'व्यभिचार में लिप्त होने' का अर्थ है 'लगातार और बार-बार व्यभिचार करना', इकलौता उदाहरण पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं करता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
23 April 2024 1:02 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि व्यभिचार का इकलौता उदाहरण किसी पत्नी को अपने पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने से वंचित नहीं कर सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 125(4) की कठोरता को आकर्षित करने के लिए, पत्नी को 'लगातार और बार-बार व्यभिचार के कृत्यों' के जरिए 'व्यभिचार में लिप्त होना' चाहिए।
इंदौर स्थित पीठ ने कहा,
“...'व्यभिचार में लिप्त होने' का अर्थ व्यभिचार का निरंतर और बार-बार किए जाने वाला कृत्य है…। विद्वान ट्रायल कोर्ट ने पूरे सबूतों पर विचार किया है... पूरे सबूतों पर विचार करने के बाद पाया कि व्यभिचार में एक मात्र उदाहरण के आधार पर, पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125 (4) के तहत भरण-पोषण पाने से नहीं वंचित नहीं किया जा सकता है।''
जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की सिंगल-जज बेंच ने उल्लेख किया कि 'प्रासंगिकता' और 'स्वीकार्यता' एक दूसरे के पर्यायवाची लग सकते हैं, और तलाक की डिक्री में व्यभिचार की खोज भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 41 के अनुसार भरणपोषण के मुद्दे को तय करने में 'प्रासंगिक' है। हालांकि, 'प्रासंगिकता' और 'स्वीकार्यता' के अलग-अलग कानूनी निहितार्थ हैं।
कोर्ट ने स्पष्ट किया,
“…उदाहरण के लिए, एक गवाह का साक्ष्य,जो जिरह से पहले मर जाता है, प्रासंगिक है, हालांकि साक्ष्य का मूल्य मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। निश्चित रूप से, प्रासंगिक साक्ष्य प्रथम दृष्टया स्वीकार्य है, जब तक कि इसे किसी अन्य कारण से अलग न किया जाए।”
कोर्ट ने व्यभिचार के आधार पर प्राप्त तलाक की डिक्री को परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए उपरोक्त बयान दिया। सीआरपीसी की धारा 125 (4) के अनुसार, यदि कोई पत्नी व्यभिचार में लिप्त हो या यदि उसने बिना किसी पर्याप्त कारण के अपने पति के साथ रहने से इनकार कर दिया हो या यदि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं, तो पत्नी अपने पति से किसी भी रखरखाव भत्ते की हकदार नहीं होगी।
कोर्ट ने आदेश में नोट किया, "इस संबंध में, निर्णय Ex.D/1 प्रतिवादी के खिलाफ व्यभिचार स्थापित करने के लिए प्रासंगिक है, लेकिन अब सवाल यह है कि क्या यह व्यभिचार सीआरपीसी की धारा 125(4) के मद्देनजर निरंतर और पर्याप्त है।"
अशोक बनाम अनिता [2011] और सुखदेव पाखरवाल बनाम रेखा ओखले [2018] में तत्कालीन हाईकोर्ट के फैसलों पर अदालत ने यह दोहराने के लिए भरोसा किया कि 'पत्नी की ओर से व्यभिचार का इक्का-दुक्का कृत्य धारा 125(4)' के अर्थ में व्यभिचार की श्रेणी में नहीं आता है और 'प्रासंगिक समय पर, पत्नी को भरण-पोषण के दावे से वंचित करने के लिए व्यभिचार में लिप्त होना चाहिए।'
उसी के मुताबिक, अदालत ने ट्रायल कोर्ट की ओर से दिए गए तथ्य के निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने के लिए अपने पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से इनकार कर दिया। एकल-न्यायाधीश पीठ के अनुसार, ट्रायल कोर्ट ने पत्नी और बेटी प्रत्येक को 3,000/- रुपये की भरण-पोषण राशि देने का फैसला करने के लिए रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों का सही अध्ययन किया था, जो अत्यधिक नहीं है।
केस टाइटलः वी बनाम आर और अन्य।
केस नंबर: क्रिमिनल रिवीजन नंबर 790/201
साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एमपी) 66