कस्टम करदाता की संपत्ति से बकाया राशि की वसूली के लिए बैंक पर प्राथमिकता का दावा नहीं कर सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
Amir Ahmad
11 Oct 2024 1:17 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कस्टम और केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें करदाता की संपत्ति से बकाया राशि की वसूली के लिए अन्य सुरक्षित लेनदारों पर प्राथमिकता की मांग की गई।
जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी ने पंजाब नेशनल बैंक बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (2022) मामले पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि SARFAESI Act का केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम के प्रावधानों पर प्रमुख प्रभाव होगा। इसलिए सुरक्षित लेनदार के बकाए को कस्टम और उत्पाद शुल्क विभाग के बकाए पर प्राथमिकता दी जाएगी।
खंडपीठ ने सहमति व्यक्त की कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम 1944 की धारा 11-ई के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो करदाता या किसी व्यक्ति की संपत्ति पर कस्टम का पहला प्रभार प्रदान करता हो।
इस मामले में कस्टम ने यार्न के निर्माण में लगे निर्यात उन्मुख व्यावसायिक संस्थाओं से उत्पाद शुल्क और ब्याज की वसूली की मांग की। विभाग के अनुसार, बाद वाले ने 10,14,099 रुपये के केंद्रीय उत्पाद शुल्क और 51,00,988 रुपये के कस्टम का भुगतान किए बिना विनिर्माण मशीनों का आयात किया।
मध्य प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (MPSIDC) ने भी वसूली की कार्यवाही शुरू की। करदाता की संपत्ति को अपने कब्जे में ले लिया जो उसके पास गिरवी रखी गई।
देना बैंक (अब बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय हो चुका है) ने भी करदाता के साथ समझौता किया, जिसके तहत बंधक संपत्ति को गिरवी रखा गया।
संपत्ति पर तीन शुल्क बनाए गए। कस्टम ने जब्त की गई मशीनरी पर अधिकार जताया, जो बंधक संपत्ति का हिस्सा थी।
देना बैंक ( MPSIDC के साथ मिलकर) द्वारा शुरू की गई वसूली कार्यवाही से विभाग व्यथित था, जिसने ई-नीलामी नोटिस जारी किया। इसकी आशंका है कि डीआरटी बंधक संपत्ति को वास्तविक कीमत से बहुत कम कीमत पर नीलाम कर सकता है, इसलिए सरकारी राजस्व की वसूली करना मुश्किल होगा।
विभाग की ओर से पेश हुए एडवोकेट प्रसन्ना प्रसाद ने राज्य कर अधिकारी बनाम रेनबो पेपर्स लिमिटेड (2022) का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि वित्तीय लेनदार किसी भी सरकार को देय वैधानिक बकाया की कीमत पर अपना बकाया सुरक्षित नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा,
“इससे असहमत होते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि रेनबो पेपर्स (सुप्रा) आईबीसी के तहत दिवालियेपन की कार्यवाही के मुकाबले बिक्री कर और वैट की वसूली से संबंधित है। इसलिए यह निर्णय भारत संघ की मदद नहीं करेगा।”
न्यायालय ने MPSIDC द्वारा भारतीय औद्योगिक विकास बैंक बनाम केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क अधीक्षक और अन्य (2023) पर भरोसा करने से सहमति जताई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि कस्टम एक्ट कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 529-ए के तहत अधिमान्य ऋणदाताओं को देय भुगतान को रद्द नहीं करता।
हाईकोर्ट ने केंद्र की याचिका खारिज की और कहा कि DRT ने बैंक के ऋण की वसूली के लिए कार्यवाही शुरू करने का सही तरीका अपनाया।
केस टाइटल: कमिश्नर बनाम ऋण वसूली ट्रिब्यूनल और अन्य