BNS 2023 के अंतर्गत शर्तों का उल्लंघन, न्यायिक कार्यवाही में व्यवधान, असलियत से विपरीत पहचान और जमानत उल्लंघन के परिणाम धारा 266 - 269

Himanshu Mishra

29 Oct 2024 5:15 PM IST

  • BNS 2023 के अंतर्गत शर्तों का उल्लंघन, न्यायिक कार्यवाही में व्यवधान, असलियत से विपरीत पहचान और जमानत उल्लंघन के परिणाम धारा 266 - 269

    भारतीय न्याय संहिता 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita 2023), जो 1 जुलाई 2024 से प्रभाव में आई है, भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) का स्थान ले चुकी है। यह संहिता भारत के आपराधिक न्याय तंत्र को अधिक व्यवस्थित और सुसंगठित बनाने के उद्देश्य से बनाई गई है।

    संहिता में उल्लिखित कुछ मुख्य प्रावधानों में शर्तों के उल्लंघन, न्यायिक कार्यवाही में व्यवधान, असलियत से विपरीत पहचान और जमानत उल्लंघन शामिल हैं। धारा 266 से 269 तक इन अपराधों के लिए विशेष दंड का प्रावधान किया गया है।

    धारा 266: दंड माफी की शर्त का उल्लंघन (Violation of Condition of Remission of Punishment)

    धारा 266 के अंतर्गत यह प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को उसकी सजा से सशर्त माफी (Conditional Remission) दी गई है और वह व्यक्ति जानबूझकर उन शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसे फिर से वही सजा भुगतनी होगी जो पहले उसे दी गई थी। यदि उसने सजा का कुछ हिस्सा पहले ही भुगता है, तो उसे बाकी बचा हुआ हिस्सा भुगतना होगा।

    उदाहरण: मान लीजिए कि एक व्यक्ति को चोरी के अपराध में तीन साल की सजा सुनाई गई थी, परंतु अच्छे व्यवहार के आधार पर उसे सजा से छूट मिल गई, इस शर्त पर कि वह अगले दो वर्षों तक कोई अपराध नहीं करेगा।

    यदि वह व्यक्ति इस अवधि में चोरी करता है, तो उसे पुनः पूरी सजा भुगतनी पड़ सकती है, यदि उसने सजा का कोई हिस्सा नहीं भुगता था। यदि उसने सजा का एक हिस्सा भुगता था, तो उसे बाकी बचा हुआ हिस्सा भुगतना होगा।

    यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि यदि कोई व्यक्ति माफी की शर्तों का पालन नहीं करता, तो उस पर पहले से तय की गई सजा का प्रभाव लागू किया जाए।

    धारा 267: न्यायिक कार्यवाही में लोक सेवक को अपमानित करना या व्यवधान उत्पन्न करना (Intentional Insult or Interruption to Public Servant Sitting in Judicial Proceeding)

    धारा 267 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceeding) में बैठे हुए लोक सेवक (Public Servant) को अपमानित करता है या किसी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न करता है, तो उसे छह महीने तक की साधारण कैद (Simple Imprisonment), पाँच हजार रुपए तक का जुर्माना, या दोनों का सामना करना पड़ सकता है।

    उदाहरण: मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को अदालत में गवाही के लिए बुलाया गया है, और वह जानबूझकर जज को अपमानित करने वाले शब्दों का प्रयोग करता है या कोर्ट की प्रक्रिया को बाधित करने के लिए शोरगुल करता है। ऐसे में, उस व्यक्ति को धारा 267 के अंतर्गत दंडित किया जा सकता है।

    इस धारा का उद्देश्य न्यायिक कार्यवाहियों में अनुशासन बनाए रखना और उन लोक सेवकों का सम्मान सुनिश्चित करना है जो इन कार्यवाहियों का संचालन करते हैं।

    धारा 268: असलियत से विपरीत पहचान द्वारा अस्सेसर बनना (Personation of Assessor)

    धारा 268 यह प्रावधान करती है कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर असलियत से विपरीत पहचान (Personation) द्वारा खुद को एक अस्सेसर (Assessor) के रूप में नियुक्त करवा लेता है या किसी मामले में वह ऐसा व्यक्ति होने का दिखावा करता है जबकि वह कानूनी रूप से उस भूमिका के लिए योग्य नहीं है, तो उसे दो साल तक की सजा, जुर्माना, या दोनों का सामना करना पड़ सकता है।

    उदाहरण: मान लीजिए कि किसी न्यायिक प्रक्रिया में गवाह के रूप में किसी विशेषज्ञ को एक अस्सेसर के रूप में बुलाया गया है, और कोई व्यक्ति जानबूझकर खुद को उस विशेषज्ञ के रूप में प्रस्तुत करता है ताकि वह उस भूमिका में रह सके। यह कानूनी रूप से गलत है और इस स्थिति में उसे धारा 268 के तहत दंडित किया जाएगा।

    यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रिया में शामिल सभी व्यक्ति कानूनी रूप से अपनी भूमिकाओं के लिए योग्य हों, और इस प्रकार किसी भी तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सके।

    धारा 269: जमानत पर रिहा व्यक्ति का अदालत में पेश होने में असफल होना (Failure by Person Released on Bail Bond to Appear in Court)

    धारा 269 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध का आरोपी है और उसे जमानत पर रिहा किया गया है, लेकिन वह अदालत में उपस्थित होने में असफल रहता है और उसके पास इस अनुपस्थिति का उचित कारण भी नहीं है, तो उसे एक साल तक की सजा, जुर्माना, या दोनों का सामना करना पड़ सकता है।

    इस धारा के अंतर्गत दंड उस व्यक्ति के लिए अतिरिक्त होता है जो उसने पहले से किए गए अपराध के लिए भुगतना था। साथ ही, अदालत इस व्यक्ति की जमानत को भी जब्त कर सकती है।

    उदाहरण: मान लें कि एक व्यक्ति पर चोरी का आरोप है और उसे जमानत पर रिहा किया गया है, लेकिन अदालत में पेश होने के दिन वह बिना किसी कारण अनुपस्थित रहता है। इस स्थिति में, अदालत धारा 269 के तहत उसे अतिरिक्त सजा दे सकती है, साथ ही उसकी जमानत भी जब्त कर सकती है।

    पिछले संबंधित प्रावधानों से संबंध

    धारा 259, 260 और 261 जैसे प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि लोक सेवक अपने कर्तव्यों का पालन करें और किसी भी आरोपी को गिरफ़्तारी से बचने का अवसर न दें। इसके साथ ही, धारा 262 और 263 उन मामलों पर केंद्रित हैं जहाँ कोई व्यक्ति अपनी गिरफ़्तारी में बाधा उत्पन्न करता है।

    धारा 266 से 269 इन प्रावधानों को विस्तार देती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि कानून का हर स्थिति में अनुपालन हो, चाहे वह सजा की शर्तों का उल्लंघन हो, न्यायिक कार्यवाही में व्यवधान हो, असलियत से विपरीत पहचान हो, या जमानत का उल्लंघन हो।

    भारतीय न्याय संहिता 2023 का उद्देश्य कानून की ताकत और न्याय की स्थिरता को बनाए रखना है। धारा 266 से 269 तक, संहिता यह सुनिश्चित करती है कि सभी मामलों में न्याय प्रक्रिया का सम्मान किया जाए और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाए।

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