MP हाईकोर्ट: दोहराई गई याचिका पर ₹5,000 जुर्माना
Praveen Mishra
8 Dec 2025 7:56 PM IST

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड (ACCSL) के खिलाफ विभिन्न शहरों में दर्ज धोखाधड़ी और गबन के मामलों की FIR को एकजुट कर एक ही जांच और एकीकृत ट्रायल की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस हिमांशु जोशी की एकल-पीठ ने याचिकाकर्ता पर ₹5,000 का जुर्माना लगाते हुए कहा कि उसने बिना किसी उचित कारण के हाईकोर्ट की असाधारण रिट-जूरिस्डिक्शन का दुरुपयोग किया है, जबकि इसी तरह की राहत मांगने वाली पूर्व याचिका पहले ही बिना किसी स्वतंत्रता (liberty) के वापस ले ली गई थी।
याचिकाकर्ता की मांग क्या थी?
याचिकाकर्ता ने राज्य के अलग-अलग शहरों में ACCSL के खिलाफ दर्ज कई FIRs को क्लब करने, एक ही जांच एजेंसी से जांच कराने और एकीकृत ट्रायल करने का निर्देश देने की मांग की थी। उनके अनुसार, ACCSL की शुरुआत राजस्थान सहकारी समितियाँ अधिनियम के तहत हुई थी और बाद में यह मल्टी-स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटी बन गई, जिसकी पूरे देश में लगभग 800 शाखाएँ थीं। आरोप है कि सोसायटी ने जमा राशि वापस नहीं की, जिसके चलते मध्य प्रदेश के कई शहरों में धोखाधड़ी, गबन, आपराधिक विश्वासघात और साजिश संबंधी FIR दर्ज हुईं।
पिछली याचिका वापस लेने का प्रभाव
याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया कि उसने पहले भी यही राहत मांगते हुए एक रिट याचिका दायर की थी, जिसे उसने परिस्थितियाँ बदलने का हवाला देते हुए वापस ले लिया। लेकिन कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि उस आदेश में सिर्फ आगामी आदेशों को चुनौती देने की अनुमति दी गई थी, न कि उसी कारण पर नई याचिका दाखिल करने की।
अदालत की प्रमुख टिप्पणियाँ
कोर्ट ने पाया कि यह नई याचिका भी ठीक वही राहत मांगती है जो पहले वाली याचिका में मांगी गई थी। कोई नया आदेश, परिस्थिति या नया कारण (fresh cause of action) प्रस्तुत नहीं किया गया। इस प्रकार यह याचिका “दोहराई गई याचिका” है, जो कानूनन अस्वीकार्य है।
कोर्ट ने कहा कि लगातार एक ही राहत के लिए कई writ याचिकाएँ दायर करना, वह भी पहली याचिका में liberty न मिलने के बावजूद, रिट जूरिस्डिक्शन का दुरुपयोग है। अदालत ने Sarguja Transport Service v. STAT (1987) 1 SCC 5 मामले का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में दूसरी याचिका सुनना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा।
कोर्ट की कठोर टिप्पणी
कोर्ट ने कहा:
“याचिकाकर्ता की यह कार्रवाई अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और अदालत के मूल्यवान समय की बर्बादी है। ऐसे आचरण की कड़ी निंदा की जानी चाहिए.”
अंतिम आदेश
याचिका खारिज की गई।
याचिकाकर्ता पर ₹5,000 का जुर्माना लगाया गया ताकि भविष्य में ऐसी निरर्थक और दोहराव वाली याचिकाओं को रोका जा सके।

