किशोर यौन उत्पीड़न के आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते समय अपराध की गंभीरता पर विचार नहीं किया जाना चाहिए: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Amir Ahmad

19 Sep 2024 10:12 AM GMT

  • किशोर यौन उत्पीड़न के आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते समय अपराध की गंभीरता पर विचार नहीं किया जाना चाहिए: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने IPC की धारा 376(AB) और POCSO Act के तहत यौन उत्पीड़न के आरोपी 14 वर्षीय किशोर को जमानत दी।

    जस्टिस संजीव एस. कलगांवकर ने मामले की अध्यक्षता की और कहा कि किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act) की धारा 3 के अनुसार बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के मूल सिद्धांतों में मासूमियत, गरिमा और मूल्य, सर्वोत्तम हित और पारिवारिक जिम्मेदारी की धारणा शामिल है। अदालत ने दोहराया कि अपराध की गंभीरता किशोर को जमानत देने से इनकार करने का एकमात्र मानदंड नहीं होना चाहिए।

    न्यायालय ने कहा,

    "बच्चे को संदर्भित करने वाले सभी निर्णय इस बात पर विचार करने पर आधारित होने चाहिए कि वे बच्चे के सर्वोत्तम हित में हैं। बच्चे को पूर्ण क्षमता विकसित करने में मदद करते हैं। एक्ट का मुख्य उद्देश्य किशोर अपराधी के साथ अत्यंत सावधानी और सतर्कता से पेश आना है। जमानत देने के लिए उसके आवेदन पर विचार करते समय अपराध की गंभीरता को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए।"

    यह मामला तब शुरू हुआ, जब किशोर पर 7 वर्षीय लड़की पर हमला करने का आरोप लगाया गया। जांच के बाद किशोर न्याय बोर्ड (JJB) और एडिशनल सेशन जज (ASJ) ने जमानत आवेदनों को खारिज कर दिया, जिसके कारण पिता ने JJ Act की धारा 102 के तहत आपराधिक पुनर्विचार दायर किया।

    बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि JJB और ASJ ने अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों पर विचार किए बिना यंत्रवत् जमानत खारिज की थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किशोर प्रतिभाशाली स्टूडेंट था, जिसने हाल ही में अवलोकन गृह में रहते हुए अपनी कक्षा-8 की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।

    सामाजिक जांच रिपोर्ट ने उसके परिवार के साथ पुनर्वास की सिफारिश की, जिसमें पीड़ित को नुकसान पहुंचाने या प्रभावित करने की कोई संभावना नहीं बताई गई। इसके अलावा रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि किशोर का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। उसकी रिहाई से उसे नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे का सामना नहीं करना पड़ेगा।

    JJB और ASJ ने पहले किशोर के गुस्से और रिहा होने पर उसके मानसिक विकास के लिए संभावित खतरे के बारे में चिंता व्यक्त की थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि सामाजिक जांच रिपोर्ट इन दावों का समर्थन नहीं करती। रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि किशोर के पिता, जो 15,000 प्रति माह कमाने वाले मजदूर हैं और उसकी मां जो 5,000 प्रति माह कमाने वाली रसोइया हैं, उसके कल्याण और शिक्षा की देखभाल करने में सक्षम हैं।

    पड़ोसियों ने किशोर के व्यवहार को सौम्य बताया और अवलोकन गृह में उसका आचरण उचित था, उन्होंने उसके अपने परिवार के साथ पुनर्वास की सिफारिश की।

    जस्टिस संजय कलगांवकर ने देखा कि पिछले आदेश अवैधता और अनुचितता से ग्रस्त थे और कहा,

    “यह दर्शाता है कि कानून के साथ संघर्ष करने वाले बच्चे को उसके परिवार के साथ पुनर्वास से इनकार करने के लिए कोई भी पैरामीटर नहीं बनाया गया। इस प्रकार, विवादित आदेश अवैधता और अनुचितता से ग्रस्त है।”

    परिणामस्वरूप, न्यायालय ने अपीलीय न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया और किशोर को कुछ शर्तों के अधीन जमानत दी, जैसे कि कानून के साथ संघर्ष करने वाला बच्चा उचित स्तर पर अपनी पढ़ाई जारी रखेगा और उसे व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा तथा वह पीड़ित से संपर्क नहीं करेगा।

    केस टाइटल- अपने प्राकृतिक माता-पिता और अभिभावक के माध्यम से कानून के साथ संघर्ष करने वाला किशोर बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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