पहली शादी बरकरार है तो महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरे पति से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती: मध्य प्रदेश हाइकोर्ट
Amir Ahmad
12 March 2024 6:08 PM IST
मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें किसी अन्य पुरुष के साथ उसकी पहली शादी के निर्वाह के कारण महिला को रखरखाव से इनकार किया गया। अदालत ने यह विचार किया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत रखरखाव का दावा करने के लिए पत्नी को 'कानूनी रूप से विवाहित पत्नी' होना चाहिए।
जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 की धारा 22 के तहत मुआवजा मांगने जैसे अन्य उपायों का लाभ उठाने के लिए स्वतंत्र होगी।
जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल पीठ ने कहा,
“महिला, जिसने किसी अन्य व्यक्ति से दूसरी शादी की है, केवल उस व्यक्ति से भरण-पोषण पाने की हकदार है, जब पहली शादी या तो अमान्य घोषित कर दी गई हो या उसने अपने पहले पति से तलाक की डिक्री प्राप्त कर ली हो। याचिकाकर्ता नंबर 1 ने अपने पहले पति/भगवानसिंह से तलाक नहीं लिया और तलाक लेने का कोई सबूत दाखिल नहीं कर सकी। अदालत ने संगीता राठौड़ बनाम नरेश राठौड़ (2023) और राजकुमार अग्रवाल बनाम सारिका (2023) जैसे हालिया केस कानूनों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि मामले में भरण-पोषण क्यों नहीं दिया जा सकता।”
अदालत ने कहा,
हालांकि पुनर्विचार याचिका में मांगी गई एक और राहत उनके रिश्ते से पैदा हुई बेटी को दिए जाने वाले भरण-पोषण की मात्रा को 4000 रुपये से बढ़ाकर 5000/- रुपये करने से संबंधित है, लेकिन हाइकोर्ट ने पिता की वर्तमान आय का हवाला देते हुए भरण-पोषण राशि में हस्तक्षेप करने से इनकार किया। हालांकि, बेटी सीआरपीसी की धारा 127 [परिस्थितियों में बदलाव पर भत्ते में बदलाव] के तहत फैमिली कोर्ट के समक्ष आवेदन कर सकती है।
परिवार न्यायालय अधिनियम 1984 (family Court Act 1984) की धारा 19(4) के तहत महिला और उसके कथित पति द्वारा दायर पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज करते हुए अदालत ने भगवानदास बनाम पानपति (2023) जैसे मामलों में तय कानून को दोहराया। भगवानदास मामले में हालांकि अदालत ने समाज के गरीब तबके से आने वाली महिलाओं की दुर्दशा के प्रति सहानुभूति व्यक्त की, जो बिना किसी जानबूझकर गलती के भी भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं हैं, लेकिन यह माना गया कि जीवित पति या पत्नी वाली महिला को उसके कथित दूसरे पति से भरण-पोषण से वंचित कर दिया जाएगा।
अदालत ने महिला के वकील द्वारा संदर्भित मामले के कानून को भी अलग किया, जहां सुप्रीम कोर्ट पति को अपनी गलती का फायदा उठाने से रोकने की कोशिश कर रही थी।
बादशाह बनाम उर्मीला बादशाह गोडसे (2014) 1 एससीसी 188 में महिला ने भरोसा किया कि पति ने अपनी पहली शादी की बात को छुपाया और दूसरी पत्नी को धोखा दिया।
याचिकाकर्ता महिला ने तर्क दिया कि उसकी पहली शादी तब हुई थी जब वह नाबालिग थी। इसलिए इसे अमान्य माना जाना चाहिए। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि भले ही शादी के समय दुल्हन नाबालिग हो, इससे हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 11 के तहत विवाह रद्द नहीं हो जाएगा।
हाइकोर्ट ने यह भी कहा कि महिला यह साबित करने में विफल रही कि उसकी पहली शादी, जो हिंदू सप्तपदी रीति-रिवाज के अनुसार हुई, बाद में रद्द कर दी गई। अदालत ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 125 के अनुसार भले ही नाजायज बेटी को भरण-पोषण दिया जा सकता है, लेकिन नाजायज पत्नी कभी भी भरण-पोषण की हकदार नहीं होगी।
याचिकाकर्ता महिला के अनुसार वह गृहिणी और अशिक्षित व्यक्ति है। घरेलू हिंसा और अपने दूसरे पति और ससुराल वालों की ओर से दहेज की मांग के कारण वह 2015 से अपने दूसरे पति से अलग रह रही है।