समान स्थिति वाले बंदियों के हलफनामे यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त कि कोई व्यक्ति आपातकाल के दौरान मीसा बंदी था या नहीं, जेल प्रमाण पत्र आवश्यक नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
Avanish Pathak
7 Nov 2024 6:57 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि दो समान स्थिति वाले बंदियों के हलफनामे यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त हैं कि कोई व्यक्ति आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) 1971 के तहत और आपातकालीन अवधि के दौरान भारत की रक्षा नियम (डीआईआर) के तहत एक कैदी के रूप में जेल में बंद था।
ग्वालियर स्थित जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के की एकल पीठ ने इस प्रकार एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें इस आधार पर वैधानिक पेंशन देने के लिए एक आवेदन को खारिज कर दिया गया था कि जिला मजिस्ट्रेट या जेल अधिकारियों या संबंधित पुलिस स्टेशन का कोई प्रमाण पत्र यह प्रदर्शित करने के लिए दायर नहीं किया गया था कि याचिकाकर्ता का पति मीसा/डीआईआर बंदी था।
कोर्ट ने कहा, “समान स्थिति वाले कैदियों के दो हलफनामे यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त थे कि उक्त व्यक्ति मीसा/डीआईआर कैदी के रूप में जेल में बंद थे और मुरैना (म.प्र.) में रह रहे थे। उपर्युक्त संदर्भ में, यदि वर्तमान याचिकाकर्ता द्वारा 31.05.2013 को दायर किए गए आवेदन को देखा जाए, तो यह उन दो कैदियों के हलफनामों के साथ संलग्न है, जो मीसा/डीआईआर कैदियों के रूप में जेल में निरुद्ध थे...जिन्होंने हलफनामों में स्पष्ट रूप से कहा था कि याचिकाकर्ता के पति...भी उनके साथ मीसा/डीआईआर बंदी के रूप में जेल में निरुद्ध थे, जो इस न्यायालय के अनुसार पर्याप्त अनुपालन था, जिसे याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार करते समय अधिकारियों द्वारा पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है।
न्यायालय ने विवादित आदेश को खारिज कर दिया और निष्कर्ष निकाला कि दायर किए गए हलफनामे यह दिखाने के लिए पर्याप्त अनुपालन थे कि याचिकाकर्ता नियम, 2008 के तहत वैधानिक पेंशन के लिए पात्र है। इस प्रकार, याचिकाकर्ता अपने पति को मिलने वाली पेंशन का आधा हिस्सा पाने की हकदार थी। न्यायालय ने प्रतिवादी अधिकारियों को याचिकाकर्ता को उसकी पात्रता के अनुसार नियम, 2008 के तहत प्रदान की गई सम्मान निधि तुरंत प्रदान करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: लीला देवी बंसल बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, रिट पीटिशन नंबर 28102/2023