,
"इस तथ्य के बावजूद कि याचिकाकर्ता अपने बच्चे से मिलने का प्रयास कर रहा है, ऊपर उल्लिखित कानूनी प्रावधान और निर्णय उसके बचाव में नहीं आते हैं। इस प्रकार, याचिका विफल हो जाती है। हालांकि, विवाद की प्रकृति और इस तथ्य को देखते हुए कि याचिकाकर्ता एक पिता होने के नाते, प्रतिवादी संख्या 2 से अपने बेटे से मिलने का अनुरोध कर सकता है और यदि वह ऐसा महसूस करता है, तो व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉल पर मिलने की अनुमति देना उसका विवेक है। यह न्यायालय द्वारा उठाई गई अपेक्षा है और इसका पालन करने के लिए कोई आदेश जारी नहीं किया गया है। यह पूरी तरह से दंपति और प्रतिवादी संख्या 2 के बीच का मामला है जिसे तय करना है।"

