जब कोई मालिक सामने न आए या वस्तु जल्दी खराब हो – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 504 और 505
Himanshu Mishra
7 Jun 2025 11:57 AM

भारत की आपराधिक न्याय व्यवस्था (Criminal Justice System) केवल अपराधी को सज़ा देने तक सीमित नहीं है। इसमें उन संपत्तियों (Properties) को लेकर भी विस्तृत नियम हैं जो अपराध के दौरान जब्त (Seized) की जाती हैं। कई बार ऐसी संपत्तियों का असली मालिक सामने नहीं आता, या वो संपत्ति जल्दी खराब हो सकती है। ऐसे मामलों से निपटने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 504 (Section 504) और धारा 505 (Section 505) में विशेष व्यवस्था दी गई है।
यह लेख इन दोनों धाराओं को आसान हिंदी में विस्तार से समझाता है, साथ ही पहले की संबंधित धाराओं जैसे धारा 498, 499, 500 और 503 से इसका संबंध भी स्पष्ट करता है।
धारा 504 – जब कोई मालिक छह महीने में सामने नहीं आता (Procedure Where No Claimant Appears Within Six Months)
धारा 504 का प्रयोग तब होता है जब धारा 503 (Section 503) की प्रक्रिया पूरी हो जाती है और फिर भी कोई व्यक्ति यह दावा नहीं करता कि जब्त की गई संपत्ति उसकी है।
धारा 503 के अनुसार, पुलिस द्वारा जब्त संपत्ति (Seized Property) के बारे में मजिस्ट्रेट (Magistrate) को सूचित किया जाता है। अगर संपत्ति किसी अदालत में पेश नहीं की गई हो और उसका मालिक स्पष्ट नहीं हो, तो मजिस्ट्रेट सार्वजनिक घोषणा (Proclamation) करके छह महीने का समय देता है कि कोई भी दावा कर सकता है।
अगर कोई दावा नहीं करता, और जिस व्यक्ति के पास से संपत्ति मिली थी वो भी यह नहीं साबित कर पाता कि उसने उसे कानूनी रूप से (Legally) प्राप्त किया है, तो मजिस्ट्रेट यह आदेश दे सकता है कि संपत्ति राज्य सरकार (State Government) के अधीन हो जाएगी।
राज्य सरकार उस संपत्ति को बेच सकती है और बिक्री से जो पैसा (Proceeds) मिलेगा, उसे अपने नियमों के अनुसार इस्तेमाल कर सकती है।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए पुलिस ने एक संदिग्ध व्यक्ति से 3 महंगे मोबाइल फोन जब्त किए हैं। वह व्यक्ति उनके कानूनी दस्तावेज नहीं दिखा पाता और कोई भी व्यक्ति छह महीने के भीतर उन पर दावा नहीं करता। अब मजिस्ट्रेट धारा 504 के तहत आदेश दे सकता है कि ये फोन राज्य सरकार को सौंप दिए जाएं और सरकार इन्हें नीलामी (Auction) में बेच सकती है।
इसका उद्देश्य यह है कि ऐसी चीजें न्यायालय के मालखाने (Court Storeroom) में पड़ी-पड़ी खराब न हों और न ही भ्रष्टाचार (Corruption) को बढ़ावा दें।
धारा 504(2) – अपील करने का अधिकार (Right to Appeal)
अगर कोई व्यक्ति मजिस्ट्रेट के आदेश से असंतुष्ट हो – जैसे कि उसका दावा सही होते हुए भी खारिज हो गया हो – तो वह अपील (Appeal) कर सकता है। यह अपील उस अदालत में होगी जहाँ सामान्य रूप से मजिस्ट्रेट के निर्णयों के खिलाफ अपील की जाती है।
इससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी आदेश अंतिम (Final) नहीं होता और उच्चतर अदालतें उसकी समीक्षा (Review) कर सकती हैं।
धारा 505 – जल्दी खराब होने वाली या कम मूल्य की संपत्ति को बेचना (Power to Sell Perishable Property or Property of Low Value)
धारा 505 जीवन की व्यावहारिक परिस्थितियों को ध्यान में रखती है। जब कोई संपत्ति जल्दी खराब होने वाली हो (Perishable) – जैसे फल, सब्ज़ियाँ, दूध, दवा आदि – और उसका मालिक उपलब्ध नहीं हो, तो मजिस्ट्रेट उसे तुरंत बेचने का आदेश दे सकता है।
यह प्रावधान उन परिस्थितियों में भी लागू होता है जहाँ:
1. संपत्ति का मालिक मौजूद नहीं है और वह प्राकृतिक रूप से जल्दी खराब होने वाली (Subject to Speedy and Natural Decay) है,
