झूठे आरोपों से टूटता है वैवाहिक विश्वास: एमपी हाईकोर्ट ने दिया पति को तलाक की मंजूरी

Praveen Mishra

4 Nov 2025 4:51 PM IST

  • झूठे आरोपों से टूटता है वैवाहिक विश्वास: एमपी हाईकोर्ट ने दिया पति को तलाक की मंजूरी

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पति को क्रूरता और परित्याग (Cruelty and Desertion) के आधार पर तलाक देने की अनुमति दी है। अदालत ने यह टिप्पणी की कि वैवाहिक संबंधों में पारस्परिक विश्वास एक “स्वर्ण सूत्र” (golden thread) की तरह होता है, जो तब कमजोर पड़ जाता है जब एक जीवनसाथी दूसरे पर झूठे और मानहानिकारक आरोप लगाता है।

    जस्टिस विशाल धगत और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने कहा—

    “वैवाहिक संबंधों में पारस्परिक विश्वास वह स्वर्ण सूत्र है जो पति-पत्नी के जीवन में स्नेह और सम्मान को बुनता है, और जब एक पक्ष दूसरे पर निराधार और मानहानिकारक आरोप लगाता है तो यह सूत्र कमजोर हो जाता है।”

    पति के अनुसार, पत्नी ने विवाह के बाद मात्र एक माह वैवाहिक घर में रहने के बाद अपने मायके में रहना शुरू कर दिया। वहीं, पत्नी का कहना था कि जब उसने बच्ची को जन्म दिया, तब पति उससे मिलने नहीं आया।

    इसके बाद पत्नी ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का मामला दायर किया, जिसे मजिस्ट्रेट ने मंजूर कर लिया। पति ने इसके बाद हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए याचिका दायर की, परंतु बाद में इसे वापस लेकर तलाक का दावा दायर किया। इसी से यह मामला प्रारंभ हुआ।

    पति का आरोप था कि पत्नी का व्यवहार असम्मानजनक और कटु था तथा उसने उनके नियोक्ताओं को झूठी जानकारी दी, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया और वे बेरोजगार हो गए।

    वहीं, पत्नी के वकील ने दावा किया कि उसे इतना प्रताड़ित किया गया कि वैवाहिक घर छोड़ना ही एकमात्र विकल्प था। उनका कहना था कि ससुरालवालों ने दहेज से असंतुष्ट होकर और अधिक दहेज की मांग की। इसके अलावा उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पति ऑस्ट्रेलिया गया और वहाँ दूसरी शादी कर ली।

    हाईकोर्ट ने यह नोट किया कि पत्नी द्वारा दहेज मांग या उत्पीड़न के संबंध में कोई पुलिस रिपोर्ट या शिकायत दर्ज नहीं कराई गई।

    अदालत ने कहा—

    “हम इस तथ्य से अवगत हैं कि झूठे आरोप लगाने पर दूसरा जीवनसाथी शर्म, उपहास, सामाजिक निंदा और कानूनी दंड जैसी स्थिति का सामना कर सकता है। इसलिए, ऐसे आरोप लगाते समय जीवनसाथी को अत्यंत संवेदनशील और सावधान रहना चाहिए। परंतु, ट्रायल कोर्ट में दर्ज बयानों से यह स्पष्ट है कि पत्नी ने ये आरोप बहुत ही हल्के में लगाए।”

    खंडपीठ ने कहा कि पत्नी दहेज उत्पीड़न के आरोपों को साबित करने में असफल रही।

    पत्नी ने यह तर्क दिया कि उसने वैवाहिक संबंध को और क्षति से बचाने के लिए पुलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई, परंतु अदालत ने कहा कि यह स्पष्टीकरण मामले की परिस्थितियों के अनुकूल नहीं है। अदालत ने टिप्पणी की कि भरण-पोषण की याचिका दायर करना और दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट न करना यह नहीं दर्शाता कि वह वैवाहिक संबंध को सुधारना चाहती थी।

    अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी यह अपेक्षा कर रही थी कि पति उसके घर आए और संबंध बहाल करने का आग्रह करे, जबकि स्वयं उसने घर छोड़ दिया था।

    “उसका यह अत्यधिक आग्रह यह दर्शाता है कि उसका अहम (ego) वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना में बाधा बन गया था। हिंदू विवाह अधिनियम ऐसी अहंकारी सोच को स्वीकार नहीं करता। ऐसे में यदि पति ने पत्नी को वापस बुलाने का आग्रह नहीं किया, तो इसे उसके अलगाव के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता,” अदालत ने कहा।

    इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने माना कि पत्नी ने बिना उचित कारण पति को छोड़ दिया था। ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों के मूल्यांकन में गलती की और यह निर्धारित करने पर अधिक बल दिया कि किसने संबंध सुधारने की कम पहल की, जबकि यह देखना आवश्यक था कि अलगाव के लिए वास्तव में कौन जिम्मेदार था।

    पत्नी यह साबित नहीं कर सकी कि पति ने दहेज उत्पीड़न किया या दूसरी शादी की।

    इसलिए, अदालत ने पति को क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक प्रदान कर दिया।

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