Arbitration And Conciliation Act को बनाये जाने की जरूरत क्यों थी?

Shadab Salim

28 Jun 2025 2:55 PM

  • Arbitration And Conciliation Act को बनाये जाने की जरूरत क्यों थी?

    संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विधि आयोग ने अंतरराष्ट्रीय वाणिज्य माध्यस्थम पर संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विधि आयोग आदेश विधि को स्वीकार कर लिया था, जिस कारण भारत में भी ऐसी ही विधि की आवश्यकता थी। संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने उन नियमों को स्वीकार कर लिया था, इसलिए भारत में 2016 विधि संबंधी नियमों की आवश्यकता थी।

    अंतर्राष्ट्रीय माध्यस्थम तथा सुलह संबंधी प्रक्रिया को ध्यान में रखकर उचित विधि की आवश्यकता थी जो कि अंतरराष्ट्रीय मानक स्तर पर निष्पक्ष हो, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों में विदेशी तथा अन्य माध्यस्थ को नियुक्त करने संबंधी प्रावधानों की आवश्यकता थी। माध्यस्थम अधिनियम 1940 के उन प्रावधानों को समाप्त करना था जो कि अपनी उपयोगिता खो चुके थे।

    माध्यस्थम अधिनियम 1940 में न्यायालयों का अत्यधिक नियंत्रण था जिस कारण से वह उपयोगी साबित नहीं हो पा रहा था। वैश्वीकरण और उदारीकरण की औद्योगिक तथा व्यापारिक नीति के पालन के कारण विदेशी निवेशकों को शीर्ष उपचार प्रदान करने के माध्यस्थम विधि अति आवश्यक मानी गई जिससे न्यायालय हस्तक्षेप न्यूनतम स्तर पर हो गया। न्यायालय हस्तक्षेप किसी झगड़ा के समाधान करने में बहुत समय तथा खर्च एक पक्ष दूसरे से व्यवहार जाने पर दुश्मनी को जन्म देता है।

    जबकि माध्यस्थम विधा झगड़े के समापन पर सौहार्द बराबरी और प्रेम का मार्ग प्रशस्त करती है। इन सभी कारणों से यह स्पष्ट था कि मध्यस्थम विधि पर एक नए अधिनियम की आवश्यकता है जिसे माध्यस्थम तथा सुलह अधिनियम 1996 पूर्ण कर देता है।

    यह राष्ट्रीय श्रीनिवास जोशी बनाम ओमेगा इनफार्मेशन सिस्टम 2009 के मामले में कहा गया है - जहां माध्यस्थम अधिनिर्णय को समय से पूर्व चुनौती देने वाली याचिका को नामंजूर कर दिए जाने पर अंतिमता प्राप्त हो गई थी जबकि अभी निर्णय निष्पादित करने योग्य डिक्री की कोटि मे आता था वहां जिला न्यायालय को आरंभिक अधिकारिता कि न्यायालय होने के कारण अधिनियम के अधीन पारित किए गए अधिनिर्णय के निष्पादन के लिए न्यायालय माना गया।

    इस अधिनियम के अंतर्गत पक्षकार शब्द का प्रयोग माध्यस्थम कार्यवाही के एक पक्ष कार का अर्थ रखने के लिए इसकी परिभाषा वाले भाव में धारा 34(2) में किया जाता है और इसके अंतर्गत वह पक्षकार नहीं आता है जो करार का एक पक्षकार है। माध्यस्थम संबंधी अधिनिर्णय की वैधता पर अपील में माध्यस्थम करार के पक्षकार द्वारा आक्रमण किया जा सकता है न कि रिट अधिकारिता पर व्यक्ति द्वारा अवलंब लेकर।

    चेन्नई कंटेंट टर्मिनल प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया एआईआर 2007 मद्रास 325 के प्रकरण में कहा गया है कि पक्षकर माध्यस्थम कार्यवाही के एक प्रकार का अर्थ रखने के इसकी परिभाषा अभाव में धारा 34( 2) में प्रयोग किया गया है और इसके अंतर्गत एक तृतीय पक्षकार नहीं आता है जो करार का एक पक्षकार नहीं होता है। यह भी तय शुदा है कि एक अधिनिर्णय अंतिम होता है। मात्र पक्षकारों पर बंधनकारी होता है और अधिनिर्णय को पक्षकार के विरुद्ध मात्र प्रवर्तनीय बनाया जा सकता है।

    बैंक के और दो कंपनियों के बीच त्रि पक्षीय अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य करार हुआ। शर्तों का उल्लंघन होने की दशा में बैंक ने न्यायालय में पक्षकारों के बीच विवाद को निपटाने के लिए शरण ली। सुप्रीम कोर्ट ने अभिलेख पर सामग्री तथा करार के निबंधनों का परीक्षण किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह न्याय हित मांग करता था की पक्षकारों के बीच विवाद के निपटारे के लिए मध्यस्थम की नियुक्ति की जाए।

    परिणामस्वरूप एकमात्र मध्यस्थ के रूप में कार्य के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति की गई। अधिनियम के प्रावधान मध्यस्थ की नियुक्ति विवादों के निर्देश तथा मध्यस्थम की नियुक्ति के प्रक्रम से अधिनिर्णय के किए जाने एवं निष्पादित किए जाने एवं प्रभावी बनाए जाने तक माध्यस्थम की संपूर्ण प्रक्रिया आदेशिका को प्रक्रिया को शासित करेंगे। कथित अधिनियम के प्रावधान संधियों में प्रमाणित मामलों की जांच सूची की अपेक्षा को पूरी करेगा। जब एक बार पक्षकारगण माध्यस्थम और सुलह अधिनियम 1996 के अनुसार विवाद के संकल्प के करार करते हैं तब कथित अधिनियम संपूर्ण आदर्श एवं प्रक्रिया को ध्यान में रखेगा।

    जब मध्यस्थम अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक होगा तब मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए आवेदन पत्र सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पोषणीय होगा न कि हाईकोर्ट के समक्ष। यह बात असलम इस्माइल खान देशमुख बनाम अंशप फ्लूट प्राइवेट लिमिटेड मुंबई एआईआर 2019 के प्रकरण में कही गई है।

    आलेख में वर्णित की गई सभी बातों से यह माना जाना चाहिए कि माध्यस्थम और सुलह अधिनियम 1996 अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर होने वाले व्यापारिक काम में मध्यस्थ के माध्यम से किसी भी विवाद को निपटाने का कार्य करता है।

    कोई भी विवाद जब न्यायालय में जाता है तो उस विवाद को समाप्त करना अत्यधिक मुश्किल कार्य होता है परंतु माध्यस्थम के माध्यम से ऐसे विवाद शीघ्र निपटाए जा सकते हैं क्योंकि किसी भी व्यापारिक प्रतिष्ठान का कार्य व्यापार करना होता है न कि विवादों में बढ़ाना होता है। ऐसे व्यापारिक संस्थाओं को विवादों से बचाने हेतु तथा उनके विवादों पर शीघ्र निपटारा करने हेतु माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम 1996 का निर्माण किया गया।

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