2. मजिस्ट्रेट यह मानते हैं कि उस संपत्ति को बेच देना मालिक के हित में होगा, या
3. संपत्ति का मूल्य ₹10,000 से कम है।
बेचने से जो पैसा प्राप्त होगा, उसका उपयोग और देखभाल धारा 503 और धारा 504 के अनुसार की जाएगी।
उदाहरण (Illustration):
पुलिस ने एक गाड़ी में रखे टमाटरों की बड़ी खेप जब्त की, जिनका अवैध परिवहन हो रहा था। ट्रक चालक भाग गया और मालिक का कोई पता नहीं चला। टमाटर जल्दी खराब हो सकते थे। मजिस्ट्रेट ने धारा 505 के तहत आदेश दिया कि टमाटरों को लोकल मंडी में बेच दिया जाए ताकि उनका उपयोग हो सके। जो भी पैसे आएँगे, वे सुरक्षित रखे जाएँगे और अगर कोई व्यक्ति बाद में अपना दावा साबित करता है, तो उसे पैसे दिए जा सकते हैं।
धारा 503 से संबंध (Link with Section 503)
धारा 503 वह आधार है जिससे संपत्ति को लेकर यह पूरी प्रक्रिया शुरू होती है। जब पुलिस किसी संपत्ति को जब्त करती है और वह किसी अदालत में पेश नहीं की जाती, तो पुलिस मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट देती है। मजिस्ट्रेट फिर तय करता है कि उस संपत्ति की देखभाल कैसे होगी और उसका मालिक कौन है।
अगर कोई दावा करता है, तो उसे कुछ शर्तों पर संपत्ति मिल सकती है। अगर कोई दावा नहीं करता (धारा 504), या संपत्ति जल्दी खराब हो सकती है (धारा 505), तो फिर मजिस्ट्रेट को संपत्ति बेचने या राज्य सरकार को देने का अधिकार होता है।
इस प्रकार ये तीनों धाराएँ (धारा 503, 504 और 505) एक सिलसिलेवार प्रक्रिया (Step-by-step process) बनाती हैं –
पहले रिपोर्ट, फिर प्रकाशन, फिर प्रतीक्षा, फिर फैसला और फिर यदि ज़रूरत हो तो बिक्री या जब्ती।
सुरक्षा और पारदर्शिता (Safeguards and Fairness)
यह प्रावधान संपत्ति को जब्त करने का रास्ता नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी चीज़ अनिश्चितता में (In Limbo) न पड़ी रहे। सभी संभावित दावेदारों को मौका दिया जाता है और मजिस्ट्रेट का आदेश भी अपील योग्य होता है।
इससे यह प्रक्रिया न्यायपूर्ण (Just) और पारदर्शी (Transparent) बनती है, जिसमें राज्य का हित, न्यायालय की सुविधा, और नागरिकों का अधिकार – सभी को संतुलित किया गया है।
अदालतों और पुलिस के लिए व्यवहारिक महत्व (Practical Importance for Police and Courts)
इन धाराओं की असली उपयोगिता तब सामने आती है जब पुलिस या अदालतों के पास बड़ी मात्रा में जब्त की गई संपत्ति होती है – जैसे चोरी का सामान, वाहन, शराब, फल-सब्जियाँ या नकली दवाएँ।
कई बार ऐसी चीज़ें सालों तक अदालत के मालखानों में पड़ी रहती हैं, जिससे न केवल नुकसान होता है बल्कि भ्रष्टाचार की संभावना भी बढ़ती है। इन धाराओं की मदद से ऐसी संपत्ति का सुरक्षित, कानूनी और त्वरित निपटारा (Safe, Legal, and Timely Disposal) संभव हो पाता है।
धारा 504 और 505 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की वह महत्वपूर्ण कड़ी हैं जो आपराधिक मामलों में जब्त संपत्ति को सही ढंग से नियंत्रित करने में मदद करती हैं। ये प्रावधान न केवल राज्य के हित को सुरक्षित रखते हैं बल्कि निष्पक्षता और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर भी खरे उतरते हैं।
धारा 504 उस स्थिति से निपटती है जहाँ कोई मालिक छह महीने तक सामने नहीं आता और संपत्ति का स्रोत भी स्पष्ट नहीं होता। वहीं धारा 505 वास्तविक जीवन की उन परिस्थितियों के लिए है जहाँ संपत्ति जल्दी खराब हो सकती है या उसका मूल्य बहुत कम है।
इनके माध्यम से न्यायिक व्यवस्था केवल अपराध की सज़ा तक सीमित नहीं रहती, बल्कि उन वस्तुओं और संपत्तियों का भी न्यायपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करती है जो अपराध से जुड़ी होती हैं।